Mindfulness of others ...........!
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शाब्दिक तौर पर अगर हम इसका अनुवाद करें तो शायद आएगा... दूसरों का दिमाग़ीपन , पर अगर भावनात्मक तौर पर हम इसे समझने का प्रयास करें।  तो यह अर्थ निकलेगा कि हम किस तरह की जिंदगी जियें जिसमें दूसरों की भावनाओं की कदर छिपी हो।  सबसे पहले हम सब एक राष्ट्र में रहतें है।  उसके बाद किसी राज्य में। उसके बाद उस राज्य के किसी एक शहर में।  उस शहर के किसी एक क्षेत्र के एक मोहल्ले में।  अब परिचय और सम्बन्द्धों से जुड़ाव देखें।  हम अपने आस पास घिरे बहुत से लोगों से आर्थिक ,सामाजिक और पारिवारिक रिश्तेदारियों के द्वारा जुड़े रहते हैं। उन सभी की हमारी जिंदगियों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में जरूरत रहती है कल्पना करें की क्या कोई इंसान एकदम अकेला होकर जी सकता है क्या ? हमने जन्म लिया। एक परिवार में पैदा हो कर आये उस परिवार में बहुत से रिश्तों से घिरे खुद को बड़ा होते देखते हैं। फिर बड़े होकर हमें जीवन चलाने के लिए धन की जरूरत पड़ती है।  धन काम करने से आएगा।  काम करने के लिए किसी कार्यालय का सदस्य बनना पड़ेगा। वहां और भी बहुत से लोग काम करते होंगे। सभी के साथ वहाँ काम करना पड़ेगा। आर्थिक रूप से खुद को स्थापित करने के बाद जब अपना परिवार बढ़ाने की जिम्मेदारी आई तो विवाह करना पड़ा। फिर विवाह के बाद घर चलने के लिए ढेरों संघर्ष और भागा दौड़ी।  यहाँ भी बहुत से लोगों के बीच रहकर इन्हे कार्यान्वित करना पड़ता है। यही जीवन चक्र है। 
                        अब इन सारी बातों को ध्यान में रखते हुए ये सोचा जाए कि क्या फर्क  है दूसरे देशों में और भारत में ......... फर्क स्वतः ही दिखता है उनकी तरक्की और  शांति में। आज हिंदुस्तान में छोटी बड़ी सैकड़ों राजनितिक पार्टियां बन गयीं हैं। सब अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए जोर आजमाने में लगी हैं। जनता को बेवकूफ बना कर अपनी सरकार बनने या एक ताकतवर स्थति में पहुँचाने के बाद उनकी सारी जवाबदेहियाँ ख़त्म हो जाती हैं। वो और उनके चेले चपाटों ने इस कदर कोहराम मचा कर रखा है कि आम जनता की बोलती ही बंद है। 
            कल NDTV के एक कार्यक्रम में एक वक्ता फैज़ान मुस्तफा जी से एक बहुत अच्छी बात सुनी। उन्होंने कहा की चुनाव में ये ढोल पीटा जाता है कि यदि आप को एक मजबूत नेता चाहिए तो इन्हे वोट दें। यह गलत है सविंधान के अनुसार नेता हमेशा कमजोर होना चाहिए जिसे अपनी कुर्सी को सुरक्षित रखने के लिए लोगों पर ध्यान देना चाहिए। उसे इस बात का डर रहना चाहिए की यदि मैं लोगों की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरूंगा तो ये मुझे इस पद से हटा सकते हैं। आज ये सारी बातें छुटभैये नेताओं तक की भी दबंगई से ढक गयी हैं। आज जनता को डर कर जीना पड़ता है कि अगर इन नेताओं के खिलाफ कुछ बोल दिया या लिख दिया तो हम भी "गौरी लंकेश "की तरह न बना दिए जाएँ।  ये दबंगई आज हर दूसरे इंसान की फितरत में शामिल हो चुकी है। यही फितरत सड़कों पर , सार्वजनिक स्थान -स्टेशन , सिनेमाघरों , स्कूलों , दफ्तरों  में , सरकारी पदों में , अपने पद के दुरुपयोग में , और भी न जाने कहाँ कहाँ देखने को मिलती रहती है।  इसने ईमानदारी तो बिलकुल ख़त्म सी ही कर दी।  स्वार्थसिद्धि इस कदर बढ़ा दी की इनसान अपने अलावा कुछ देखता समझता नहीं।एक दूसरे को धक्का मार कर आगे बढ़ने की प्रवित्ति ने हिंदुस्तान को धीरे धीरे गर्त में ले जाना शुरू कर दिया हैं।यही अंतर है जापान और हिंदुस्तान में .... जो हमेशा कायम रहेगा।  
                                   

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