अब कौन जाएगा स्कूल
अब कौन जाएगा स्कूल :
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सुबह सवेरे माँ रसोई में जाकर
खाने का डिब्बा बनाने की तैयारी करती है
उठ जा स्कूल का समय हो गया
यह चिल्लाते हुए रोटियां डिब्बे में भरती है
अलसाये हुई सी आंखें लिए वो
उठ कर मां के आंचल में छिप जाता है
इस उम्मीद से कि प्यार में माँ
आज छुट्टी कर ही ले...ये कब कहती है
पर मां ठहरी मां.. उसे पुचकारकर
जल्दी वर्दी पहन तैयार होने को भेजती है
मन मसोस तैयार होकर बस्ता-डिब्बा
साथ लेकर सवारी स्कूल की ओर चलती है
क्या पता था माँ को कि आज उसकी
ज़िद माननी चाहिए थी उसे जिंदा देखने को
उसकी सकुशल घर वापसी को
जिसने ख़त्म कर दिया लिया वो उसकी सख़्ती है
स्कूल की छत भरभरा कर ढह गई
तमाम बच्चे मलबे में दब कर घुटन से मर गए
ये प्रशासन की नहीं बल्कि उन मासूमों
के पढ़ने और कुछ बनने की जिद की गलती है
जिनकी खरोंच से दिल छलनी हो जाता
आज उनके टुकड़े पथरीले मलबे में तलाश रहे हैं
किसे दोष दें क़िस्मत को, प्रशासन को
या ईश्वर को आज इन सवालों की टीस चुभती है
खो गया है आज घर का उजियारा
थम गई चहलपहल, अब से हर सुबह शांत होगी
बाकी कहीं कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा
क्योंकि हर किसी के अपने की अलग गिनती है !!
★ उपरोक्त कविता राजस्थान के झालावाड़ जिले में एक स्कूल की छत टूट कर गिर जाने से मरे 22 बच्चों की कहानी हैं। मां बाप कैसे निराशा से मलबे में दबे अपने जिगर के टुकड़ों को तलाश रहे। इससे निष्क्रिय प्रशासन को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। उनके बच्चे बड़े और महंगे स्कूलों में पढ़ रहे। और जाके पैर ना फटी बिवाई वो क्या जाने पीर पराई। जब ख़ुद की औलाद के साथ ईश्वर ना करे ऐसा हो तो पीड़ा पूछी जाए। पर राजीनीतिक गंदगी ने आजकल आम जन की औकात कीड़े मकोड़े की तरह बना कर रख दी गई हैं।
मां हूँ ना, सोच कर दिल बैठने लगता है कि उस माँ की क्या हालत होगी जिसका बच्चा अब उसे कभी नहीं दिखेगा। कभी घर में उछलकूद नहीं करेगा। कभी उसके गले लटक कर फरमाइशें नहीं करेगा। क्योंकि वो तो राजनीति की गंदगी की भेंट चढ़ चुका। शर्म है ऐसी सरकार पर और उसके प्रशासन पर....!!😭😭
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