बुढ़ापे में निर्भर ना होने की तैयारी
बुढ़ापे में निर्भर ना होने की तैयारी :
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जीवन अपने पूरे काल में कितने ही रंग दिखाता है। बचपन से जवानी और जवानी से बुढापा। ये चक्र बहुत सी ऐसी भावनाओं को संजो कर गुजरता है। जिसमें इंसान कभी ख़ुश कभी दुखी होता रहता है।
बचपन परिवार और अभिभावकों के भरोसे कट जाता है। जवानी तक आते आते स्वालंबन आ जाता है। खुद के बल पर जीने की कवायद शुरू हो जाती है। और अपने बच्चों का पालन पोषण करने की जद्दोजहद। लेकिन उस समय भी शरीर में पर्याप्त हौसला रहता है। जो विपरीत स्थितियों से लड़ते हुए बेहतर जीता है।
बुढ़ापा एक ऐसा काल है जहां निर्भरता, असहायता और दुर्बलता सब एक साथ आ जाती है। और सबसे विकट बात ये की हिम्मत ख़त्म हो चुकी होती है।
अभी हाल ही में एक सर्वे हुआ जिसमें ये सामने आया कि देश के 70% बुजुर्ग दूसरों पर निर्भर हैं। इसीलिए रिटायमेंट के बाद भी काम करने को बाध्य हैं। ताकि अपना गुजारा चला सकें।
★ अब जो बात कहने जा रही हूं वो कड़वी है। पर इसे समझने के बाद महसूस होगा कि ये करना ही आज के जीवन की सच्चाई है।
जीते जी हम अपने बच्चों की परवरिश के लिए जवानी धन और संसाधन झोंक देते हैं । उनके बेहतर भविष्य के लिए और इस उम्मीद के लिए की वो एक मुकाम पर पहुंचकर हमारी देखभाल करेंगे।
ये आज के परिपेक्ष्य में बिल्कुल ग़लत है। आज की नई पीढ़ी सिर्फ खुद की सगी है। उनके लिए सर्वप्रथम वो ही आते है। उनका जीने का तरीका काम करने का सलीका, संबंद्धो को निभाने का तरीका खुद की शर्तों के हिसाब से चलता है। इसलिए उन पर प्यार लुटा कर निर्भरता की उम्मीद ना रखी जाए।
1.सबसे पहले तो अपने बुढापे की ख़ातिर धन जमा करते रहना चाहिए। ताकि मूलभूत जरूरतों के लिए उनके आगे हाथ ना फैलाना पड़े।
2. अपने स्वास्थ्य का ख़ुद ही बेहतर ख्याल रखना चाहिए।
3. बच्चो के बजाए कुछ ऐसे संबंद्ध बनाकर रखने चाहिए जो स्नेह के ख़ातिर कभी कभार ख़ैर खबर ले लिया करें।
4. असहायता में जल्दी किसी पर विश्वास नहीं किया जाना चाहिए। लोग धन और चीज़ो की लालच में जान भी ले सकते हैं।
5. पांचवा, अगर बच्चे छोड़ भी दें तो गावँ के संयुक्त परिवार में रहने को प्राथमिकता देनी चाहिए। शहरों की अपेक्षा गावँ में आज भी अपनापा रहता है।
बच्चे आजकल बेहद स्वार्थी और निरंकुश हो गए हैं। उन्हें जवानी तो क्या बचपन गुजरने के बाद थोड़े ही समय पर अभिभावक अपनी जिंदगी का रोड़ा लगने लगते हैं। जो उनकी आजादी, दोस्तों और दिनचर्या पर नियंत्रण रखने की कोशिश करने वाले लगते हैं। उस समय जब वो खुद आर्थिक रूप से अभिभावकों र् निर्भर हैं तब उनका रवैया ऐसा होता है। जब वो खुद कमाने लगेंगे तब क्या ही मां बाप को पूछेंगे ? ? इसलिए अगर प्रौढ़ता की ओर बढ़ रहे हैं तो अपने भविष्य की चिंता खुद कीजिये। बच्चों से उम्मीद मत रखें।
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