भुलावे में क्यों रखो खुद को
भुलावे में क्यों रखो ख़ुद को :
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और कितना भुलावे में रखेंगे खुद को
कि सब कुछ अच्छा ही तो चल रहा..!
कब तक चेहरे पर मुस्कुराहटें लिए हुए
छुपाएंगे वो मंथन जो अंतस में पल रहा
अक्सर अपनी गलती न होकर भी हमने
बहुत पीड़ा सही है पर किसी से न कही है
उसे क्या अपना कहे जो समझ नहीं पाता
कि दिल को कौन सा अनुभव खल रहा
फालतू बातें है कि ख़ुद अच्छे बन जाओ
तो दुनिया हमारे साथ अच्छी होने लगेगी
सरल होने की कोशिश में हमने वो तूफ़ान
अनदेखा किया जो कहीं भीतर मचल रहा
व्यक्तित्व का बाहरी शांत आवरण देखकर
लोग ये मान लेंगे हैं कि सब कुछ ठीक ही है
क्या कोई समझ पाएगा कि इक दर्द का
जंगल भीतर मुद्दतों से धू-धू कर जल रहा
आदत नहीं कि अपनी पीड़ा सबसे कहें
बस गले तक रुलाई भर कर हंसते रहते हैं
अपना व्यक्तित्व भी अब सबको भुलावे की
खुशनुमाई का भरम दिखा झूठ में ढल रहा !
~ जया सिंह ~
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