Conditioning अर्थात बनाई गई मानसिक स्थिति
Conditioning अर्थात बनाई गई मानसिक स्थिति : •••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
आजकल जब भी पितृसत्ता, फेमिनिज्म संबंधी विमर्श की बात होती है तो एक शब्द आपने अक्सर देखा होगा- "कंडीशनिंग"। अर्थात परिवार का व्यवहार या पालन पोषण से बनता व्यक्तित्व।
तो यह कंडीशनिंग होती क्या है ? ? और कैसे काम करती है ??
इसे एक "कुत्ते और घंटी वाला प्रयोग" के जरिये समझने की कोशिश करते हैं। जिसमें एक व्यक्ति अपने कुत्ते को भोजन देने के तुंरत पहले एक घंटी बजाता हैं। जिससे कुत्ते को ये पता होने लगता है कि अब खाना मिलेगा। कई बार ऐसा करने के बाद एक समय ऐसा आता है कि बिना भोजन दिए केवल घंटी बजाने पर ही कुत्ते के मुंह में लार आ जाती है।
वह क्लासिकल कंडीशनिंग का उदाहरण था और यह केवल कुत्तों से संबंधित नहीं बल्कि एक behavioral theory है कि "कोई भी प्राणी सीखता कैसे है"।
कंडीशनिंग मुख्य दो तरह की होती है:
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1. क्लासिकल कंडीशनिंग (Classical Conditioning): कुत्ते वाले परीक्षण ने यह सिद्ध किया गया था कि दो घटनाओं की साथ साथ पुनरावृत्ति उनमें एक अटूट संबंध स्थापित कर देती है और एक की आवृति होने पर दूसरी स्वतः उत्पन्न होने लगती है। हम बहुत सी परंपराएं, रीतियां, त्यौहार, बिहेवियरल पैटर्न, क्लासिकल कंडीशनिंग के रूप में सीखते हैं क्योंकि या तो वह परंपरागत चले आ रहे या वे किसी न किसी अवसर, घटना के साथ जुड़ी हुई हैं।
2. ऑपरेंट कंडीशनिंग (Operant Conditioning): यह सिद्धांत एक व्यज्ञानिक स्किनर द्वारा दिया गया था, जिसमें व्यक्ति के व्यवहार को बदलने के लिए पुरस्कार और दंड का उपयोग किया जाता है। स्किनर ने अपने प्रयोग में एक कबूतर को जालीदार box में बंद कर दिया। बॉक्स के अंदर एक लीवर था जिसे दबाने पर बॉक्स में भोजन आ जाता था। कबूतर के box में घूमने चलने के दौरान अनजाने में वह लीवर दब जाता है और उसके आगे खाना आ जाता है। ऐसा जब दो तीन बार हुआ तो कबूतर सीख गया कि इसी को दबाने से भोजन आता है, और उसने जब भी भूख लगे तो लीवर को दबाकर भोजन (पुरस्कार) प्राप्त करना सीख लिया।
स्किनर का सिद्धांत पुरस्कार और दंड के द्वारा एक मनमाफ़िक व्यवहार के सुदृढ़ीकरण की व्याख्या करता है। जैसा व्यवहार चाहिए वैसा करने पर पुरस्कार दो, और जैसा व्यवहार नहीं चाहिए वैसा करने पर दंड दो।
आज तमाम लोग स्त्रियों को उनके चालचलन के लिए कोसा जाता है कि नाक कटा दी परिवार की, अच्छी माँ नहीं , अच्छी बेटी नहीं, अच्छी बहू नहीं वग़ैरह वग़ैरह....इसके पीछे वही theory काम कर रही होती है कि पितृसत्ता के माफिक व्यवहार करने पर तो पुरस्कृत किया जायेगा लेकिन अगर विपरीत व्यवहार होगा तो दंड दिया जायेगा। यहां तारीफें, सुरक्षा के एहसास, गुणगान, कोई पद दिया जाना, आदि पुरस्कार हैं ...
