स्त्री के मान ,सम्मान और महत्व की महत्ता............!
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तत्कालीन मुद्दों पर अपनी प्रतिक्रिया देना मुझे अच्छा लगता है। चाहे वह किसी भी जाति धर्म या संप्रदाय से जुडी हों। मैं अपनी जाति और धर्म को ले कर इतनी सजग कत्तई नहीं रही कि उसमें समाई कुरीतिओं को भी वाज़िब ठहरने का प्रयास करूँ । जो गलत है वह सभी के लिए सामान रूप से गलत होता है। उस का प्रभाव हमारे पूरे समाज पर एक सामान पड़ता है। किसी भी जाति में यदि कुछ गलत मान्यताएं शामिल हैं तो समाज के सभी लोगों को उनका पुरजोर विरोध करना चाहिए। सबसे ज्यादा दायित्व तो स्वयं उसी धर्म का बनता है कि वह अपने अंदर शामिल कुप्रथाओं और कुरीतियों को हटा कर एक स्वस्थ समाज बनाने की कोशिश करें। किसी भी धर्म की पालना अपने इष्ट के प्रति और आदर और खुद को उनके आधीन दिखाने के लिए करनी चाहिए न की उस की आड़ ले कर खुद को मजबूत दिखाने के लिए। जब हम खुद से ऊपर किसी को मान लेंगे तो स्वतः ही हमारे इर्द गिर्द एक मजबूत सुरक्षा घेरा बन जाता है ,जो कि हमारा इष्ट हमारे लिए बनाता है।
अभी राजपूतों का पद्मावत से जुड़ा विवाद थमा नहीं कि मुस्लिम समुदाय का एक नया विवाद चर्चा में आ गया है। अभी कुछ समय पहले तीन तलाक का मुद्दा बहुत गरमाया था जिसे सरकार ने भी मंजूरी दे कर अवैद्य मान लिया। अब एक फिल्म के जरिये हलाला का मुद्दा विवाद का कारण बन रहा है। मुस्लिम समुदाय में यह नियम है की पत्नी को तलाक देने के बाद यदि पछतावा हो और वापस उसी से निकाह करना चाहे तो इस के लिए उस स्त्री का किसी दूसरे परुष से विवाह होना जरूरी है। जब वह दूसरा पुरुष उसे तलाक दे कर छोड़ देगा तब वह पहले पति से वापस निकाह की हक़दार हो जाएगी। अब इसी नियम से जुडी यह हलाला प्रथा कुछ इस प्रकार की है कि यदि क्रोधवश तीन तलाक के जरिये पत्नी को तलाक दे दिया गया और फिर अपने निर्णय पर पछतावा हो तो ऐसे में दुबारा निकाह के लिए वह जिस काजी या मौलाना के पास जायेगा , वह पहले पति से इस कार्य के लिए एक निश्चित रकम ले कर उस महिला से एक दिन का निकाह कर के उसे दूसरे दिन तलाक दे देता है जिससे वह पुराने शौहर के पास वापस जा सकें। हालाँकि मुझे हिन्दू होने के नाते इस प्रथा की बहुत गहराई से जानकारी नहीं है फिर भी जितना जानने और समझने को मिला इसमें एक औरत की बेबसी और बिकने की दास्ताँ सामने आयी। कई मुस्लिम संगठनों ने भी ये स्वीकार किया कि ऐसा उनके समाज में होता है और आज भी एक औरत की बेबसी को दो पुरुषों के बीच का धंधा बना कर रखा गया है। अब ऐसे में इन तथाकथित मुल्ला मौलवियों के तो ठाट हैं। इस प्रथा के चलते धन और मौज दोनों कमा लिया पर सूली पर तो एक औरत ही चढ़ी। उसके जिस्म को बिकाऊ समझ कर पहले पति ने , फिर मौलवियों ने और फिर समाज तीनों ने रौंदने की सजिश की।
