धिक्कार है ऐसी आदमियत पर !! 😣
धिक्कार है ,ऐसी आदमियत पर!
धिक्कार है ,उस कोख पर
जो इस आदमियत के जन्म देती है.....!
धिक्कार है ,उस कोख पर
जो इस आदमियत के जन्म देती है.....!
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मेरी भी दस वर्षीय बेटी है। उसके स्वाभाव, दैनिक क्रियाओं और वक्तव्य में जो बचपना झलकता है। वो देख कर ख़ुशी होती है । इस ख़ुशी का कारण वो नादानी भरी बातें हैं जो किसी भी बड़े का मन मोहने के लिए काफी हैं। जैसे एक छोटे से सवाल से आप को उस बचपने का परिचय कराऊँ। एक दिन मेरी बेटी ने मुझ से पूछा की माँ बच्चे पेट में कैसे आते हैं ? सवाल ऐसा कि जवाब देना भी मुश्किल , लेकिन जरूरी भी। मैंने सोच समझ कर जवाब दिया कि ईश्वर से प्रार्थना करने पर भगवान बच्चे पेट में डाल देता है। तो पटलवार सवाल ये था कि तब तुमने शादी के पहले ही मुझे भगवान से क्यों नहीं माँगा ? ये सवाल भी मुश्किल , जवाब दिया कि शादी के पहले मैं अकेली थी। फिर मैं तुम्हें कैसे संभालती ? और अगर मैं तुम्हारी जरूरतें पूरी करने के लिए नौकरी पर चली जाती तो घर पर तुम्हारा ख्याल कौन रखता ? इस लिए शादी के बाद तुम्हे लाया गया कि तुम्हारे डैडी कमाने के लिए बाहर निकलेंगे और मैं घर में रहकर तुम्हारा ख्याल रखूंगी। डैडी जो कमा कर लाएंगे उससे हम सभी की जरूरत पूरी होगी। बच्ची संतुष्ट भी हुई और साथ ही जीवन में माँ पिता दोनों की अहमियत भी समझी।
इस किस्से का जिक्र मैंने यूँ ही नहीं किया। कारण है , ताकि बचपने की मासूमियत की झलक के साथ मैं आज प्रकाशित हुई चंडीगढ़ की एक भयावह घटना का जिक्र कर सकूँ। एक दस वर्षीय बच्ची ने एक सतवासी बच्ची को जन्म दिया। सतवासी अर्थात सातवें महीने में ही । बच्ची की उम्र इतनी कम थी की उसके पेल्विक बोन्स पूरी तरह विकसित नहीं थी। जब तीसरे या चौथे माह में बच्ची के पेट दर्द के कारण डॉक्टर को दिखाया गया तब उसके गर्भवती होने का पता चला। गर्भ हटाने के सवाल पर बच्ची की जान दाँव पर लग चुकी थी , सो माँ पिता ने चुपचाप उस गर्भ को बढ़ने दिया और सातवें महीने में उसे ये कह कर कि तुम्हारे पेट में पथरी है। उसका ऑप्रेशन कराना पड़ेगा अस्पताल में भर्ती किया। सिजेरियन के द्वारा उस बच्ची ने एक 2. 2 किलो की बच्ची को जन्म दिया। जन्मी बच्ची को तुरंत ही उस परिवार से अलग कर दिया गया क्योंकि उन्होंने उसके जन्म से पहले ही उसे अपनाने से इंकार कर दिया था।
अब इस घटना का असली इतिहास जाना जाए। इन सब का जिम्मेदार उस बच्ची का सगा मामा है। जो की अपनी बहन के घर रह कर पढाई कर रहा है। लगातार सात माह से वह निरंतर बच्ची के साथ दुष्कर्म कर रहा था। बच्ची थी इस लिए इसे मामा का खेल और प्यार समझ कर किसी से कुछ कह नहीं रही थी और उसके साथ समय गुजार रही थी। अब आगे क्या कहूँ , मेरे पास न तो शब्द हैं न ही किसी तरह की भावनाएं। सब मर सी गयी हैं। धिक्कार है आदमियत पर , उसकी मर्दानगी पर। छोटी बच्ची जो प्यार से उसे अपना सरंक्षक समझ रही हो उसी के हाथों लूट ली जाएँ। आखिर जो प्रक्रिया ईश्वर ने एक वयस्क शरीर के अनुसार गढ़ी है। उसे एक मासूम जान और शरीर के साथ कैसे पूरी की जा सकती है ? क्या ये वहशीपन नहीं है ? क्या इसे दरिंदगी न कहा जाए ? क्या वह बच्ची असह्य दर्द से कराहती नहीं होगी ? क्या वह इसे समझने की कोशिश नहीं करती होगी कि आखिर मामा उसके साथ क्या कर रहा है ? जिस
