पशु समान कृत्य , फिर भी समर्थन ? ?
पशु सामान कृत्य ……फिर मानवीय समर्थन !
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जब यहाँ की बागडोर ऐसे नेताओं के हाथ में दे दी गयी है। जिन्हे अपनी कुर्सी से इतना प्यार है कि उसके लिए वह कोई भी कार्य या बयान , चाहे वह निंदनीय हो या असामाजिक कहने या करने से नहीं चूकते। आखिर हमें कब समझ आएगी ? लेकिन क्या करें जब उनके समर्थक ही अपने आकाओं के अंध भक्त है तो बाकि जनता तो उनके रहमोकरम पर जी ही रही है। अभी हाल ही में एक नामचीन नेता मुलायम सिंह यादव ने बयान दिया कि एक लड़का यदि किसी लड़की को छेड़ता है तो वह उसके साथ और चार दोस्तों के खिलाफ गैंग रेप का मुकदमा ठोक देती है। एक युवती से चार लोग बलात्कार कैसे कर सकते हैं ? और फिर अगर किसी लड़के से बलात्कार जैसी गलती हो गयी है तो क्या इस की सजा फांसी होनी चाहिए ? उसने किसी का खून तो नहीं किया। और फिर वह लड़की अपना जीवन पुनः शुरू तो कर सकती है।
इस बयान के जवाब में क्या कहा जाए समझ से परे है। सब से पहले तो उन महानुभाव को कोई ये समझाए कि गैंग रेप का मतलब ही है बलात्कार में एक से अधिक लोग शामिल हैं। और ये किसने कहा कि एक युवती का चार लोग बारी बारी बलात्कार नहीं कर सकते ? वासना के अंधे बलात्कारियों को उस पीड़ित की बदहाल स्थिति नजर नहीं आती। उन्हें ये नहीं दिखता कि पहले बलात्कार विरोध करते और बचाव करते करते वह पीड़ित बेहाल और घायल हो चुकी है। उस समय तो बाकि बलात्कारियों की नजर अर्जुन की तरह सिर्फ अपने लक्ष्य पर होती है, अपनी भूख पर होती है, अपनी गन्दी वासना पर होती है।
इसे समझदारी का कुंद हो जाना ही कहा जाएगा जो एक उम्र वाला ,पढ़ा लिखा, जिम्मेदारी वाले पद पर आसीन व्यक्ति ऐसा बयान दे। जिस से ये जाहिर हो की इन्हे ये ही पता नहीं कि गैंग रेप जैसी कोई घटना भी अस्तित्व में है। अब दूसरे वक्तव्य पर नजर डालें वह ये कि लड़की फिर से जीवन शुरू कर सकती है ? एक दुःस्वप्न की तरह जीवन भर साथ चलने वाले और सामाजिक रूप से लांछन की तरह चिपके रहने वाले दुःख दर्द के साथ जीवन कैसे चलेगा ये नेता जी से पूछा जाना चाहिए। क्योंकि आज भी हमारे समाज में कौमार्य , अक्षतयोनि धारण करने वाली लड़की ही पवित्र मानी जाती है। जबकि ये नियम पुरुष पर लागू नहीं होता। पुरुष की स्थिति तो उस सड़क पर भटकते कुत्ते की तरह है जो अपनी इच्छा और शाररिक भूख की पूर्ति के लिए गली गली कुतिया ढूंढता रहता है। मेरा ये वक्तव्य हो सकता है अपमानजनक लगे पर गहराई से सोचें तो क्या ये सत्य नहीं है ? हम इंसान है हमें रिश्तों की , परिचितों की , अपरिचितों की पहचान है। अपनी मर्यादाओं को भी जानते हैं। फिर भी कुत्ते की ही तरह आस पास की हर कुतिया को अपनी वासना पूर्ति का सामान समझें तो है सोच में क्या अंतर हुआ ? पहले तो कर्म गलत हुआ फिर ऐसे लोगो से उसको समर्थन मिला ,ये घोर निंदनीय है। क्षमा प्रार्थी हूँ ,परन्तु त्रस्त हूँ जो रोज ही ये सब देखने और पढ़ने को मिलता है।
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