हिन्दू समाज में भी पहले बहु विवाह की प्रथा थी जिस के तहत राजा कई कई विवाह कर के अनेकों रानियां रखते थे। यह आन बान की बात हुआ करती थी। अर्थात एक पुरुष को बहु विवाह के जरिये बहुत सी औरतों के उपभोग की स्वतंत्रता थी। इसी तरह महाभारत काल में पाँच पांडवों ने मिलकर एक द्रौपदी से विवाह किया। अर्थात वह अकेली स्त्री पाँच पुरुषों के साथ संबंद्ध रखने के लिए विवश थी। अलग अलग तरीके से रोजाना वह उसका दोहन करते होंगे। परन्तु विवाह के नाम की बेड़ी से बंधी वह स्त्री विवश थी। मै नहीं मानती कि इस के लिए धर्म दोषी है। हम स्वयं ही इस के लिए जिम्मेदार हैं। हम खुद ...... अगर हम हमारा समाज ही इन बेबुनियादी प्रथाओं को मानने से इंकार कर दें तो एक समय ये स्वतः ही समाज में लुप्त हो जाएँ। जब पांडवों के यह कहने पर कि देखो माँ हम सब क्या ले कर आएं हैं कुंती का ये प्रतिउत्तर कि सभी भाई आपस में मिल कर बाँट लो , का सभी ने एक साथ मिल कर विरोध क्यों नहीं किया ? द्रौपदी कोई फल मिठाई या बांटने की वस्तु तो थी नहीं। एक जीती जागती स्त्री थी। एक तरफ एक स्त्री के रूप में माँ के कहे का इतना सम्मान दूसरी तरफ एक स्त्री जिसे एक पुरुष अर्जुन ब्याह कर लाया उसे पांच लोगों में बराबर बांटने का निर्णय ले लिया गया। साथ ही यह भी की चौसर में अपनी पत्नी द्रौपदी को ही दावँ पर लगा दिया। यह दोगला व्यव्हार था जो सिर्फ पत्नी के रूप में स्त्री को उसका सम्मान देने से कतराता था। जबकि एक पत्नी ही है जो जीवनपर्यन्त पति का साथ निभाती है। इस लिए अब आवश्यक है कि पत्नी के सम्मान के लिए सामाजिक कुरीतियों को नाकारा जाए और उसे अपने जीवन का अभिन्न अंग मान कर हमेशा उसे साथ रखने का वचन निभाया जाए।
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तत्कालीन मुद्दों पर अपनी प्रतिक्रिया देना मुझे अच्छा लगता है। चाहे वह किसी भी जाति धर्म या संप्रदाय से जुडी हों। मैं अपनी जाति और धर्म को ले कर इतनी सजग कत्तई नहीं रही कि उसमें समाई कुरीतिओं को भी वाज़िब ठहरने का प्रयास करूँ । जो गलत है वह सभी के लिए सामान रूप से गलत होता है। उस का प्रभाव हमारे पूरे समाज पर एक सामान पड़ता है। किसी भी जाति में यदि कुछ गलत मान्यताएं शामिल हैं तो समाज के सभी लोगों को उनका पुरजोर विरोध करना चाहिए। सबसे ज्यादा दायित्व तो स्वयं उसी धर्म का बनता है कि वह अपने अंदर शामिल कुप्रथाओं और कुरीतियों को हटा कर एक स्वस्थ समाज बनाने की कोशिश करें। किसी भी धर्म की पालना अपने इष्ट के प्रति और आदर और खुद को उनके आधीन दिखाने के लिए करनी चाहिए न की उस की आड़ ले कर खुद को मजबूत दिखाने के लिए। जब हम खुद से ऊपर किसी को मान लेंगे तो स्वतः ही हमारे इर्द गिर्द एक मजबूत सुरक्षा घेरा बन जाता है ,जो कि हमारा इष्ट हमारे लिए बनाता है।
