अगले जनम मोहे बिटिया न दीजो…………!

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हे दाता मोरी इतनी अरज सुन लीजो ,
कि अगले जनम मोहे बिटिया न दीजो। 
चिंता की टोकरी मेरे माथे ना रखियो ,
फ़िक्र की लकीरों की गहराई हर लीजो। 
             छोटी सी उम्र में नोंचे जाने की पीड़ा ,
             समझा सके तो मासूम को समझाइयों। 
             हर पल चौकन्नेपन का दर्द समझियो,
             कि कभी अधमरी ना होए ,ऐसा तो करियो। 
तुझ पर ये छोड़ा अब कि अपने पुरुष की ,
तलाशती घृणित नजर से उसे बचाइयों। 
कुछ ऐसी तरकीब से एक पहरा बना कर बता ,
जो खेलती मासूम बेटी के इर्द गिर्द लगाइयो। 
                 कोख की कली की माँ बन कर सोच फिर  ,
                 छोटी नासमझ बच्चियों का दर्द पहचानियों।                         उन्हें क्या समझाएं कि कैसे बचाएं खुद को ,
                 ये अहसास कोख से जगाना तो मानियो। 
या तो अपने पुरुष की नियत बदल तू ,
या बच्ची को औरत का जामा न पहनाइयों। 
उस छोटी सी जान को मिठाई के बदले दर्द की ,
चुकाई कीमत की असह्य तकलीफ बताइयो।
          उसे ये पता हो कि क्या हो रहा है उस के साथ ,
        ये उसे अभिमन्यु की तरह कोख में ही समझाइयो।
        सचेत रहें वह जान कि किसी पर विश्वास न करे  ,
          ये अटल विश्वास उसे अब तू ही दिलाइयो। 
मिटा दे स्त्री और पुरुष का ये घृणित सम्बन्ध ,
फिर से एक नया स्वच्छ सम्बन्ध बनाइयो।  
जिसमें नन्ही बेटियां शामिल न हों ,
ऐसा पवित्र जज्बा हर मर्द में जगाइयों। 
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