सच और झूठ के बीच का भ्रम

सच और झूठ के बीच का भ्रम : 

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जिसको हम तनाव समझ रहे हैं शायद

वह सहजता का खो जाना है...

जो घुटन सी महसूस हो रही और

स्वयं को एक अंतहीन संघर्ष में फंसा हुआ पा रहे हों 

 तब "हेल्प मी"- बेहद भारी शब्द बन गए

हम किसी से कुछ कभी नहीं कह पाए

कुछ मौन चीखें ब्रह्माण्ड की तरंगों में जा मिली 

और अग्नि की लपटों सरीखा द्वंद दिख रहा हो

जैसे हम स्वयं को ही स्वाहा कर रहे हों

परन्तु कंकाल हो जाना .... कला नहीं है

यह बस अनिच्छित मृत्यु का आह्वान है

एक मानसिक दुर्दशा है और मृत्यु समान पीड़ा है

जैसे हम हुआ करते वैसे हम आज नहीं हैं

क्योंकि असहज होकर हमने अपना वजूद बदल दिया

बस दिखाने के वास्ते जो ज़िन्दगी गुजर रही

वह शायद कहीं सच और झूठ के बीच हिचकोले खा रही।

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