बोया पेड़ बबूल का तो फूल कहाँ से होए ………!

हम ने हमेशा वो चाहा है जो हमारे हित का है। जब भी प्रकृति हमें कुछ भी देती है उसमें से हम अपने फायदा नुकसान तलाश कर उसे कटघरे में खड़ा कर देते हैं। उससे ये अपेक्षा करने लगते हैं कि वो जो भी दे नाप तौल कर उतनी ही मात्रा में दें जो हमारे लिए उपयोगी हो। उसके लिए एक योजना का प्रारूप बनाने लगते है जिस पर उसे चल कर , हमारे लिए ही सोच कर अपनी हर कार्यवाही को अंजाम देना होगा। पर जरा ठन्डे दिमाग से सोचें कि क्या ये संभव है ? ये सत्य है कि आज विज्ञान तरक्की की राह चढ़ चुका है और प्रकृति की काफी पेचीदगियों को हल करने में महारत सिद्ध कर चूका है। फिर भी कोई एक शक्ति ऐसी है जो मानव की पहुँच से दूर प्रकृति को निर्देश देती रहती है।
         जब भी वर्षा कम होती है त्राहि त्राहि मचा कर हम अकाल होने की पुष्टि करने लगते हैं। आज जब खुल कर वर्षा हो रही है पानी भरने लगा है तब हम बाढ़ और जलभराव के उलाहने दे रहें हैं। हमारी सब से बड़ी समस्या ये है कि जब भी हमें कोई खुद पर भारी होता दीखता है तब तब हम उसे कोसने और टोकने के मौके ढूंढने लगते हैं। परन्तु ये प्रकृति के साथ नहीं चल सकता। जब जब हम उसे टोक कर, रोक कर बाँधने का प्रयास करेंगे तब तब वो अपना रौद्र रूप दिखा कर हमें ऐसे ही डराएगी और अपनी ताकत का  अहसास कराएगी। 
                                   जीवन में किसी भी चीज की नियत मात्र की कोई निश्चितता नहीं है। भविष्य में कौन सा वक्त कब और कितना दे कर या ले कर जाएगा ये भी अनिश्चित है। इस लिए अब हमें प्रकृति के उपकार को इस तरह स्वीकार करना होगा कि जब भी कोई आपदा हमें त्रस्त करें तो उस पर विजय पाने के लिए हम उसी प्रकृति से ही सहयोग माँगना होगा। ये सहयोग इस तरह का भी हो सकता है कि हम उसके सम्मान के लिए कुछ ऐसे उपायों पर अमल करें जो हमें ऐसी आपदाओं में संभालें रखें। जैसे वनों की अधिकता को बनाए रखने के लिए जीवन शैली की उन तमाम चीजों को एक नए सिरे से पुनर्जीवित करें जिस से लकड़ी की आवश्यकता के लिए वन न काटें जाएँ। या फिर प्रदुषण को रोकने के लिए नैसर्गिक साधनों के प्रयोग को बढ़ावा दें। ये हम भूल जाते हैं कि हम जैसा बोएंगे वही काटेंगे। हमने प्रकृति से पंगा लेने के लिए ऐसे तमाम हथकंडे अपना रखें हैं जो समय असमय हमें हमारी मजबूरी का अहसास करा के जीवन दुश्वार बना देते हैं। बेहतर है कि हम अब भी चेत कर उसे उसके स्थान पर  बने रहने का सम्मान दें। अपने जीवन की कठिनाइयों को कम करें। 

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