निजता का हनन ..........!
नई नई तकनीकों से मानव सभ्यता के विकास के बहाव को निरंतर बनाये रखने में काफी प्रगति हुई है। पर ये तकनीकें अब जीवन में अंदर तक घुस कर उसकी निजता का हनन करने लगी हैं। क्योंकि हर मानव के हक़ है कि वह अपनी निजी जिंदगी और शख्सियत को खुद स्वयं तक सिमित बना सके और रख सके। बहुत कुछ ऐसा जो सिर्फ स्वयं तक ही रहना उचित हो वह जब भी सामाजिक रूप से सामने आएगा उसका विश्लेषण प्रारम्भ हो जाएगा। फिर सही गलत या अच्छे बुरे जैसे तमाम फ़लसफे जिंदगी से जोड़ दिए जाएंगे। जिस से एक इंसान की भावनाएं सामाजिक रूप से उजागर होने की वजह से आहत होंगी। उदाहरण देखिये। ....... आज सरकार एक अध्यादेश जारी करके सभी रहवासियों का डीएनए सैंपल सुरक्षित रखने की बात कर रही है। जिस से दूसरे देशों से आये शरणार्थी या अपराधी , जैसे तमाम लोगों पर रोक लगाई जा सकती है। अभी कुछ ही दिनों पहले सरकार ने आधार कार्ड योजना को लागू किया जिसमे हम सभी ने वह कार्ड बनवाए और अपनी अपनी आँखों का सैंपल दिया जो हमारे रिकॉर्ड के साथ संलग्न हो गया। मैं नहीं कहती की इस तरह की योजनाएं गलत होती है या कारगर नहीं होती। पर किसी भी योजना का आधार जब तक सही नहीं होगा ईमारत नहीं बनाई जा सकती। डीएनए सैंपल उन लोगो का लिया जाएगा जिन के पास उनके भारतीय नागरिक होने प्रमाण पत्र है। अब ये तो भारत का बच्चा भी जानता होगा कि इस तरह के कागजात बनवाना या हांसिल करना सिर्फ पैसों का खेल है। जमीनी स्तर पर से ही भ्रष्टाचार ने पुरे सिस्टम को खोखला कर के रखा है इस लिए ऊपरी डाल से फल देने की कल्पना भी व्यर्थ है।
इसी प्रकार एक दूसरी तकनीक जिसे महिला अंड कोष के एग फ्रीजिंग के लिए प्रयोग किया जा रहा है। इस में महिला के अंडाणुओं को सुरक्षित रख उन्हें लम्बे समय बाद पुनः प्रयोग करने के लिए तकनीक आजमाई जा रही है। इन अंडाणुओं के प्रयोग का उद्देशय महिलाओं में उम्र बढ़ने के साथ का बाझँपन या किसी रोग के कारण गर्भ के अंडाणुओं के कमजोर हो जाने पर प्रयोग किया जाता है जिस से वह स्त्री पुनः गर्भवती हो सकती है। स्त्री के लिए ये तकनीक एक वरदान साबित हो सकती है। पर इस का दूसरा पहलु भी देखना पड़ेगा। वह ये है कि सुरक्षित रखने वाली संस्था की जवाबदेही और ईमानदारी उस स्त्री के प्रति कितनी है। क्योंकि ऐसे में उसके अंडाणुओं का दुरूपयोग की सम्भावना भी बढ़ जाती है और साथ ही फ्रोजेन अण्डों से विकसित बच्चे क्या ता उम्र स्वस्थ और सुरक्षित रहने की गारंटी ले कर आते हैं। कोई भी तकनीक तभी कारगर साबित हो सकी है जब उसके आगे आने वे तमाम मुश्किलों के हल पहले ही तलाश लिए जाए जिस से समय आने पर इनसे लड़ कर उसे सफलता पूर्वक आगे बढ़ाया जा सके। विज्ञान जीवन का एक प्रमुख अंश है पर विज्ञानं उस परमात्मा से बड़ा नहीं है जिस ने ये सारी सृष्टि रच कर नयी नयी विधाएँ जोड़ दी। इस लिए जीवन को विज्ञान के साथ चलाएं अवश्य पर विज्ञान को जीवन पर हावी न होने दे। यही सत्य है।