मेरी भी दस वर्षीय बेटी है। उसके स्वाभाव, दैनिक क्रियाओं और वक्तव्य में जो बचपना झलकता है। वो देख कर ख़ुशी होती है । इस ख़ुशी का कारण वो नादानी भरी बातें हैं जो किसी भी बड़े का मन मोहने के लिए काफी हैं। जैसे एक छोटे से सवाल से आप को उस बचपने का परिचय कराऊँ। एक दिन मेरी बेटी ने मुझ से पूछा की माँ बच्चे पेट में कैसे आते हैं ? सवाल ऐसा कि जवाब देना भी मुश्किल , लेकिन जरूरी भी। मैंने सोच समझ कर जवाब दिया कि ईश्वर से प्रार्थना करने पर भगवान बच्चे पेट में डाल देता है। तो पटलवार सवाल ये था कि तब तुमने शादी के पहले ही मुझे भगवान से क्यों नहीं माँगा ? ये सवाल भी मुश्किल , जवाब दिया कि शादी के पहले मैं अकेली थी। फिर मैं तुम्हें कैसे संभालती ? और अगर मैं तुम्हारी जरूरतें पूरी करने के लिए नौकरी पर चली जाती तो घर पर तुम्हारा ख्याल कौन रखता ? इस लिए शादी के बाद तुम्हे लाया गया कि तुम्हारे डैडी कमाने के लिए बाहर निकलेंगे और मैं घर में रहकर तुम्हारा ख्याल रखूंगी। डैडी जो कमा कर लाएंगे उससे हम सभी की जरूरत पूरी होगी। बच्ची संतुष्ट भी हुई और साथ ही जीवन में माँ पिता दोनों की अहमियत भी समझी।
इस किस्से का जिक्र मैंने यूँ ही नहीं किया। कारण है , ताकि बचपने की मासूमियत की झलक के साथ मैं आज प्रकाशित हुई चंडीगढ़ की एक भयावह घटना का जिक्र कर सकूँ। एक दस वर्षीय बच्ची ने एक सतवासी बच्ची को जन्म दिया। सतवासी अर्थात सातवें महीने में ही । बच्ची की उम्र इतनी कम थी की उसके पेल्विक बोन्स पूरी तरह विकसित नहीं थी। जब तीसरे या चौथे माह में बच्ची के पेट दर्द के कारण डॉक्टर को दिखाया गया तब उसके गर्भवती होने का पता चला। गर्भ हटाने के सवाल पर बच्ची की जान दाँव पर लग चुकी थी , सो माँ पिता ने चुपचाप उस गर्भ को बढ़ने दिया और सातवें महीने में उसे ये कह कर कि तुम्हारे पेट में पथरी है। उसका ऑप्रेशन कराना पड़ेगा अस्पताल में भर्ती किया। सिजेरियन के द्वारा उस बच्ची ने एक 2. 2 किलो की बच्ची को जन्म दिया। जन्मी बच्ची को तुरंत ही उस परिवार से अलग कर दिया गया क्योंकि उन्होंने उसके जन्म से पहले ही उसे अपनाने से इंकार कर दिया था।
अब इस घटना का असली इतिहास जाना जाए। इन सब का जिम्मेदार उस बच्ची का सगा मामा है। जो की अपनी बहन के घर रह कर पढाई कर रहा है। लगातार सात माह से वह निरंतर बच्ची के साथ दुष्कर्म कर रहा था। बच्ची थी इस लिए इसे मामा का खेल और प्यार समझ कर किसी से कुछ कह नहीं रही थी और उसके साथ समय गुजार रही थी। अब आगे क्या कहूँ , मेरे पास न तो शब्द हैं न ही किसी तरह की भावनाएं। सब मर सी गयी हैं। धिक्कार है आदमियत पर , उसकी मर्दानगी पर। छोटी बच्ची जो प्यार से उसे अपना सरंक्षक समझ रही हो उसी के हाथों लूट ली जाएँ। आखिर जो प्रक्रिया ईश्वर ने एक वयस्क शरीर के अनुसार गढ़ी है। उसे एक मासूम जान और शरीर के साथ कैसे पूरी की जा सकती है ? क्या ये वहशीपन नहीं है ? क्या इसे दरिंदगी न कहा जाए ? क्या वह बच्ची असह्य दर्द से कराहती नहीं होगी ? क्या वह इसे समझने की कोशिश नहीं करती होगी कि आखिर मामा उसके साथ क्या कर रहा है ? जिस
दर्द में वो मचलती है उसमें मामा को आनंद क्यों आता है ? ऐसे बहुत से सवाल मेरे मन में उठ रहे हैं। जिनका जवाब किसी के भी पास नहीं होगा। बस एक ही ख्याल आ रहा है कि काश मैं कानून बनाने वाली सदस्या होती तो ऐसे लोगो के लिए कोई ऐसी सजा बनाती कि तिल तिल मरने को मजबूर करके उन्हें मौत के लिए तरसा देती। ................. !
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