क्या समेटें क्या सहेजें ......😞

क्या समेटें क्या सहेजें : 😞

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क्या समेटें और क्या सहेजें, बहुत कुछ प्यारा खो गया

जिन बातों के होने का डर था ऐसा बहुत कुछ हो गया

ज़िन्दगी कतरा - कतरा बिखर रही है हर घड़ी हल पल

अब क्या ही वापस आएगा वो, खुशियां लेकर जो गया

भरोसा तो साँसों का ही नहीं जिसके भरोसे ज़िन्दगी है

फ़िर हम लोगों से भरोसे की उम्मीद करते ही क्यों है...? 

तभी तो शायद अधूरा सा रहा हमारी जिंदगी का सफ़र

ग़लत रस्तों कभी गलत लोगों का संग किस्मत डुबो गया

सिर्फ़ बोलना ही तो बोलने का हिस्सा नहीं हुआ करता

अबोला भी तो उसी का एक अंश है.....जो देता दर्द है

एक बार कोई परायापन महसूस करा दे तो फिर लाख

चिकनी चुपड़ी बातें कर ले वो मन से पराया ही हो गया

मन में चलने वाले जानलेवा युद्ध के बीच... कोई हम में

ठहरे भी तो कैसे, हम कोई चक्रव्यूह नहीं खुले दरवाजे हैं

लोग आते रहे जाते रहे, रुकने की किसी को फ़ुर्सत नहीं

बस जो भी आया गया वो अवहेलना का दंश चुभो गया

   

             ~ जया सिंह ~

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