अंदर की आवाज़ें

 अंदर की आवाज़ें :                                ****************

 चलिए आज एक छोटा सा व्यज्ञानिक प्रयोग करके देखते हैं। जिससे एक नया अनुभव होगा। किसी शांत कमरे में जाते हैं और अपने दोनों हाथों की ऊंगलियों को कान में ठूस दें। मतलब, कानों को ऊंगलियों से अच्छे से बन्द कर दिया जाए और फ़िर ध्यान से सुनें तो - एक "घर्रर" की आवाज में एक "Rumbling Sound" सुनाई देगा। 

ये अजीबोगरीब आवाज निरंतर सुनाई देगी और ये किसी और चीज की नहीं - बल्कि कानों को बंद की गई ऊंगलियों की मांसपेशियों के मूवमेंट की आवाज है, जो सामान्य परिस्थितियों में हम तक कभी नहीं पहुंचती। 

 तो आज समझते हैं आवाज अथवा ध्वनि के बारे में - जो कि हवा के अणुओं के कंपन से उत्पन्न होती हैं। पर अगर हवा अथवा पदार्थ हो ही नहीं, तो क्या कभी कुछ सुनाई देगा क्या ? ?

Intergalactic space - यानी दो आकाशगंगाओं के मध्य का खाली स्पेस, जो कि इतना खाली है कि एक घन मीटर के स्पेस में बमुश्किल एक-परमाणु ही होता होगा। तो क्या ऐसी जगह पहुंच कर कुछ सुना जा सकता है ? ? आवाज़ चूंकि अणुओं का कंपन से होती है और सुदूर अंतरिक्ष में जैसा है कि अणु हैं ही नहीं, तो इस प्रश्न का सीधा जवाब तो यह होना चाहिए कि स्पेस में कुछ सुनाई नहीं पड़ेगा। 

पर, सच में ऐसा है नहीं.....

क्योंकि... जब आसपास कुछ सुनने के लिए न हो, तो हम "अपने आप को" सुनने लगते हैं, जो कि... निःसंदेह बेहद डरावना अनुभव है। 

बाहरी दुनिया से खुद को पूरी तरह काटकर खुद को सुनना ही मेडिटेशन कहलाता है। लेकिन ये सत्य कि बाहरी दुनिया की अपेक्षा अपने अंदर की आवाज़ बहुत ही डरावनी और तकलीफ़ देह होती है। क्योंकि ये वो शोर होता है जिसे हम व्यक्त नहीं कर पाते। अक्सर हमने महसूस किया होगा कि बाहरी शोर के साथ साथ हमारे  दिमाग़ में कुछ झींगुर के बोलने जैसी आवाज़ें निरंतर सुनाई देती रहती हैं। ये आवाज़ें हमारे अंदर की हैं। और इन पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता। जोर से कान बन्दकर देने के बाद भी ये आवाज़ें दिमाग में गूंजती रहती हैं। क्योंकि ये आवाज़ें शरीर से जुड़ी हैं।ये हमारे जिंदा होने का सबूत हैं। कभी जब बिल्कुल शांत बैठो तो ये आवाज़ें सर दर्द भी करने लगती हैं।

इसे एक दूसरे उदाहरण से भी समझते हैं कि जब किसी का खुद पर नियंत्रण हो तो वह नाचेगा परन्तु जब किसी का खुद पर से नियंत्रण खत्म हो जाता है तब वह झूमने लगता है। उसकी आंखें बंद हो जाती हैं वो खुद को एक अलग ही दुनिया में महसूस करने लगता है।  खुद में ही खोने लगता है। बस यही है असल बात की ख़ुद से वास्ता रखने पर ही अपने अंदर का रहस्य पता चलता है । चाहे वो शोर जो, भावनाएं हो या शारिरिक गतिविधियों की स्थिति। भीड़ में रहकर कभी खुद से नहीं जुड़ा जा सकता। 

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