वक्त की समझ

वक़्त की समझ :  

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बहुत कुछ बहुत बार हम वक़्त पर छोड़ते हैं

उस वक्त की आस में कई उम्मीदें जोड़ते हैं

वो वक्त अक्सर आता है और चला जाता है

अधूरी रह गई ख्वाहिशों, ख्वाबों का ठीकरा

हम सभी अमूमन गुजरे वक्त पर ही फोड़ते हैं

खुशियां बच्चों की तरह चंचल हुआ करती हैं

कभी एक जगह पर मुस्तक़िल नहीं ठहरती

दुःख जिम्मेदार होते हैं अभिभावक की तरह

जो हर सीख को अनुभव की ओर मोड़ते हैं

ख़ुद को बेहतरीन बनाने की जगह अक्सर

हम बेहतर दिखने की कोशिश में लगे रहते हैं

यही सही वक़्त पर समझ नहीं पाते कि उसे

अपने मुताबिक जीने के लिए रिवायतें तोड़ते हैं

बहुत कुछ बहुत बार हम वक्त पर छोड़ते हैं

उसी वक्त की आस में कई उम्मीदें जोड़ते हैं।

        ~ जया सिंह ~

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