गुजरे कल के लिए आज वैमनस्य पैदा करने की साजिश......... !

रोजाना सुबह टहल कर आने के बाद अखबार की सुर्ख़ियों पर नज़र डालना मेरी प्राथमिकताओं में शुमार है। आज कल पूरा हिंदुस्तान एक तांडव की चपेट में है।  वह है फिल्म पद्मावती का कुछ जातिगत राजनीतिक संगठनों द्वारा विरोध।  तोड़ फोड़ , बंद , आगजनी और सामान्य जनता को परेशान कर के ये साबित किया जाने का प्रयास हो रहा है कि रानी पद्मिनी एक महान देवी थी और राजपूत समाज उनकी पूजा करता है। मैं भी राजपूत हूँ और राजपूत होने के नाते मुझे भी अपने इतिहास पर गर्व है। पर यह साबित करने के लिए मुझे किसी दूसरे को तकलीफ देने की जरूरत नहीं है। इस सारी घटना के पीछे किस तरह की मानसिकता है और कुछ महत्वपूर्ण बातों को क्यों अनदेखा किया जा रहा है यह समझना जरूरी है। 
                      रानी पद्मिनी निसंदेह एक महान रानी थी। पद्मावती सिंघल राज्य के राजा गन्धर्व और रानी चम्पावती की बेटी थी। वह बेहद सूंदर थी और उनकी सुन्दरता के चर्चे दूर दूर तक फैले हुए थे। उनके शरीर की सुंदरता के वर्णन इस प्रकार किया जाता था कि वह पानी भी पीती तो वह उनके गले से उतरता दीखता। पान खाती तो उसकी ललाई उनके कंठ में नजर आती। पद्मावती के विवाह के लिए उनके पिता ने एक स्वयंबर आयोजित किया जिसमें चित्तौड़ के सिसोदिया वंश के राजा रावल रतन सिंह ने दूसरों राजाओं को हरा कर पद्मिनी के साथ विवाह किया। रतन सिंह पहले से तेरह रानियों से विवाहित थे फिर भी उन्होंने रानी पद्मिनी से विबाह कर के उन्हें खूब मान सम्मान दिया। समकालीन दिल्ली का शासक अलाउद्दीन खिलजी तक भी पद्मावती के सौंदर्य के चर्चे पहुंचे उन्होंने रतन सिंह को संदेसा भिजवा कर रानी को एक बार देखने की अनुमति चाही। राजपूतों में सख्त पर्दा हुआ करता है इस कारण रतन सिंह ने इस मांग को अस्वीकार करना चाहा परन्तु एक ताकतवर शासक से मनमुटाव मोल न लेने के लिए रतन सिंह ने रानी का अक्स एक ठहरे हुए पानी में दिखाने की बात पर रजामंदी कर ली। खिलजी चितौड़ आया और रानी पद्मिनी का सिर्फ अक्स देख कर ही उनकी सुंदरता का कायल हो गया। उसके वापस लौटते हुए रतन सिंह जब कुछ दूर तक उसे छोड़ने  आते हैं तब वह चल से अपने सैनिकों को कह कर उन्हें कैद करवा लेता है। अब वह राजा रतन सिंह के बदले रानी पद्मिनी को उन्हें सौंप दिए जाने का सौदा करने लगा। सभी राजपूत शाषित राज्यों में से चौहान राजपूत राजा गोरा और बादल रतन सिंह को छुड़ाने के लिए एक चाल चलते हैं वह खिलजी को सन्देश भिजवाते हैं की रानी उनके पास  आने को तैयार है। और फिर बहुत सारी सजी धजी पालकियों के साथ वह खिलजी के उस शिविर की ओर रवाना हो जातें है जहाँ रतन सिंह को रखा गया है। खिलजी यह सोच कर खुश होता है की पद्मिनी उसके पास आ रही है जबकि उन पालकियों में सैनिकों की टोली बैठी होती है जो खिलजी पर आक्रमण कर के अपने राजा को छुड़ा लेती है। गोरा इस युद्ध में शहीद हो जातें हैं और बादल राजा को महल ले आतें हैं। अपनी इस हार के बाद खिलजी क्रोद्ध में आ जाता है और चित्तौड़ पर चढ़ाई कर देता है। इतनी बड़ी सेना का सामना करते हुए रतन सिंह की सेना परास्त होने लगती है फिर भी आखिरी सांस तक लड़ने के लिए डटी रहती है। जब हार समक्ष दिखने लगती है तब रानी पद्मिनी समेत किले की सभी महिलाएं खिलजी के आगे अपनी इज्जत समेत नतमस्तक होने से बेहतर जौहर करने का निर्णय लेती है। जौहर की प्रथा में अपने सम्मान को बचाये रखने के लिए जलती हुई आग में खुद को सम्पर्पित कर दिया जाता है। तब वर्ष 1303 में यही किया पद्मिनी और उसके साथ महल की तमाम महिलाओं ने। खिलजी सभी को परास्त कर के , मार करके जब किले में तो दाखिल हुआ पर उसे सिर्फ वहाँ मृत हाड़ , राख और हड्डियां ही मिली। 
        इस पूरे इतिहास का वर्णन वर्ष 1540 में मालिक मोहम्मद जायसी द्वारा लिखी गयी पद्मावत कविता में मिलता है। अब जो विचार करने योग्य तथ्य है वह ये कि आज से लगभग 700 वर्ष पूर्व किसी का भी , कोई भी इतिहास रहा हो आज जब उसके पूर्ण साक्ष्य उपलब्ध हो या न हो।  उस आधार पर आज को कलंकित करना क्या उचित है ?  रानी पद्मिनी जैसी भी थी , उनने जो भी जीवन जिया , वह उनके साथ ही बीत गया। उन पर छींटा कशी करने से न तो उनका जिया जीवन बदलेगा न ही उनकी तब की परिस्थितियों में बदलाव आएगा। मुझे ये कत्तई समझ नहीं आता कि क्यों इतिहास को ले कर आज या आने वाले कल को ख़राब किया जाता है। जो बीत गया वो बात गयी।  ये लोग वर्षों पुराने मामले को लेकर आज लोगों में वैमनस्य पैदा कर रहें है जो की बिलकुल अनुचित है। 

                                                           

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