डर फ़ोबिया ना बन जाए
डर फ़ोबिया ना बन जाए : *********************
कोई भी डर हम जन्म के साथ लेकर पैदा नहीं होते। जैसे जैसे बड़े होते हैं लोगों को देखते समझते हैं। उन्हें चीजों से डरता देख या उनके द्वारा बताई गई समझाईश से हमारे अंदर डर पैदा होने लगता है।
एक बहुत नन्हें बच्चे के सामने चाहे तो खिलौना रखो या सांप बिच्छू वो दोनों को बराबर ही समझेगा। क्योंकि उसे नहीं समझ की ये जंतु ख़तरनाक है। वो तो अनजानों की तरह उससे भी खेलने लगेगा। ये डर की भावना किसी भी बच्चे के अंदर उसके बड़े और आसपास का माहौल डालतें हैं। उसे बताया जाता है कि बिजली के plug से खेलना नुकसानदेह है करंट लग सकता है। उसे समझाया जाता है कि छत की दीवार से दूर रहना है ऊंचाई से गिर सकते हैं, वग़ैरह वग़ैरह। बहुत से डर और एहतियात बड़े बच्चों को बताते हैं।
हालांकि ये जरूरी भी है क्योंकि जन्मते बच्चे को बहुत से एहतियात किस तरह रखना है ये नहीं पता होता। उसके बड़े होने के दौरान अभिभावक और संगी साथी सभी उसे खतरों से वाकिफ कराते रहते हैं।
अब बात करते हैं कि डर फ़ोबिया कब बनता है ? ? जब किसी चीज़ से सावधान रहना सिखाया या बताया जाता है। तो उससे प्रति चैतन्य रहना बनता है। परंतु ये डर फ़ोबिया तब बनता है जब हर जगह वही चीज़ नज़र आ रही हो और ये अहसास पनपने लगे कि उस चीज़ के होने से जान को खतरा है। ऐसे में स्वछंदता से इधर उधर moov कर पाना मुश्किल होने लगता है। और इंसान अपने भयभीत विचारों का बंदी होने लगता है।
इसे रोकना जरूरी है और इसे रोकने के लिए सबसे पहले मन में विश्वास पैदा करना होगा कि जन्म मृत्यु ईश्वर के हाथ है। और जो भी डर की चीज़ हमें डरा रही हैं वो हमारे साहस से बड़ी नहीं है। अक्सर हम अपने भ्रम की वजहँ से ही डरते हैं।क्योंकि कभी कही सुनी कोई बात हमें उस माहौल की याद दिलाती है और हम डरने लगते हैं।तो ये सोचना जरूरी है कि हर बार एक समान परिस्थिति होए ये सम्भव नहीं। और जब पूर्व में जब ये घटना हुई तो उसके हम साक्षी नहीं थे। फ़ोबिया तब जन्म लेता है जब डर दिमाग पर अपना वर्चस्व कायम करने लगता है। ऊंचाई का डर, पानी का डर, अंधेरे का डर, अकेलेपन का डर, भूत प्रेतों का डर..आदि आदि। ये सब डर मस्तिष्क की उपज हैं। जिसमें मामूली सी सावधानी और जागरूकता इसे खत्म कर सकती है। ये हिम्मत मन को करनी होगी तब स्वतः दिमाग उसे मानने लगेगा। इसलिए किसी डर को फ़ोबिया बनने से रोकने के लिए पहले मन को मजबूत करना जरूरी है। तब तन और दिमाग उसी तरह react करने लगेंगे।
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