निर्णय की वास्तविकता का आँकलन ..........!

भारत एक ऐसा देश है जहाँ पर सत्ता में काबिज सरकारें कुछ न कुछ अनर्गल सोचते हुए ऐसे कदम उठाती रहती है जिससे वो चर्चा में बनी रहें और उनके वोट बैंक का खाता खुला रहें। हाल ही में केंद्र की सरकार ने पोर्न साइट्स को अवैद्द्य करने के लिए एक अध्यादेश लाया है। इस अध्यादेश में यह निर्णय लिया गया कि इस तरह की सभी साइट्स पर पूर्णतया रोक लगा दी जाए और चोरी छिपे इसका उपयोग करने पर सजा का प्रावधान निश्चित किया जाए। वैसे ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि सरकारें मानते और जानते हुए भी ऐसे बहुत सी चीजो को बाजार में चालू रखती है जिस से उन्हें आर्थिक फायदा हो रहा है। जैसे शराब के ठेके ,सिगरेट, गुटका , तरह तरह के पान मसाले , नुकसान पहुँचाने वाली दवाइयाँ आदि आदि। बात सिर्फ निर्णय लेने की नहीं है। जरूरी है कि उस निर्णय के आगे पीछे की वास्तविकता को समझा जाए फिर उसके क्रियान्वयन में आवश्यक रूपांतरण करके उसे लागू किया जाए।
                        अब पोर्न साइट्स को बंद करने के निर्णय की वास्तविकता को जानिये। क्या सिर्फ बैन लगा देने से घरों औरसाइबर कैफे में ये देखना और दिखाना बंद हो जाएगा। आज के वैज्ञानिक युग में जब हर हाथ में मोबाइल और टेबलेट के रूप में इंटरनेट मौजूद है आप इसे कैसे रोक सकोगे ? आज हर व्यक्ति इंटरनेट पर सर्च करके लाखों नई साइट्स पर सर्फिंग करता रहता है। मेरी जानकारी में ऐसे कई बच्चे है जो महज 8 या 9 साल के है पर उन्होंने फेस बुक पर अपनी झूठी जन्मतिथि  डाल कर अकाउंट बना लिया है और उसे चला भी रहें  हैं। फिर दूसरा विचारणीय मुद्दा ये है कि हमारा भारतीय समाज में स्त्री - पुरुष के संबंधों को बहुत व्यापक ढंग से नहीं देखा जाता। ये ढके छुपे और सामाजिक बंधनों में रहकर निर्वाह किये जाने वाले रिश्ते हैं। ऐसे में जब कि सामाजिक रूप से इस तरह की बातें भी अवैद्य मानी जाती हो,  किस तरह एक को पुरुष अपनी भावनाओं को बंधन में रखने की सीख दी जा सकती है। पुरुष जन्म से ही स्त्री के प्रति आसक्ति या जुड़ाव का भाव ले कर पैदा होता है। यह भाव बचपन में माँ के प्रति , जवानी में अन्य युवतियों के प्रति और ता -उम्र पत्नी के प्रति रहता है।  हालाँकि ये आसक्तियां उसके जीवन में एक सत्य की तरह साथ रहती है। ऐसे में उन परुषों का क्या जो इस तरह के संबंधों से दूर हैं। वह अपनी भावनाएं किस के प्रति उजागर कर के अपना  मन शांत करेंगे। मैं सरकार के इस निर्णय के विरोध में नहीं हूँ परन्तु मेरा सोचना ये है कि इस तरह की साइट्स पर बैन लगाने से एक तो चोरी छुपे इसका देखा जाना और बढ़ जाएगा। दूसरी तरफ अपनी आसक्ति की पूर्ति के लिए पुरुष  अपने सामने आने  वाली हर महिला को गलत नजर से देखेगा। महिलाओं से सम्बंधित दुराचार और बढ़ जायेंगे। 
                                       चिकित्स्कीय दृष्टि से देखा जाए तो एक समय आने पर पुरुष अपने अंदर बदलते हार्मोनल बदलाव के बंदी हो जातें हैं और उनकी पूर्ति के लिए वह रास्ते तलाशते हैं।  जिस में ये पोर्न साइट्स देखना भी एक हैं। एक उदाहरण के द्वारा इसे समझना चाहूंगी कि ये पोर्न साइट्स एक कैंची की तरह है यही कैंची किसी डॉक्टर के हाथ में आये तो वरदान बन जाती है और किसी गलत मानसिकता वाले हाथ में आये तो अभिशाप। जिस भारतीय समाज में युवतियों को ढके छुपे रहने की सलाह दी जाती है उसमे हर पुरुष स्त्री को थोड़ा सा और देख लेने की तमन्ना में अश्लील हरकतें करता हैं। ऐसे में  ये पोर्न साइट्स उनकी ये इच्छा बिना किसी को नुकसान पहुंचाए पूरी कर देती हैं। इस लिए जरूरी है कि व्यक्ति को सही गलत और शारीरिक आवश्यकताओं सम्बन्धी जानकारी दी जाए जिस से वह अपनी भावनाओं का बंदी न बने। पुरुष को उसके पुरुषत्व का सही मोल समझाना हर परिवार का पहला कर्तव्य है। जिस से आगे चल कर वह एक सम्मानीय दृष्टि से देखे जाने वाला परुष बने और स्त्रियों का आदर करें। 

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