ना ही मिलो तो अच्छा है

ना ही मिलो तो अच्छा है :                            ••••••••••••••••••••••••

चेहरे की रौनक छीनने वालों

दुबारा ना ही मिलो तो अच्छा है

परवाह का दिखावा क्यों जब

अंतस में विरक्ति का भाव सच्चा है

समझ ही नहीं आ रहा आखिर 

गलत क्या है, मेरा स्वभाव या वक्त

बड़े होने की जुगत की तो पर

अंदर आहत होता हुआ इक बच्चा है

लहज़े से मन पढ़ लेते है हम

बस शर्मिन्दा ना करने की आदत है

हंसते हुए हर उपहास टालकर

अक्सर हम खुद को दे रहे गच्चा हैं

नहीं रहेंगे हम और तुम इक दिन

बहुत गीले शिकवे लेकर चल रहे हो

रेत की मानिंद जिंदगी झड़ रही

दिन ब दिन बड़े होने का वहम कच्चा है।


                         ~ जया सिंह ~

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