एक चुप्पी में दबी आह ..........!

हम ने न कुछ कहा न सुना ,
फिर भी उन्हें ये कैसे लगा। 
कुछ अजीब सा होता गया ,
सब खोता हुआ जैसा लगा। 
बिन कुछ बोले झूठे हो गए ,
कहते तो क्या मान लेते?
अब जो सच्चाई सामने है ,
उसे सच में सच जान लेते? 
एक बार चेहरा पढ़ कर देखते ,
सब कुछ कहा नहीं जाता है। 
भावों की गहराई समझो तो 
अब ये दर्द सहा नहीं जाता। 
कटघरे में सफाई हम ही दें, 
ये कोई जरूरी तो नहीं हैं। 
रिश्ते की जरूरत आप को भी है ,
सिर्फ हमारी मजबूरी तो नहीं है। 
जिंदगी की सच्चाई हम ही झेंले ,
क्या ये हमारी विधि का विधान है। 
अपनी उलझनों को किस ओर रखें ,
सामने सिर्फ तुम्हारा आसमान है। 








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