चंद पक्तियों की अभिवयक्ति .......!
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किसी की व्यथा ,
तुम तब तक न जान पाओगे।
जब तक उस मन की ,
गहराइयों में न जाओगे।
गहराइयों में जा कर
उसकी थाह न पाओगे।
और फिर डूब कर ,
उसकी कल्पनाओं में न समाओगे।
और फिर समा कर ,
उसे करीब नहीं लाओगे ,
फिर करीब आ कर
उसे अपना नहीं बनाओगे।
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मेरे सपनों पर जब भी धुंधलापन छाया ,
हर बार लगा बस तेरा ही साया।
मेरे जीवन में जब भी उजाला आया ,
हर बार लगा कि तूने हाथ बढ़ाया।
मन को जग अपना सा नजर आया ,
हर बार लगा कि तूने मुझे अपना बुलाया।
मेरे ख्यालों में एक छवि का प्रतिरूप आया ,
हर बार लगा कि उसने तुझे ही वहाँ पाया।
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किसी की व्यथा ,
तुम तब तक न जान पाओगे।
जब तक उस मन की ,
गहराइयों में न जाओगे।
गहराइयों में जा कर
उसकी थाह न पाओगे।
और फिर डूब कर ,
उसकी कल्पनाओं में न समाओगे।
और फिर समा कर ,
उसे करीब नहीं लाओगे ,
फिर करीब आ कर
उसे अपना नहीं बनाओगे।
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मेरे सपनों पर जब भी धुंधलापन छाया ,
हर बार लगा बस तेरा ही साया।
मेरे जीवन में जब भी उजाला आया ,
हर बार लगा कि तूने हाथ बढ़ाया।
मन को जग अपना सा नजर आया ,
हर बार लगा कि तूने मुझे अपना बुलाया।
मेरे ख्यालों में एक छवि का प्रतिरूप आया ,
हर बार लगा कि उसने तुझे ही वहाँ पाया।
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