भाग - 2 मन की स्थिति और शरीर की प्रतिक्रिया
मन की स्थिति और शरीर की प्रतिक्रिया :
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भाग - 2
जैसा कि पिछले अंक में हम सबने ये समझा की हमारी मानसिक स्थिति का प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ता है। ये प्रभाव विभिन्न रोग या पीड़ा बनकर सामने आते हैं। हालांकि ये भी सत्य है कि रोग हो जाने पर उसका चिकित्सक से इलाज करवाना आवश्यक होता है। परंतु ये भी सत्य है कि अगर मन की स्थितियां उत्तम रखी जाए तो इन रोगों का शरीर में आना ही असम्भव हो जाएगा।
शरीर की आधी से ज्यादा पीड़ा हमारी सोच बढ़ाती है। और सोच सही रखने पर वह तकलीफ़ स्वतः ही अपना अस्तित्व खोने लगती है।इसलिए सबसे पहले अपने betterment के thoughts और well being का ख़्याल मन में होना चाहिए।
चलिए ऊपर से शुरू करते हुए हर अंग के साथ नकारात्मक सोच का परिणाम जानते हैं :
★ सर में मस्तिष्क हमारे पूरे शरीर का प्रतिनिधित्व करता है। उसके ही कमांड से पूरा शरीर कार्य करता है। दर्द, खुशी , उत्साह, उत्तेजना सब उसी के कारण महसूस होती है। मस्तिष्क में अच्छा या बुरा महसूस होने पर उसका संन्देश पूरे शरीर में जाता है। जब भी हम खुद के बारे में असहज होते है। अंदर कहीं खुद के लिए गुस्सा भर कर रखते हैं। खुद को किसी बात के लिए blame करने लगते हैं। अपने दिमाग को ये सोचने का तनाव देने लगते है कि हम बेकार हैं हमें कोई प्यार नहीं करता आदि आदि। तब सिरदर्द , माइग्रेन, मिर्गी जे दौरे आदि पड़ने लगते हैं। जो कि खुद से अनिच्छा के शारीरिक लक्षण हैं।
★ हमारे बाल शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं। डर और दर्द में बाल खड़े हो जाना रोएं खड़े हो जाना इसी का विपरीत प्रमाण है। जब भी हम तनाव में , डर में या दर्द में होते हैं। हमारे बाल अत्यधिक झड़ने लगते हैं। क्योंकि उनकी जड़ों की मजबूती खोखली हो रही होती है। यही आगे चलकर गंजापन बन जाता है।
★ कान सुनने के लिए होते हैं।लेकिन ये भी है कि कान चाहता है अच्छी बातें सुनी जाए। तेज़ धूम धड़ाके वाला शोर, बुरी ध्वनि उसको असहज करती है। जब भी आसपास कुछ ऐसा सुनाई दे रहा हो जिसे हम सुनना नहीं चाहते तो कहीं अंदर बेचैनी और गुस्सा पनपता है यही गुस्सा कान में दर्द पैदा करता है। अमूमन बहरापन किसी भी बात को लंबे समय से इनकार करने की स्थिति से पैदा हुई तकलीफ़ है।
★ आंखें देखने के लिए काम आती है। बहुत सी ऐसी स्थितियां जिन्हें हम देखना नहीं चाहते वही निरंतर देखनी पड़े तो आंखों में तकलीफ़ पैदा होती है। क्योंकि उस समय मन अपना ध्यान उस बात से हटाने के लिए मोबाईल या टीवी का सहारा लेता है। निरंतर स्क्रीन के संपर्क में रहने से भी आंखों में बीमारी या तकलीफ़ होने लगती है। जो कि चश्मा लगने या अंधे होने तक चली जाती है।
★ गर्दन या गला विचारों में लचीले होने, किसी दूसरे के पक्ष को समझने और अलहदा दृष्टिकोण को अपनाने का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनमें stiffness का अर्थ होता है कि हमारा लचीलापन खत्म हो रहा है। हम जिद्दी और दंभी हो रहे हैं। इसका ही परिणाम है कि अक्सर लोगों को गले में कॉलर पहने देखा जा सकता है। गले का दर्द क्रोध का प्रतीक होता है जिसमें गला खराब हो जाता है बोला नहीं जाता। गले में दर्द होने लगता है। खांसी आने लगती है। गले की तकलीफ़ हमेशा खुद को दबा कर दूसरों को खुश करने और उनका मनचाहा बोलने से आती है।
★ बाहें जीवन के अनुभवों को समेटने का प्रमाण देती है। वे हमारी क्षमता और योग्यता को परिभाषित करती हैं। हाथ ग्रहण करना पकड़ना , जकड़ना सिखाते हैं। हाथ सौम्य हो सकते हैं और सख़्त भी। मुट्ठी बांधना - मजबूत होना या रिजिड होना , उंगलियों से कुछ फिसल कर जाने देना - मतलब कोई ना हांसिल होने वाली चीज के लिए व्यर्थ का ढक प्रयास ना करना, हाथ बढ़ा देना - दोस्ती करना, हाथ खींच लेना - किसी की मदद के लिए इंकार करना, हाथ मिला लेना - किसी को आश्वासन देना, किसी के हाथ के नीचे हाथ रख देना - मतलब उसे सहारा महसूस कराना ये सब एक तरह के व्यवहार के इशारे हैं ।
