ना जाने क्यों होता है ये जिंदगी के साथ
न जाने क्यों होता है ये जिंदगी के साथ
अचानक ये मन कुछ कुछ होने का बाद,
करे फिर उसकी याद, छोटी छोटी सी बात…… न जाने क्यों ! ********************************
यही जिंदगी है। कभी हताशा , निराशा। कभी छोटी सी ख़ुशी जो सब कुछ भुला कर एक बार फिर से नए सिरे से जीने का हौसला भर देती है। इधर पिछले कई दिनों से मैं मानसिक रूप से परेशान थी। कारण था पारिवारिक और शैक्षणिक आवश्यकताओं के कारण परिवार का अलग अलग रहना। ये अकेलापन मुझे अंदर से खोखला कर रहा था। मुझे ये अहसास करा रहा था कि हर दुःख और परेशानी का सामना मुझे अकेले ही करना है। मैं कर भी रही थी। अकेले परिस्थितियों से लड़ कर रोज को एक नए सिरे से जीती हूँ। फिर अगले दिन के लिए रात भर हौसला बटोरती हूँ। ये एक सामान्य सी दिनचर्या हो गयी थी। शायद इसी लिए अपने ईश्वर को भी अनजाना सा मानने लगी थी कि तुम मेरी परेशानियों की तरफ से अनजान रहते हो। लेकिन उसने हर परिस्थिति के पीछे एक सच छुपा कर रखा है जो समय आने पर ही पता चलता है।
इसी से जुड़ा एक किस्सा सुनिए ............... एक बार मंदिर का पुजारी जो भगवन से अत्यंत प्रेम करता था बोला प्रभु आप खड़े खड़े काफी थक गए होंगे। आप थोड़ा घूम फिर आईये आप की जगह मैं खड़ा हो जाता हूँ। भगवन ने हामी भरी और जाते हुए उससे कहा कि मंदिर में जो भी आये तुम उसकी प्रार्थना सुन लेना परन्तु प्रतिक्रिया नहीं देना। क्योंकि सब के आगे होने वाला सब कुछ निश्चित है। उसी में उनका भला छिपा है। ये सुन कर पुजारी ने उन्हें आश्वासन दे दिया। भगवान चले गए। कुछ देर बाद एक सेठ आया , बोला प्रभु मैंने एक नयी फैक्ट्री डाली है। उसको खूब तरक्की देना और मेरे धन धान्य को बढ़ाते रहना। यह कह कर उसने धोक लगाई तो उस का बटुआ नीचे गिर गया। उसने देखा नहीं और वह चला गया। उसके बाद एक गरीब व्यक्ति आया ,अपने बच्चों के भूखे होने का रोना रोने लगा तभी उसकी निगाह बटुए पर गयी। उसे ईश्वर का प्रसाद मान कर रख लिया और वह भी चला गया। उसके उपरांत एक नाविक आया जो किसी लम्बी यात्रा पर जा रहा था और प्रभु का आशीष मांगने आया था। उसने भी धोक लगाई। तभी अचानक वह सेठ पुलिस को ले कर आया और नाविक को अपना बटुआ चुराने के इल्ज़ाम में गिरफ्तार करवाने लगा। पुजारी से चुप न रहा गया सच्चाई बोल पड़ा की चोर वह नाविक नहीं बल्कि गरीब व्यक्ति था। सब के जाने के बाद प्रभु वापस आये। पुजारी ने उन्हें अपनी वीर गाथा बताते हुए कहा कि उसने कैसे अन्याय नहीं होने दिया। प्रभु दुखी हुए,………… और बोले कि तूने जो किया वह सब गलत था। सेठ बहुत अमीर था उसके लिए उतने धन की कोई कीमत नहीं थी बटुवे की वह रकम भगवान के दान में शामिल हो जाती। वह धन उस गरीब को मिलने से उसके भूखे बच्चों का पेट भरता जो की पुण्य होता। और उस नाविक का उस इल्जाम में गिरफ्तार होना इस लिए आवश्यक था की जिस यात्रा पर वह जाने वाला था वहाँ भयंकर तूफ़ान आने वाला था और उसकी पत्नी के भाग्य में सदा सुहागिन का सौभाग्य लिखा है। ये सब कुछ उलट पुलट हो गया।
अर्थात प्रभु जो भी देता है उसके पीछे कोई न कोई वजह होती है। इतने दिनों की तकलीफ के पीछे का सच और ख़ुशी ये है कि मेरे पति को उनकी लिखी पुस्तक के लिए राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत किया जाएगा। उनकी पुस्तक का चयन ज्ञान विज्ञान लेखन के आधार पर हुआ। ये एक बड़े सम्मान की बात है। और मैं गौरान्वित हूँ कि मेरे पति राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के हाथों दिल्ली के विज्ञान भवन में अपनी श्रेष्ठता का पुरस्कार ग्रहण करेंगे। पिछली तकलीफों को भूलने और नए सिरे से जीने के लिए ये एक अच्छी वज ह है। इसी लिए निराश न होइए।जीवन वजहें खुद बखुद पैदा करेगा। आप बस कर्म करते रहिये।
