भाग - 1 मन की स्थिति और शरीर की प्रतिक्रिया

मन की स्थिति और शरीर की प्रतिक्रिया :   

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भाग - 1

हमारा शरीर हमारे आंतरिक विचार और धारणाओं का दर्पण है। शरीर हमेशा हम से कुछ कहता रहता है बातें करता है। हम उसे अनदेखा करते हैं तो ही रोग का शिकार होते हैं। शरीर की हर कोशिका और रक्त कण सोचे गए विचार और बोले गए शब्दों के प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त करती रहती हैं। पर हम खुद से ध्यान हटा कर बाहरी दुनिया में इतने मशगूल रहते हैं कि अपनी सुनने का वक्त ही नहीं निकालते।  सोचने और बोलने की अनवरत क्रियाएं शरीर के व्यवहार और मुद्राओं को प्रेरित करती है जिससे शरीर अपनी हीलिंग और फीलिंग को संभाले रखता है। कोई भी मानसिक स्थिति ही कारक होती है जब शरीर अपनी नियत प्रतिक्रियाओं से विपरीत कार्य करने लगता है। इसलिए अपने मन मस्तिष्क और मानस को संभाले रखने से शरीर अपने आप सम्भले रहता है। 

एक अमेरिकी लेखिका, प्रेरक वक्ता और वकील लुइस एल हे ने इस विषय पर एक बेहतरीन पुस्तक लिखी  " यु कैन हील योर लाइफ" । उन्होंने बेहद ही आसानी और खूबसूरती से मन की प्रत्येक स्थिति को एक रोग से जोड़कर ये बताया कि रोग को ठीक करना हमारे ही हाथ में होता है। एक समय वह भी कैंसर की चपेट में आ गयी। तब उन्होंने दवाओं के ही भरोसे खुद को ना छोड़कर कुछ सिद्धांतों को व्यवहार में लाया। और पोषण, सकारात्मकता, विजुलाइजेशन आदि से खुद को हील करना प्रारंभ किया और छः माह के अंदर ही रोगमुक्त हो गई। उन्हीं के अनुसार कुछ विशेष मानसिक स्थितियों से जन्म लेने वाले रोगों का आँकलन करते हैं।

हम अपनी पीड़ाओं को बहुत अच्छी तरह समझते हैं। वह क्यों और किस कारण जन्मी ये भी जानते हैं तो अगर उस पीड़ा से सम्बंधित कोई व्यक्ति स्थिति या बात है तो सबसे पहले उसे भूलना या खत्म करना जरूरी है। कोई व्यक्ति या स्थिति जिसे हम लगातार अपनी पीड़ा के लिए जिम्मेदार मान रहे उसे क्षमा कर देने भर से मन का बोझ उतरेगा। और जब मन हल्का महसूस करेगा तो तन भी उसी अनुरूप प्रतिक्रियाएं देने लगेगा। 

इसे एक सामान्य से उदाहरण से समझा जाये : 

1.आर्थिक संकट /  विचार - मैं अमीर बनने के योग्य ही नहीं हूं।

2. दोस्तों का अभाव /  कोई भी मुझे प्यार नहीं करता ।

3. काम में समस्याएं /  मैं अच्छे से काम कर ही नहीं पा रहा। 

अर्थात समस्या विचार से बनती बढ़ती है। ये सत्य है कि जीवन है तो hurdles तो आएंगे ही। पर उन रुकावटों के लिए नकारात्मक सोच अपनाने से वो और क्लिष्ट होती जाती है। 

शरीर का प्रत्येक अंग हमारे शरीर के लिए एक विशेष कार्य करता है। और उसके कार्य को बेहतर सम्पादन के संदेश मस्तिष्क से ही जाते हैं जब मस्तिष्क में ही ऊलजलूल विचारों का उद्भव होता रहेगा तो यकीनन संन्देश भी गलत ही प्रवाहित होंगे।

इस लेख के अगले अंक में  किस तरह की मानसिक स्थिति कौन से रोग का कारण बनती है इसे विस्तार से समझेंगे। और समझकर खुद जानेंगे अपनी बीमारी का कारण। 

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 पढ़े इस लेख का शेष भाग अगले अंक में....




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