"दादा खरीदे पोता बरते" वाली सोच को कुचलता आज का विकास

दादा खरीदे, पोता बरते"  वाली सोच को कुचलता आज का विकास :   

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आज फोन जीवन का अनिवार्य हिस्सा बन गया है। मेल से लेकर सोशल मीडिया यहां तक कि बैंकिंग और डिजिटल सेवाओं से जुड़े हर कार्य के लिए ऑथेंटिफिकेशन मांगा जाता है। जो ओटीपी के माध्यम से रजिस्टर्ड नम्बर पर आता है। कोई भी पोर्टल बिना लॉगिन के नहीं प्रयोग किया जा सकता। जब कोई चीज़ आज की जिंदगी में इतनी जरूरी हो गई है। तब उसकी उम्र इतनी कम क्यों रखी गई। अर्थात कोई भी फ़ोन चार पांच साल से ज्यादा सही नहीं क्यों नहीं रहता। इसकी उम्र महज़ पाँच वर्ष क्यों होती है ? ?

नियोजित अपव्यय (Planned Obsolescence)

आज के स्मार्टफोन एक साजिश के तहत बनाए जाते हैं। यह साजिश है – "नियोजित अल्पायु उत्पाद" की। पुराने जमाने में एक कहावत प्रचलित थी —

  "दादा खरीदे, पोता बरते"

 अब वह कहावत इतिहास हो गई। अब हम ऐसे उत्पादों के आदी हो चुके हैं जिनका जीवनकाल ही पहले से तय होता है — चार से पाँच वर्ष। उसके बाद या तो हार्डवेयर नाकाम हो जाएगा, या सॉफ़्टवेयर अपडेट बंद हो जाएंगे।


आप कहेंगे – "पुराना फोन रिपेयर करवा कर भी तो इस्तेमाल कर सकते हैं।" हाँ कर सकते हैं ना लेकिन उसमें अपडेट नहीं आते। हर छह महीने में नया अपडेट, नया एंड्रॉइड वर्ज़न, और नई सिक्योरिटी — ये सब ना मिले, तो वो फोन खुद-ब-खुद असुरक्षित और अनुपयोगी घोषित हो जाता है।

लेकिन क्या कभी आपने सोचा है, कि एक स्मार्टफोन बनाने में कितनी और क्या मटेरियल लगता है ? एक औसत स्मार्टफोन में 50 से अधिक धातुएँ और दुर्लभ तत्वों का उपयोग होता है। उसके लिए कितने दोहन होते हैं जंगल कटते है आदि आदि। 

प्रमुख धातुएँ और उनके उपयोग:

कोबाल्ट ,लिथियम , टंगस्टन सोना , चांदी ,एल्युमीनियम आदि बहुत सी धातुएं उसके विभिन्न पार्ट बनाने में उपयोग में ली जाती है।

प्रभाव का दायरा:

खनिज दोहन का विस्तार – अफ्रीका, एशिया और दक्षिण अमेरिका के जंगलों में लाखों एकड़ भूमि खोदी जाती है।

 वन्यजीवों पर संकट – खनन के कारण उनके आवास नष्ट होते हैं, शिकार और अवैध व्यापार भी बढ़ता है।

 स्थानीय जनजातियों का विस्थापन – जल, जंगल और जमीन से काटे गए समुदायों का शोषण।

 कार्बन उत्सर्जन – खनन और शोधन प्रक्रियाएं भारी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसें छोड़ती हैं।

 ये भी जान लेना आवश्यक है कि — एक स्मार्टफोन बनाने में जितनी ऊर्जा खपत होती है, उससे अधिक उसके निर्माण के दौरान उत्सर्जित कार्बन का असर होता है?

तो हम विकल्प क्यों नहीं तलाशते ? ?

हमने कभी यह मांग क्यों नहीं उठाई कि ..............!

 फोन अपग्रेडेबल हार्डवेयर के साथ आए।

सॉफ़्टवेयर 10 वर्षों तक अपडेट हो।

 कंपनियाँ मरम्मत योग्य डिज़ाइन बनाएं।

हम एक ऐसे दौर में हैं जहाँ स्मार्टफोन का मतलब है नए खनिजों की कब्रगाह।

समाधान क्या है?

✅ स्थायी तकनीक की मांग करें

✅ पुराने फोन को रिसायकल करें

✅ ओपन-सोर्स सॉफ़्टवेयर को बढ़ावा दें

✅ उपयोग की संस्कृति से हटकर संरक्षण की संस्कृति की ओर लौटें

✅ “दादा खरीदे पोता बरते” जैसी सोच को फिर से जीवित करें

यह केवल एक फोन नहीं है, यह एक जंगल है जो मरा है। यह एक जानवर है जो उजड़ गया है। यह एक बच्चा है, जो अपने ही गाँव से विस्थापित कर दिया गया है। अगर हम नहीं जागे, तो अगली बार जब आप नया फोन खरीदेंगे, शायद आप अनजाने में किसी पहाड़ को खा जाएंगे — या किसी पक्षी का घर।

अब फैसला हमें करना है — सुविधा के नाम पर कितनी तबाही और कितना जीवन निगलना है।


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