अचानक ये मन कुछ कुछ होने का बाद,
करे फिर उसकी याद, छोटी छोटी सी बात…… न जाने क्यों ! ********************************
यही जिंदगी है। कभी हताशा , निराशा। कभी छोटी सी ख़ुशी जो सब कुछ भुला कर एक बार फिर से नए सिरे से जीने का हौसला भर देती है। इधर पिछले कई दिनों से मैं मानसिक रूप से परेशान थी। कारण था पारिवारिक और शैक्षणिक आवश्यकताओं के कारण परिवार का अलग अलग रहना। ये अकेलापन मुझे अंदर से खोखला कर रहा था। मुझे ये अहसास करा रहा था कि हर दुःख और परेशानी का सामना मुझे अकेले ही करना है। मैं कर भी रही थी। अकेले परिस्थितियों से लड़ कर रोज को एक नए सिरे से जीती हूँ। फिर अगले दिन के लिए रात भर हौसला बटोरती हूँ। ये एक सामान्य सी दिनचर्या हो गयी थी। शायद इसी लिए अपने ईश्वर को भी अनजाना सा मानने लगी थी कि तुम मेरी परेशानियों की तरफ से अनजान रहते हो। लेकिन उसने हर परिस्थिति के पीछे एक सच छुपा कर रखा है जो समय आने पर ही पता चलता है।
इसी से जुड़ा एक किस्सा सुनिए ............... एक बार मंदिर का पुजारी जो भगवन से अत्यंत प्रेम करता था बोला प्रभु आप खड़े खड़े काफी थक गए होंगे। आप थोड़ा घूम फिर आईये आप की जगह मैं खड़ा हो जाता हूँ। भगवन ने हामी भरी और जाते हुए उससे कहा कि मंदिर में जो भी आये तुम उसकी प्रार्थना सुन लेना परन्तु प्रतिक्रिया नहीं देना। क्योंकि सब के आगे होने वाला सब कुछ निश्चित है। उसी में उनका भला छिपा है। ये सुन कर पुजारी ने उन्हें आश्वासन दे दिया। भगवान चले गए। कुछ देर बाद एक सेठ आया , बोला प्रभु मैंने एक नयी फैक्ट्री डाली है। उसको खूब तरक्की देना और मेरे धन धान्य को बढ़ाते रहना। यह कह कर उसने धोक लगाई तो उस का बटुआ नीचे गिर गया। उसने देखा नहीं और वह चला गया। उसके बाद एक गरीब व्यक्ति आया ,अपने बच्चों के भूखे होने का रोना रोने लगा तभी उसकी निगाह बटुए पर गयी। उसे ईश्वर का प्रसाद मान कर रख लिया और वह भी चला गया। उसके उपरांत एक नाविक आया जो किसी लम्बी यात्रा पर जा रहा था और प्रभु का आशीष मांगने आया था। उसने भी धोक लगाई। तभी अचानक वह सेठ पुलिस को ले कर आया और नाविक को अपना बटुआ चुराने के इल्ज़ाम में गिरफ्तार करवाने लगा। पुजारी से चुप न रहा गया सच्चाई बोल पड़ा की चोर वह नाविक नहीं बल्कि गरीब व्यक्ति था। सब के जाने के बाद प्रभु वापस आये। पुजारी ने उन्हें अपनी वीर गाथा बताते हुए कहा कि उसने कैसे अन्याय नहीं होने दिया। प्रभु दुखी हुए,………… और बोले कि तूने जो किया वह सब गलत था। सेठ बहुत अमीर था उसके लिए उतने धन की कोई कीमत नहीं थी बटुवे की वह रकम भगवान के दान में शामिल हो जाती। वह धन उस गरीब को मिलने से उसके भूखे बच्चों का पेट भरता जो की पुण्य होता। और उस नाविक का उस इल्जाम में गिरफ्तार होना इस लिए आवश्यक था की जिस यात्रा पर वह जाने वाला था वहाँ भयंकर तूफ़ान आने वाला था और उसकी पत्नी के भाग्य में सदा सुहागिन का सौभाग्य लिखा है। ये सब कुछ उलट पुलट हो गया।
अर्थात प्रभु जो भी देता है उसके पीछे कोई न कोई वजह होती है। इतने दिनों की तकलीफ के पीछे का सच और ख़ुशी ये है कि मेरे पति को उनकी लिखी पुस्तक के लिए राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत किया जाएगा। उनकी पुस्तक का चयन ज्ञान विज्ञान लेखन के आधार पर हुआ। ये एक बड़े सम्मान की बात है। और मैं गौरान्वित हूँ कि मेरे पति राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के हाथों दिल्ली के विज्ञान भवन में अपनी श्रेष्ठता का पुरस्कार ग्रहण करेंगे। पिछली तकलीफों को भूलने और नए सिरे से जीने के लिए ये एक अच्छी वज ह है। इसी लिए निराश न होइए।जीवन वजहें खुद बखुद पैदा करेगा। आप बस कर्म करते रहिये।
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