और निंदा, गाली, बेइज्जती, आगे बढ़ने से रोकने के षड्यंत्र, survival मुश्किल कर देना, स्त्री के प्रति हिंसा, या हत्या सबंधी दंड है।
इस तरह स्त्रियों की कंडीशनिंग करके सुनिश्चित किया जाता है कि वे अपनी नैसर्गिक प्रकृति को दबाकर पितृसत्ता के अनुकूल व्यवहार ही करें।
कंडीशनिंग के लाभ : •••••••••••••••••••••
ऐसा नहीं है कि कंडीशनिंग सिर्फ बुरी ही है। कंडीशनिंग के उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में होते हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख उपयोग निम्नलिखित हैं:
1. Behavior therapy : कंडीशनिंग का उपयोग विभिन्न मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं जैसे फोबिया, चिंता, और अवसाद के इलाज में किया जाता है।
2 . Education : क्लासिकल कंडीशनिंग का उपयोग छात्रों को नई जानकारी सिखाने में किया जाता है, जैसे कि मैथमेटिकल और लॉजिकल फील्ड में (उदाहरण - अगर ऐसा है तो ऐसा होगा)। जब छात्र कोई नई जानकारी सीख लेते हैं या कोई उपलब्धि प्राप्त करते हैं तो पुरस्कार देकर मनोबल बढ़ाना, या किसी गलत व्यवहार पर दंड देना यह ऑपरेंट कंडीशनिंग द्वारा व्यवहार सुधार का उदाहरण है।
3. Advertisement and marketing : यह क्लासिकल कंडीशनिंग के उपयोग का एक बेहद प्रभावी उदाहरण है। विज्ञापनों में उत्पादों के प्रति आकर्षण बढ़ाने के लिए व्यक्तिगत खामियों की खास तवज्जो फि जाती है। गहरी रंगत, सफेद बालों, अत्यधिक मोटे शरीर को शर्मिंदगी, करियर अवसरों को खोने से संबद्ध करके एक ख़ास प्रोडक्ट को खरीदने के लिए कंडीशन करने का प्रयास किया जाता है।
4. Animal traning : क्लासिकल कंडीशनिंग का उपयोग पशुओं को नई कौशल सिखाने में किया जाता है, जैसे कि पालतू जानवरों, आर्मी डॉग्स को प्रशिक्षित करना।
● कंडीशनिंग के दोष - कंडीशनिंग स्त्री और पुरुष दोनों की ही की जाती है। भावनात्मक और व्यावहारिक कंडीशनिंग के जरिये दोनों को इंसान से परे ले जाकर स्त्री और पुरुष बना दिया जाता है। पुरुष को कठोर और अमानवीय, और स्त्री को सहनशील और समर्पिता। दोनों के व्यवहार के लिए जो ये तय मानदंड हैं इनकी इतनी गहरी कंडीशनिंग कर दी जाती है कि वे इसे प्राकृतिक भूमिकाओं की तरह देखने लगते हैं।
जबकि स्त्री और पुरुष में प्राकृतिक भेद मात्र जनन अंगों का है। पुरुष लिंग का प्रयोग करके पैसे नहीं कमाता और स्त्री गर्भाशय या योनि का प्रयोग करके रोटी नहीं बनाती। पैसे मिलते हैं तो पुरुष होटलों में टॉप क्लास शेफ भी बनते हैं, मेंहदी लगाते हैं, झाड़ू पोंछा करते हैं, मेकअप आर्टिस्ट बनते हैं.. (जो कि स्त्रियों के काम और प्रकृति प्रदत्त दायित्व बताए जाते हैं)
स्त्रियां भी ज़रूरत पड़ने पर ईंटें ढोना, मजदूरी, खेत में फावड़े चलाना, ट्रेन चलाना, प्लेन उड़ाना वे सारे कार्य करती देखी जाती हैं जिन्हें बाहर काम "कठिन" है कहकर केवल पुरुषों के लिए रिजर्व बताया जाता है।
कंडीशनिंग सिर्फ़ वातावरणीय और सामाजिक दायित्वों का थोपा हुआ एक आचरण भर है। क्योंकि अगर इंसान अपने लिंग की खूबियों के अनुसार विकसित होए तो वह वो सब भी कर सकेगा जो अपने सामर्थ्य से परे जाकर भी उसकी करने की इच्छा है। खुद को मजबूत बनाना और बाहरी परिदृश्यों से प्रभावित ना होना ही सही कंडीशनिंग है।
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