नई नई तकनीकों से मानव सभ्यता के विकास के बहाव को निरंतर बनाये रखने में काफी प्रगति हुई है। पर ये तकनीकें अब जीवन में अंदर तक घुस कर उसकी निजता का हनन करने लगी हैं। क्योंकि हर मानव के हक़ है कि वह अपनी निजी जिंदगी और शख्सियत को खुद स्वयं तक सिमित बना सके और रख सके। बहुत कुछ ऐसा जो सिर्फ स्वयं तक ही रहना उचित हो वह जब भी सामाजिक रूप से सामने आएगा उसका विश्लेषण प्रारम्भ हो जाएगा। फिर सही गलत या अच्छे बुरे जैसे तमाम फ़लसफे जिंदगी से जोड़ दिए जाएंगे। जिस से एक इंसान की भावनाएं सामाजिक रूप से उजागर होने की वजह से आहत होंगी। उदाहरण देखिये। ....... आज सरकार एक अध्यादेश जारी करके सभी रहवासियों का डीएनए सैंपल सुरक्षित रखने की बात कर रही है। जिस से दूसरे देशों से आये शरणार्थी या अपराधी , जैसे तमाम लोगों पर रोक लगाई जा सकती है। अभी कुछ ही दिनों पहले सरकार ने आधार कार्ड योजना को लागू किया जिसमे हम सभी ने वह कार्ड बनवाए और अपनी अपनी आँखों का सैंपल दिया जो हमारे रिकॉर्ड के साथ संलग्न हो गया। मैं नहीं कहती की इस तरह की योजनाएं गलत होती है या कारगर नहीं होती। पर किसी भी योजना का आधार जब तक सही नहीं होगा ईमारत नहीं बनाई जा सकती। डीएनए सैंपल उन लोगो का लिया जाएगा जिन के पास उनके भारतीय नागरिक होने प्रमाण पत्र है। अब ये तो भारत का बच्चा भी जानता होगा कि इस तरह के कागजात बनवाना या हांसिल करना सिर्फ पैसों का खेल है। जमीनी स्तर पर से ही भ्रष्टाचार ने पुरे सिस्टम को खोखला कर के रखा है इस लिए ऊपरी डाल से फल देने की कल्पना भी व्यर्थ है।
इसी प्रकार एक दूसरी तकनीक जिसे महिला अंड कोष के एग फ्रीजिंग के लिए प्रयोग किया जा रहा है। इस में महिला के अंडाणुओं को सुरक्षित रख उन्हें लम्बे समय बाद पुनः प्रयोग करने के लिए तकनीक आजमाई जा रही है। इन अंडाणुओं के प्रयोग का उद्देशय महिलाओं में उम्र बढ़ने के साथ का बाझँपन या किसी रोग के कारण गर्भ के अंडाणुओं के कमजोर हो जाने पर प्रयोग किया जाता है जिस से वह स्त्री पुनः गर्भवती हो सकती है। स्त्री के लिए ये तकनीक एक वरदान साबित हो सकती है। पर इस का दूसरा पहलु भी देखना पड़ेगा। वह ये है कि सुरक्षित रखने वाली संस्था की जवाबदेही और ईमानदारी उस स्त्री के प्रति कितनी है। क्योंकि ऐसे में उसके अंडाणुओं का दुरूपयोग की सम्भावना भी बढ़ जाती है और साथ ही फ्रोजेन अण्डों से विकसित बच्चे क्या ता उम्र स्वस्थ और सुरक्षित रहने की गारंटी ले कर आते हैं। कोई भी तकनीक तभी कारगर साबित हो सकी है जब उसके आगे आने वे तमाम मुश्किलों के हल पहले ही तलाश लिए जाए जिस से समय आने पर इनसे लड़ कर उसे सफलता पूर्वक आगे बढ़ाया जा सके। विज्ञान जीवन का एक प्रमुख अंश है पर विज्ञानं उस परमात्मा से बड़ा नहीं है जिस ने ये सारी सृष्टि रच कर नयी नयी विधाएँ जोड़ दी। इस लिए जीवन को विज्ञान के साथ चलाएं अवश्य पर विज्ञान को जीवन पर हावी न होने दे। यही सत्य है।
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