कैसे पहचानें , कैसे वर्गीकृत करें ? ?


कैसे पहचानें , कैसे वर्गीकृत करें ? ?
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"त्रस्त हूँ , दुखी हूँ , असहाय हूँ ,बेबस हूँ, लाचार हूँ। और क्या - क्या लिखूं.....?? 

अब तो लिखने और पढ़ने से कहीं ऊपर मन की तड़प हो गयी है जो सुनने के साथ ही एक अनजानी पीड़ा दे जाती है। मेरी समस्या ये है ये है कि मैं दूसरों की तरह सिर्फ एक खबर बना कर उसे स्वीकार नहीं करती। उस के पीछे की छिपी पीड़ा और दर्द को महसूस करती हूँ।  इसी लिए जी दुखता रहता है और सब कुछ बदल देने को प्रेरित करता है। पिछले सप्ताह लगातार ऐसी ख़बरों ने समाचार पत्र और चैनलों को भर रखा था जिसमें छोटी मासूम बच्चियों को हवस का शिकार बनाया गया।  साथ ही अपनी पहचान मिटाने के लिए जघन्य कृत्य भी किये। 15 वर्ष से छोटी लड़कियों को सामूहिक बलात्कार के जरिये मरने की कगार पर पहुंचा कर उनके द्वारा पहचाने ना जाने के लिए उनके शरीर पर चाकुओं से गोदा जाना , आँखें निकाल लेना , जला देना ,परिवार को अधमरा कर देना जैसी तमाम घटनाएं  सामने आयी। अभी हाल ही में दो सामान घटनाएं सुनने  में आईं। दोनों में ही बच्चियां 5 -6 वर्ष की थी।  दोनों घर पर खेल रहीं थीं।  पड़ोसी युवक जिसे माँ अक्सर बुला कर खाना खिला दिया करती थी। घर आया और माँ की गैरमौजूदगी में बच्चियों को मिठाई का झांसा दे कर ले गया। क्या किया ये बताने की आवश्यकता नहीं। पर उनको अधमरी स्थिति में वही छोड़ कर भाग गया। हालाँकि ये दोनों घटनाएं अलग अलग जगह की हैं पर हालात एक जैसे है। यूपी के हरदोई और कन्नौज जिले में तो हद ही हो गयी। वहाँ सामूहिक बलात्कार के बाद लड़की की आँखें निकाल ली गयीं जिस से वह पहचान न पाये। एक परिवार में माँ के सामने एक कम उम्र की लड़की से 7 लोगों ने बारी बारी बलात्कार किया।  माँ चीखती रही चिल्लाती रही।  कोई फर्क नहीं पड़ा उलटे इस कृत्य के बाद सभी  परिवारजन को अधमरा कर दिया कि वह कुछ बता न पाएं।  
                             कई बार इस विषय पर चर्चा करते हुए मैंने ये विनती की है कि पढ़ने वाले सिर्फ एक बार उस स्थिति की कल्पना कर के गहराई से उस दर्द को महसूस करने की कोशिश करें जो वह अनजान बच्ची झेलती है। जिसे ये तक शायद पता नहीं की उक्त पुरुष उस के साथ कर क्या रहा है ? उसे इन सब से इतनी पीड़ा क्यों हो रही है , या  उसे दर्द में कराहता देख कर उस पुरुष को मजा क्यों आ रहा हैं ? क्यों उसे शरीर से रिसता खून दिखाई नहीं दे रहा ? क्या कहूँ क्या लिखूं ………………अब शायद मेरी भी सहन शक्ति ने जवाब दे दिया है इसी लिए ईश्वर से नाराज हूँ कि मुझे बेटियां क्यों दी। क्यों हर पल एक अनजाने डर और असुरक्षा की भावना मन में छाई रहती है। एक ओर तो बेटियों को आगे बढ़ाने की बात होती है दूसरी ओर उन्हें बाहर निकालने के लिए परिस्थिति तलाशनी पड़ती है। हर ओर सिर्फ गंदगी और वीभत्सता। कैसे वर्गीकृत करें अच्छे पुरुष और एक गंदे पुरुष में ?  कैसे पता चले कि कैसी सोच है उसकी ? कैसे उनके साथ ,उनके बीच अपनी सुरक्षा बनाई रखी जाए ? कैसे सामान्य व्यव्हार और घृणित व्यव्हार के बीच का अंतर महसूस किया जाए ? ये प्रश्न हर बच्ची और माता पिता  आज समस्या बन चूका है। कैसे छोटी सी उम्र में एक मासूम सी बच्ची को बलात्कार का विस्तार समझाएं। जिसने अपने पिता के रूप में प्यार करते , चिपकाते एक पुरुष को ही देखा है।  इसलिए कृपया आज से ही बदलिये .......... अपने आने वाले बेटों की सोच बदलिये।  तभी आने वाली बेटियां सुरक्षित रहेंगी और आप के घर को एक अच्छी , सुशील , पढ़ी लिखी , काबिल बहु मिल पायेगी। 

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