अबोध बचपन का यौनाकर्षण से बचाव .......!
पिछले अंक में मैनें कुछ ऐसे बिंदुओं पर चर्चा की थी जिस के जरिये हम अपने बच्चों को आस पास घूमते इंसानी जानवरों से बचा सकते हैं। जो हर पल उन छोटे बच्चों को शिकार बनाने की फ़िराक़ में घूमते रहते हैं जिन्हें ये समझ भी नहीं कि उनके साथ कुछ ऐसा भी हो सकता है। बच्चे मासूम हैं। ये ऐसे किसी भी कार्य को सही या गलत की श्रेणी में विभाजित नहीं कर पाते। ये सारा कुकृत्य उनकी सोच समझ से बहुत परे हैं।
इस का एक मूल कारण जाने के लिए पहले एक छोटे बच्चे की मनःस्थिति के बारे में सोचा जाए। एक नवजात शिशु बड़ा होते होते आस पास की तमाम घटनाओं को देखते हुए सब कुछ सीखता है। उसे अपनी मातृभाषा सिखलाने की जरूरत नहीं पड़ती। घर परिवार में सभी को बोलते सुनते वो भी विद्यालय जाने से पहले ही अपनी भावनाएं बोल कर व्यक्त करना सीख जाता है। वह जो भी समझता और जानने की कोशिश करता है उसी के आधार पर उसका भविष्य निर्धारित होता है। परिवार के तमाम सदस्य उस समय उसके लिए एक किरदार की तरह होते हैं।जो उसके लिए आगे के जीवन का चलचित्र कैसा होगा ये दिखा रहें होतें हैं।
इस पुरे वक्तव्य का अर्थ ये है की हर बच्चा अपनों से ही अपने आगे के जीवन के बारे में जानता और समझता है। इस लिए सबसे पहले हमारा दायित्व है की हम अपने बच्चे को अच्छा या बुरा समझने के लिए कैसे तैयार करें। परिवार में ही तमाम लोग ऐसे हो सकते हैं जो बच्चे को बच्चा समझ कर उसके साथ कुछ गलत करने का प्रयास करें। ऐसे में सबसे पहले बच्चे को यह समझाया जाना जरूरी है कि किसी दूसरे की कौन सी गतिविधि उसके बचपने के विपरीत है।
एक बात ये भी समझनी आश्यक है कि हर उम्र की एक भाषा का एक अलग स्तर होता है। इस स्तर के अनुसार ही हम शब्दों का चयन करके उन्हें सही गलत समझायेंगे। जैसे एक वयस्क से हम शारीरिक सम्बन्ध के बारे में , बलात्कार के बारे चर्चा करें तो उसे उन्ही के शब्दों में समझा सकते है। परन्तु यदि यहीं पर एक छोटा बच्चा हो तो हमें अपने शब्द बदलने होंगे। उसे कुछ इस तरह समझाना होगा कि वह इसे एक वयस्क के कार्यकलाप के रूप में स्वीकार करें और समझें। यह एक मुश्किल कार्य है की एक बच्चे को इस तरह की बातों की सही समुचित और साध्य जानकारी दी जाएँ पर एक अभिभावक होने के नाते हम सभी को अपने बच्चों की सुरक्षा हेतु ये प्रयास करना ही होगा।
पिछले अंक में मैनें कुछ ऐसे बिंदुओं पर चर्चा की थी जिस के जरिये हम अपने बच्चों को आस पास घूमते इंसानी जानवरों से बचा सकते हैं। जो हर पल उन छोटे बच्चों को शिकार बनाने की फ़िराक़ में घूमते रहते हैं जिन्हें ये समझ भी नहीं कि उनके साथ कुछ ऐसा भी हो सकता है। बच्चे मासूम हैं। ये ऐसे किसी भी कार्य को सही या गलत की श्रेणी में विभाजित नहीं कर पाते। ये सारा कुकृत्य उनकी सोच समझ से बहुत परे हैं।
इस का एक मूल कारण जाने के लिए पहले एक छोटे बच्चे की मनःस्थिति के बारे में सोचा जाए। एक नवजात शिशु बड़ा होते होते आस पास की तमाम घटनाओं को देखते हुए सब कुछ सीखता है। उसे अपनी मातृभाषा सिखलाने की जरूरत नहीं पड़ती। घर परिवार में सभी को बोलते सुनते वो भी विद्यालय जाने से पहले ही अपनी भावनाएं बोल कर व्यक्त करना सीख जाता है। वह जो भी समझता और जानने की कोशिश करता है उसी के आधार पर उसका भविष्य निर्धारित होता है। परिवार के तमाम सदस्य उस समय उसके लिए एक किरदार की तरह होते हैं।जो उसके लिए आगे के जीवन का चलचित्र कैसा होगा ये दिखा रहें होतें हैं।
इस पुरे वक्तव्य का अर्थ ये है की हर बच्चा अपनों से ही अपने आगे के जीवन के बारे में जानता और समझता है। इस लिए सबसे पहले हमारा दायित्व है की हम अपने बच्चे को अच्छा या बुरा समझने के लिए कैसे तैयार करें। परिवार में ही तमाम लोग ऐसे हो सकते हैं जो बच्चे को बच्चा समझ कर उसके साथ कुछ गलत करने का प्रयास करें। ऐसे में सबसे पहले बच्चे को यह समझाया जाना जरूरी है कि किसी दूसरे की कौन सी गतिविधि उसके बचपने के विपरीत है।
एक बात ये भी समझनी आश्यक है कि हर उम्र की एक भाषा का एक अलग स्तर होता है। इस स्तर के अनुसार ही हम शब्दों का चयन करके उन्हें सही गलत समझायेंगे। जैसे एक वयस्क से हम शारीरिक सम्बन्ध के बारे में , बलात्कार के बारे चर्चा करें तो उसे उन्ही के शब्दों में समझा सकते है। परन्तु यदि यहीं पर एक छोटा बच्चा हो तो हमें अपने शब्द बदलने होंगे। उसे कुछ इस तरह समझाना होगा कि वह इसे एक वयस्क के कार्यकलाप के रूप में स्वीकार करें और समझें। यह एक मुश्किल कार्य है की एक बच्चे को इस तरह की बातों की सही समुचित और साध्य जानकारी दी जाएँ पर एक अभिभावक होने के नाते हम सभी को अपने बच्चों की सुरक्षा हेतु ये प्रयास करना ही होगा।
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