व्यवस्था के शिकार........ !
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 चाहे कोई भी पार्टी सरकार बनाये या फिर कितने भी नए नियमों के जरिये जनता को लुभा कर बेवकूफ बनाने की कोशिश करें। उनकी व्यवस्थाओं की पोल वह दुर्घटनाएं खोल देतीं हैं। जिसके लिए सीधे तौर पर वो ही जिम्मेदार होते हैं। इस चित्र को देखें समझें कि ये किस बात की ओर इशारा करता है ? एक मजबूर आदिवासी स्त्री या माँ और जमीन पर पड़ा उसका मृत बच्चा। यही सच्चाई है एक गरीब माँ की।  जो असहाय है , एक बड़े से अस्पताल में जा कर एक मोटी रकम खर्च कर के अपनी जचगी के लिए सुविधाएँ नहीं जुटा सकती। तकलीफ होती है देख कर कि जिन नेताओं को चुनकर हम लोग सरकार  में बैठाते हैं। उन्हें सिर्फ अपनी और आने वाली पुश्तों के इंतजाम की ही फ़िक्र रहती है।  ये समझ नहीं आता कि इंसान सूखी के बजाये मक्खन से चुपड़ कर भी रोटी खाये तो भी पेट जितनी ही खायेगा। यदि चार रोटी की ही भूख हो तो दस तो नहीं खा सकता। फिर इतना ज्यादा क्यों जोड़ने की  जुगत में लगे रहतें है ये सब नेता।
                                     एक महिला के लिए उसका गर्भकाल बहुत ही संकटकालीन और नाजुक समय होता है। उसे देख रेख और मदद की जरूरत होती है। आखिर नौ माह कोख में रखने के बाद औलाद को इस स्थिति में देखना उसके लिए कितना भयावह होगा ये सरकार में बैठे पुरुष कभी भी नहीं समझ सकते। "जाके पैर ना फटे बिवाई वो क्या जाने पीर पराई......" औरत की तकलीफ सिर्फ वह खुद ही समझ सकती है। कभी कभी लगता है कि क्या ये सत्य कहा जाता है कि कलयुग जब अपने चरम पर पहुँच जाएगा तब फिर से समय चक्र पलटेगा और सतयुग आएगा। अब इस राजनीति की गंदगी ने इस कदर गंद मचा कर रख दी है कि खुले में भी घुटन का अहसास होने लगा हैं।  आम लोग असहाय से उन नीतियों और योजनाओं की बलि चढ़ रहें हैं।  जो उनका भविष्य कुचलने के लिए बना कर तैयार बैठाई हैं। अब सही मायनों में हम सब यही चाहते होंगे कि प्रलय आये।  सब कुछ ख़त्म हो जाएँ।  ये निकम्मे और उदासीन नेता , ये भ्रष्ट सरकारी वर्ग , ये चरमराती व्यवस्थाएं , ये खून चूसने वाली योजनाएँ , ये उद्योगपतियों की लोलुप लालसाएं और अपने फायदे को लपलपाती इच्छाएं ,  यह सब ख़त्म हो जाएँ। ये दुनिया एक नए सिरे से फिर स्थापित हो , ताज़ी सी , खुले हवा के झोंकों सी । जिसमें सब कुछ अच्छा होने की उम्मीद तो बरक़रार रहें। हर व्यक्ति ये सोच कर जिए कि वह जो जीवन जी रहा है उसमें कई लोगों का योगदान  है। उन योगदानों के लिए उसका भी प्रतिदान बनता है। 
                               "आमीन........."
                      

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