हाय रे कुबुद्धि के मारे, 
आंखे रहती अंधे हो गए बेचारे...!!
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भारतीय चाहे खुद को कितना भी आधुनिक बना लें और अपनी मानसिकता बदलने का दम्भ भर लें पर वह अपनी सोच और कर्म से रूढ़वादी ही रहेंगे।मैं इस विषय पर पहले भी कई बार चर्चा कर चुकी हूँ और यदा कदा इस तरह की घटनाएं देखने में आ ही जाती हैं। तो पुनः उस को परिभाषित करने की आवश्यकता महसूस होने लगती है। अभी हाल ही में ऐसे तीन ढोंगी धर्मगुरुओं के सामने आने का नाटक हुआ है जो सिर्फ अपने ऐशो आराम को बनाये रखने के लिए धर्म के नाम का चोला पहन कर बैठे थे।  उसकी आड़ में उन्होंने अचल संपत्ति और सुख के सारे बंदोबस्त कर रखे थे। सब से पहल नाम है सच्चिदानंद गिर उर्फ़ सचिन दत्ता का। जो काफी कम उम्र के हैं और इस धंधे में आने से पहले वह रियल इस्टेट , डिस्को और बियर बार के धंधों के मालिक थे। उनका मानना ये है कि परमात्मा से साक्षात्कार होने के कारण उन्होंने ये सारे कार्य छोड़ दिए और प्रभु भक्ति के लिए संत बन गए।  जिन भी कार्यों में वह लिप्त थे उसमे अनैतिक कमाई को सब के सामने सही तरीके से प्रस्तुत करना उन्हें भारी पड़ा तो ये रास्ता उन्हें सही लगा। इसी प्रकार खुद को देवी का अवतार बताने वाली राधे माँ के जलवे देखिये।  ऊपर से नीचे तक सुर्ख लाल जोड़े में रहना , नख से शिख तक हीरों के आभूषण से लदी  रहना , स्त्री को किया जाने वाला हर प्रकार का मेकअप लगा कर सजना सँवरना , एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे  में गुलाब पकडे रहना , भक्तों की गोद में चलना , आदि सब उनके नखरे हैं। इन पर आरोप है की ये पुरुषों को अपने करीब रखती हैं और उनके करीब रहने वाली महिलाओं को किसी न किसी तरह प्रताड़ित करती हैं। अब तीसरे बाबा का वृतांत सुनिए , ये है भुवनेश्वर से थोड़ी दूर केंदपारा में आश्रम चला रहें सारथि बाबा उर्फ़ संतोष राऊळा। इनके आश्रम में भक्तों द्वारा जुटाई हर सुख सुविधा मौजूद है।  जिस का ये भोग करते थे।  आश्रम में करोड़ों की संपत्ति , आभूषण , बैंक कागजात और जमीन जायदाद से जुड़े दस्तावेज बरामद किया गयें हैं।इन पर आरोप है कि ये हैदराबाद में जीन्स टीशर्ट पहने एक होटल में एक युवती के साथ आपत्तिजनक स्थिति में मिले और उन्होंने वहाँ नॉनवेज और शराब का भी सेवन किया। इन तीनों ढोंगी तथाकथित धर्म गुरुओं का भंडाफोड़ उनकी नियत और हरकत से हो गया। 

               ये तो इन का रोज़नामा था। अब इस में सब से बड़ी गलती है हम लोगों की जो इस तरह के धर्मगुरुओं को तवज्जो दे कर उनका जीवन सुख और सुविधाओं से भर देते हैं। अगर सही तरीके से देखा या सोचा जाए तो आ कौन सा धर्मगुरु एस है जो वाकई गुरु कहलाने योग्य हैं। आसाराम बापू को ही ले लीजिये , आज वह जोधपुर की ही जेल में एक छोटी बच्ची से बलात्कार के अपराध में सजा काट रहें  हैं।  फिर भी उनके अंध भक्तों को ये अपराध नहीं दीखता। आज भी गुरु पूर्णिमा पर जेल का रास्ता उनके भक्तो से बाधित हो जाता है। अब सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न जो हमें खुद से पूछना चाहिए वह ये कि क्यों हमें इस तरह के ढोंगी गुरुओं की आवश्यकता पड़ती है। क्या हम खुद अपने ईश्वर से अपनी गुहार नहीं लगा सकते ? या हमें खुद पर भरोसा नहीं ? इस तरह के सारे ढोंगी गुरु कभी न कभी अपने लालच के कारण प्रकाशा में आ ही जातें है तब तो समझना चाहिए कि जिसे हम पूज रहें थे वह हमारी ही तरह एकसामान्य सी जीवात्मा है। जिस की सामान्य सी जरूरतें हैं जिन्हे वह चोरी छुपे पूरी करने का प्रयास करता रहता है। बिना आग के धुआं नहीं उठता ये मुहावरा गलत नहीं है। इस लिए कही न कही सच्चाई इन के भीतर ही छिपी रहती है जिस की झलक हमें मिलती तो हैं पर हम अनजान बने अंधों की तरह उन पर आँख बंद कर विश्वास करते रहते हैं। जीवन को बेहतर बनाने के लिए ये जो भी ढोंग अपनानाते हैं वह कोई चमत्कार नहीं होता।  बल्कि हम सब को बेवकूफ बनाने के लिए अपनाइ गयी कई तरह की ट्रिक्स होती हैं। पर हाय रे हम कुबुद्धि के मारे , आँखों के रहते अंधे हो गए बेचारे। इस लिए अब तो होश में आओ और अपने ईश्वर को खुद की चेष्टा से पाने का जतन कर दिखाओ। 

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