उदासीनता का व्रत............... !
********************************
हम आस पास अनगिनत चीजों से घिरे रहते हैं जो हमें स्वतः अपनी और आकर्षित करती रहती हैं।  हम उनके मोह जाल में फंस कर अपने जीवन कि प्राथमिकताओं को भूल ही जातें हैं। आज एक ऐसे नियम कि चर्चा करतें है जिसको करने से या धारण किये रहने से इस तरह की बंदिशों और आकर्षण से बचा जा सकता है। 
                                       हम सप्ताह में किसी न किसी ईश्वर के नाम का ,कोई न कोई व्रत रखते हैं।  उस दिन या तो निराहार , या फलाहार या तो निर्जल रह कर इश्वर के प्रति अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं। तो क्या ऐसे में हम सप्ताह के कोई एक या दो दिन उदासीनता का व्रत रख सकते हैं ?......सबसे पहले इस उदासीनता का असल अर्थ समझें। उदासीन का शब्द विच्छेद है उत् +आसीन , अर्थात जो इस संसार कि जरूरतों से उपर उठ चुका है मतलब ये है कि जिस किसी ने अपनी जरूरतों पर काबू पा लिया हो वही सही मायनों में उदासीन हो पाया है।  
                   उदासीनता का ये अर्थ कदापि नहीं है कि अपनी वर्तमान में चलती जिम्मेदारियों के प्रति व्यक्ति उदासीन हो जाए और सभी निर्भर दुःख और तकलीफ झेलें।  उदासीनता इस सन्दर्भ में प्रासंगिक मानी जाएगी कि अनावश्यक इच्छाओं और जरूरतों पर लगाम लगा कर जीवन को सही दशा और दिशा दी जाए। 
                                                      इस उदासीनता के व्रत का पालन हम कैसे कर सकतें है ये भी विचारणीय मुद्दा है।  इस के लिए ये मन में प्रण करना चाहिए कि सिर्फ आज के दिन मेरे आँखों के सामने से जो भी स्थिति या चीज़ गुजरेगी वह मुझे आकर्षित या व्यथित नहीं करेगी।  कम से कम एक दिन मैं  उस के बिना अपनी जीवन कि कल्पना करने का प्रयास करूंगा। इस से एक लाभ हो सकता है कि वह आवश्यकता या परिस्थिति तात्कालिक हो।  हम उस पर लगाम लगा कर अनावश्यक खर्च से बच गए या तो परिस्थिति तात्कालिक थी तो हम उस पर प्रतिक्रियात्मक व्यवहार से बच गए। बाद में स्थिति सुधर गयी और न तो उस चीज कि आवश्यकता पड़ी न ही परिस्थिति ने उलझाया। अतः जीवन को सुधरने के कई तरीके हैं जिन्हें हम रोजमर्रा के जिन्दगी में अपना कर अपना जीवन बदल सकते हैं। 

Comments