Epigenetics अर्थात वातावरणीय बदलाव
Epigenetics अर्थात वातावरणीय बदलाव :
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भाग - 1
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हालांकि जो विज्ञान के विद्यार्थी रहे हों वो इसे मेरे बताए लेख से भी बेहतर समझते होंगे। पर हम जैसे आम लोग जिन्होंने विज्ञान नहीं पढ़ा उनके लिए इसे सामान्य तरीके से समझना एक खोज की तरह हैं। ज्ञान चाहे वह कहीं से कैसा भी मिले उपयोगी ही होता है। और उसका एक तिनका भी कभी कहीं काम में आ सकता है।
क्या आपने कभी देखा है कि किसी परिवार में अभिभावकों से विपरीत संतान का जन्म होता है। जैसे कद काठी, आंखों का रंग, त्वचा का रंग या शारिरिक बनावट इत्यादि। हालांकि जेनेटिकली बच्चा 70 से 80 % तक अपने परिवार की छवि के अनुसार ही जन्म लेता है। पर कुछ वातावरणीय और आदतों से सम्बंधित गुणों के कारण जीन्स में जो क्षणिक बदलाव आते है। उन्हें एपीजेंटिक्स epigenetic कहते हैं।
तो चलिए आज ह्यूमन जीन्स से सम्बंधित एक ऐसे विषय को समझते हैं। जिसके लिए अमूमन अनुवांशिकता या hereditary कारणों को प्राथमिक माना जाता रहा है। जीन्स हमें विरासत में अपने अभिभावकों और पुश्तों से प्राप्त होते हैं।। कद काठी, शक्ल सूरत, लंबाई, बुद्धि, रोग आदि बहुत कुछ हमारे परिवार पर निर्भर करता है। जैसे अगर माता पिता लम्बे हुए तो संतान का कद भी लंबा ही होगा। अक्सर शरीर का रंग भी अनुवांशिक होता है।
जब ये अनुवांशिक गुण स्थिति परिस्थिति संगत, वातावरण और माहौल के हिसाब से बदलने लगते हैं तो ये epigentics कहलाता है। ये हमारे व्यवहार, दिनचर्या और शरीर में वह आसपास के माहौल, वातावरण और परिस्थितियों के आधार पर निर्धारित होने लगते हैं।
जैसे एक दो उदाहरण से इसे समझते हैं। अक्सर पहाड़ों में रहने वाले लोगों की ऊंचाई सामान्यतः कम होती है। इसका कारण जेनेटिक्स नहीं है। पहाड़ पर रहने वाले लोग बैलेन्स बनाये रखने के लिए ऊंचाई पर चढ़ते समय आगे की ओर झुक कर चलते है। तो ये आदत हर पहाड़ी व्यक्ति में आती चली गयी। और उनका कद सामान्य से छोटा होता चला गया। फ़िर जब उनकी आगे आने वालीं पीढियां जन्मी तो उनका भी कद छोटा हो गया। ये बदलाव वातावरणीय है।
इसी प्रकार एक अन्य उदाहरण - पहले जिराफ की गर्दन इतनी ऊंचाई नहीं हुआ करती थी। ये साक्ष्य गूगल पर मौजूद है। वह पेड़ पौधे खाने वाला जीव है। जमीन से कुछ ऊंचाई के सारे पौधे छोटे जानवर खा जाते हैं तो उसे ऊंचे पेड़ों की शाखों के पत्तों फूलों पर निर्भर होना पड़ा। और ऊंचाई की चीज़ तोड़ने के लिए उसे अपनी गर्दन और खींचनी पड़ी। इसी तरह के वर्षों तक खींचते खींचते आज जिराफ सबसे लंबी गर्दन वाला जीव बन गया।
अब ये समझा जाये कि वातावरणीय कारण किस प्रकार जेनेटिकली बदलाव का कारण बनते हैं। राजस्थान के लोग 50 डिग्री तक तापमान बर्दाश्त करने के आदि है। तो उनकी संतानें भी इसी गुण के साथ पैदा होती हैं। जबकि विदेशों में लोग थोड़ा सा तापमान बढ़ने पर परेशान होने लगते हैं। इसका अर्थ है कि अनुवांशिक रूप से शरीर बाहरी तापमान के हिसाब से एडजस्ट हो चुका होता है। एपीजेंटिक्स वो स्थिति है जब genetical structure में कोई भी बदलाव किये बिना शरीर में परिवर्तन दिखने लगे। ये परिवर्तन long lasting नहीं होता। पर यदि ये लम्बा चल जाये तो अगली पीढ़ी में भी खिसक सकता है।
शेष अगले भाग में ..................
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