कंधों में दर्द अर्थात स्वभाव में लचीलेपन का अभाव हो रहा है। निरंतर आलोचनात्मक सोचते रहने से हाथ पैर की उंगलियां मुड़ने लगती हैं। व्यवहारिक सख़्ती हाथों की पकड़ कम करती है। इसी तरह उंगलियां की तकलीफ़ भी मानसिक प्रतिक्रिया से प्रभावित होती है।
★ पीठ हमारे सहारे का प्रतिनिधित्व करती है। पीठ का दर्द ये दिखाता है कि हम बहुत से लोगों के बीच रहकर भी खुद को बेसहारा महसूस करते हैं। अमूमन हम बहुत से लोग सिर्फ़ पति पत्नी बच्चे कुछ करीबी रिश्तेदार आदि को ही सहारा महसूस करते हैं जबकि सृष्टि का हर कण हमारे लिए कुछ ना कुछ कर रहा है। जब कभी हमारे कृत्य से ये क्रियाकलाप बिगड़ता है तो हम खुद को दिशाहीन पाने लगते है। अकेला और टूटा हुआ। तब हमें पीठ ही मजबूती देकर खड़ा होने में मदद करती हैं। तनी हुई पीठ के साथ किसी का सामना करने में आत्मविश्वास झलकता है। जबकि झुकी हुई पीठ और कमर कमजोरी और असहायता का प्रतीक मानी जाती है।
★पेट हमारे नए पुराने, अच्छे बुरे अनुभवों को पचा लेने में मदद करता है। जो चीज़ हम पचा नहीं पाते वह उल्टी से निकाल देते हैं। हवाई जहाज में थ्रो अप बैग्स रखे जाते है। जो हवाई सफर में असहज होते हैं उन्हें उल्टियां होने लगती हैं। लेकिन जो सहज होते हैं वो आराम से बैठते हैं। बस पेट भी इसी तरह विचारों मानसिकता और धारणाओं को स्वीकार या अस्वीकार करने की शक्ति रखता है। हम सबकी अपेक्षाओं पर खरे ना उतरने के कारण अपने व्यक्तित्व को पचा नहीं पाते उसकी अवहेलना करते हैं । यही अवहेलना भोजन और स्वास्थ्य के रूप में सामने आती हैं। पेट दर्द, अल्सर, अपेंडिसाइटिस, अंतड़ियों में पानी भरना इत्यादि तकरीबन 60 प्रतिशत मानसिक विकार से जुड़ी दिनचर्या के रोग हैं।
★ घुटना, गर्दन की ही तरह झुकना , गर्व , अहंम् और जिद का प्रतिनिधित्व करता है। हम आगे तो बढ़ना चाहते हैं पर सपने तरीकों को नहीं बदलना चाहते। घुटनों के दर्द जिद , दम्भ और अहम का प्रतिफल है। जब जब व्यक्तित्व में लचीलापन बढ़ेगा। शरीर का हर जोड़ बेहतर काम करेगा।
★ पांव हमारी अतीत वर्तमान और भविष्य की समझ को प्रतिबिंबित करते हैं। अक्सर बहुत बूढ़े लोगों को चलने में बाधा होती है तो साथ ही उनकी समझ भी बाधित होती है। उन्हें नहीं पता चलता वो कहाँ जा रहे। जबकि एक बालक उछलता खेलता कूदता भागता रहता है। घिसटकर चलना इसी बाध्यता को दिखाता है।
★ जननांग किसी भी इंसान का बहुत निजी अंग होता है। और इससे सम्बंधित रोग सबको खुल कर बताए भी नहीं जा सकते। ये किसी स्त्री या पुरुष का अपने लिंग को खुशी खुशी स्वीकार ना कर पाने की प्रतिक्रिया होती है। मूलतः जननांगों को गंदे रूप में देखा जाता है उसे सार्वजनिक तौर पर बोलना भी सही नहीं माना जाता। इसी प्रकार की कुंठा और अपने अस्तित्व को जस के तस ना स्वीकारने पर ही ये रोग उभरते हैं। मूत्राशय मलाशय सम्बंद्धि समस्या, प्रोस्टेट , बांझपन, सेक्स में अरुचि आदि जैसे कई रोग हैं जो इन मानसिक विकारों का परिणाम है।
इसी तरह कुछ सामान्य रोग भी जैसे बुखार, फोड़े फुंसियां, घाव हो जाना ये सब मन में दबे क्रोध का कारण है जो कि शरीर इस तरह बाहर निकालता है। खुद को परफेक्ट दिखाने की चाह और शरीर को दुबला पतला रखने की जुगत ने आजकल अर्थराइटिस को जन्म दे दिया है। क्योंकि शरीर अपना अस्तित्व खुद संभालने में सक्षम है उसे अप्राकृतिक रूप से वैसा रखने की कोशिश जैसा हम चाहते है। एक बीमारी का कारण बनता है। घुटने और गर्दन लचीलेपन से सम्बंधित होते है। जब विचारों में कड़ापन आता है। तब अहम भी stiff हो जाता है । और स्टिफनेस तो ये घुटने और गले के movement में बाधक बनती है। शरीर का हर अंग लचीलापन चाहता है। जिससे उसमें गतिशीलता बनी रहे। यही गतिशीलता विचारों में से होकर शरीर को मिलती है।
इसलिए सबसे पहले अपने विचारों को परखा जाए। उनमें आई तमाम कमियां दूर की जाएं। अपने आप शरीर के 80 प्रतिशत रोग ठीक होने लगेंगे। बाकी असाध्य रोगों के लिए डॉक्टर और दवाइयां तो लेनी ही होंगी। पर उससे पहले अपना इलाज घर पर खुद से शुरू करना होगा।
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