शर्मिंदगी  और बेचारगी ……………!

दो देशों के बीच सीमा रेखा से उनके क्षेत्र का बंटवारा किया जाता है। यह सीमा रेखा उन्हें साफ़ साफ़ दिखाई देती है और इसी का सम्मान रखते हुए वह अपने अपने क्षेत्र के प्रति सजग रहते हैं। पर जब भी कभी मैंने एक स्त्री होने के नाते अपनी मर्यादाओं और सीमा रेखा के बारे में चिंतन किया हैं , खुद को हमेशा भ्रमित ही पाया है। क्योंकि जब भी , कभी भी किसी ने भी स्त्री के बारे में अपने विचार व्यक्त किये हैं हमेशा उसे खुलापन और आजादी देने की हिमायत की है। देश में चाहे कोई भी सरकार हो  सब अपना परचम बुलंद रखने के लिए महिला पक्षधर बन कर , बड़ी बड़ी बातें करने के अलावा कुछ भी नहीं कर पाते। क्योंकि ईश्वर ने जो दो लिंग बना दिए है उनके बीच का फासला अब खुद ईश्वर भी नहीं मिटा पाता होगा। सत्य बस इतना सा है कि चाहे स्त्री कितना भी उड़ने का प्रयास कर ले उसे कोई न कोई पुरुष धूल चटा ही देगा। आज के समाचार पत्र में एक सिविल सेवा अधिकारी ने छेड़छाड़ की घटना से व्यथित होकर भारत में जन्म लेने को शर्मनाक बताया।  उसकी चहुंओर निंदा हुई। किसने की ? उन पुरुषों के समाज ने जिन्होंने उसे ये बयान देने पर मजबूर किया होगा। वर्ना कौन ऐसा है जो अपने जन्म को शर्मिंदगी बताएगा। शायद मेरा भी सोचना कुछ ऐसा ही है।  यहाँ वो नेता खुश है , उसके घर की महिलाएं खुश है जिन्हे छेड़छाड़ ,बलात्कार का कोई डर नहीं। यहाँ वो बड़े बड़े उद्योगपति खुश है , उनकी महिलाएं खुश हैं क्योंकि उन्हें छोटी छोटी जरूरतों के लिए घर से बाहर नहीं निकलना पड़ता। यहाँ वो भ्रष्ट अपराधी खुश है , उनके परिवार खुश हैं क्योंकि उनके डर के प्रकोप से कोई उन्हें हानि पहुँचाने की सोच भी नहीं पाता हैं। यहाँ वो ऊँची पहुँच वाला खुश है , उसकी महिलाऐं खुश है क्योंकि उनका परिचय उनकी हर समस्या का समाधान पहले से ही तैयार रखता है।  फिर दुखी कौन हैं ?  एक आम जिंदगी जीने वाली वो हर औरत जिसे रोज ही अपनी जरूरतों के लिए सड़क पर निकलना पड़ता है और हर बार एक नयी समस्या से जूझना पड़ता है। 
                      एक समाचार पत्र की खबर के अनुसार कानपुर (उ. प्र) की एक 14 वर्षीया लड़की अपने पिता से ही गर्भवती हो गयी। पिता भी कोई सौतेला या अन्य नहीं खुद के स्वयं का पिता। अब अगर वह लड़की अपने जन्म पर शर्मिंदगी करें तो आप क्या कहेंगे ? मैं इसे जायज़ मानूंगी। अपराध होना या न होना ये व्यक्ति की मानसिकता पर निर्भर करता हैं। परन्तु उस अपराध के होने के बाद यदि वह अपनी पहुँच और कानून की  लम्बी प्रक्रिया के चलते राहत पा जाए तो ये शर्मिंदगी की बात है। कई पेचीदगियां है जिन्हे कानूनी रूप से नहीं बल्कि व्यक्तिगत सोच से ही सुलझाया जा सकता है। कब और कैसे एक औरत अकेले में सुरक्षित और सुकून महसूस करेगी ये असंभव सा दीखता हैं। सत्य ये है कि संसद में बैठे ये ऊँचे मंत्री और सांसद अपने घर की औरतों की सुरक्षा के प्रति इतने आशावान है कि उन्हें आम राह चलती महिलाओं के बारे में सोचने या समझने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। जाके पैर न फटी बिवाई वो क्या जाने पीर पराई ................... जब किसी मंत्री की बेटी के अगवा होने पर उसकी फिरौती भरने के लिए बड़े से बड़ा आतंकी छोड़ा जा सकता है।  जो आगे और कई जिंदगियां खराब करने का जिम्मेदार होगा। ऐसे में आम महिला क्यों और कैसे उम्मीद लगाये इन पुरुषों से जो तथाकथित सांसद भी हैं और देश चलाने का दावा करते हैं । मैं शर्मिंदा हूँ  कि मैंने एक औरत का जन्म लिया।  मैं शर्मिंदा हूँ क्योंकि मुझे आज भी देर रात अकेले आने जाने में डर लगता है। मैं शर्मिंदा हूँ क्योंकि मुझसे उम्मीद तो ये की जाती है कि मैं जग जीत लू , सब कुछ सम्भाल लूँ पर उसी उम्मीद को ठोकर मारने के लिए कोई न कोई पुरुष तैयार रहता है। मैं शर्मिंदा हूँ कि मुझे अपने आस पास के हर पुरुष को शक़ की निगाह से देखना पड़ता है। मैं शर्मिंदा हूँ कि मेरे जीवन में विश्वास नाम की कोई भी चीज नहीं है। और सब से बड़ा सत्य कि मैं शर्मिंदा हूँ उस ईश्वर के आगे जिसने मुझे तमाम खूबियों से नवाज कर बनाया पर पुरुष को उसका पुरुषत्व दे कर मुझे कमजोर कर दिया। 

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