चिरस्थाई प्रेम या अस्थाई तोहफ़े
चिरस्थाई प्रेम या अस्थाई तोहफ़े : •••••••••••••••••••••••••••••••• बचपन की बातें आज भी मन में एक मीठी सी स्मृति बनकर तैरती हैं। कौवे की कांव-कांव सुनते ही छोटे से दिल में उमंग जाग उठती थी कि आज कोई मेहमान जरूर आएगा ! और मेहमान का मतलब था घर में मिठाई, नाश्ते और बिस्किट की बहार। मैं भी चंचल सी बच्ची इधर-उधर भागती, मेहमानों के स्वागत में कम, अपनी उम्मीदों के पीछे ज्यादा दौड़ती। कुछ मेहमान खाली हाथ आते, तो कुछ मिठाई का डिब्बा या बिस्किट का पैकेट लाते। मगर मेरी नन्ही नजरें तो सबसे ज्यादा उस पल पर टिकी रहतीं, जब मेहमान अलविदा कहते वक्त मेरी हथेली में कुछ सिक्के या नोट थमा जाते। पापा-मम्मी की सख्त हिदायत होती, “कुछ लेना नहीं, मांगना तो बिल्कुल नहीं!” मगर मैं थी कि उनकी बात कहां मानती? एक बार ना-नुकर करती, फिर तुरंत अपनी छोटी सी हथेली आगे बढ़ा देती। जैसे ही सिक्का या नोट मेरे हाथ में आता, मैं उसे अपनी मुट्ठी में बंद कर, दौड़कर अपने गुल्लक में डाल देती। सिक्के जमा करने का मेरा अलग शौक था। हर सिक्के के साथ मेरे सपने भी जमा होते थे । कभी नई गुड़िया, कभी चॉकलेट या कभी कुछ और।...