अभी राजपूतों का पद्मावत से जुड़ा विवाद थमा नहीं कि मुस्लिम समुदाय का एक नया विवाद चर्चा में आ गया है। अभी कुछ समय पहले तीन तलाक का मुद्दा बहुत गरमाया था जिसे सरकार ने भी मंजूरी दे कर अवैद्य मान लिया। अब एक फिल्म के जरिये हलाला का मुद्दा विवाद का कारण बन रहा है। मुस्लिम समुदाय में यह नियम है की पत्नी को तलाक देने के बाद यदि पछतावा हो और वापस उसी से निकाह करना चाहे तो इस के लिए उस स्त्री का किसी दूसरे परुष से विवाह होना जरूरी है। जब वह दूसरा पुरुष उसे तलाक दे कर छोड़ देगा तब वह पहले पति से वापस निकाह की हक़दार हो जाएगी। अब इसी नियम से जुडी यह हलाला प्रथा कुछ इस प्रकार की है कि यदि क्रोधवश तीन तलाक के जरिये पत्नी को तलाक दे दिया गया और फिर अपने निर्णय पर पछतावा हो तो ऐसे में दुबारा निकाह के लिए वह जिस काजी या मौलाना के पास जायेगा , वह पहले पति से इस कार्य के लिए एक निश्चित रकम ले कर उस महिला से एक दिन का निकाह कर के उसे दूसरे दिन तलाक दे देता है जिससे वह पुराने शौहर के पास वापस जा सकें। हालाँकि मुझे हिन्दू होने के नाते इस प्रथा की बहुत गहराई से जानकारी नहीं है फिर भी जितना जानने और समझने को मिला इसमें एक औरत की बेबसी और बिकने की दास्ताँ सामने आयी। कई मुस्लिम संगठनों ने भी ये स्वीकार किया कि ऐसा उनके समाज में होता है और आज भी एक औरत की बेबसी को दो पुरुषों के बीच का धंधा बना कर रखा गया है। अब ऐसे में इन तथाकथित मुल्ला मौलवियों के तो ठाट हैं। इस प्रथा के चलते धन और मौज दोनों कमा लिया पर सूली पर तो एक औरत ही चढ़ी। उसके जिस्म को बिकाऊ समझ कर पहले पति ने , फिर मौलवियों ने और फिर समाज तीनों ने रौंदने की सजिश की।
हिन्दू समाज में भी पहले बहु विवाह की प्रथा थी जिस के तहत राजा कई कई विवाह कर के अनेकों रानियां रखते थे। यह आन बान की बात हुआ करती थी। अर्थात एक पुरुष को बहु विवाह के जरिये बहुत सी औरतों के उपभोग की स्वतंत्रता थी। इसी तरह महाभारत काल में पाँच पांडवों ने मिलकर एक द्रौपदी से विवाह किया। अर्थात वह अकेली स्त्री पाँच पुरुषों के साथ संबंद्ध रखने के लिए विवश थी। अलग अलग तरीके से रोजाना वह उसका दोहन करते होंगे। परन्तु विवाह के नाम की बेड़ी से बंधी वह स्त्री विवश थी। मै नहीं मानती कि इस के लिए धर्म दोषी है। हम स्वयं ही इस के लिए जिम्मेदार हैं। हम खुद ...... अगर हम हमारा समाज ही इन बेबुनियादी प्रथाओं को मानने से इंकार कर दें तो एक समय ये स्वतः ही समाज में लुप्त हो जाएँ। जब पांडवों के यह कहने पर कि देखो माँ हम सब क्या ले कर आएं हैं कुंती का ये प्रतिउत्तर कि सभी भाई आपस में मिल कर बाँट लो , का सभी ने एक साथ मिल कर विरोध क्यों नहीं किया ? द्रौपदी कोई फल मिठाई या बांटने की वस्तु तो थी नहीं। एक जीती जागती स्त्री थी। एक तरफ एक स्त्री के रूप में माँ के कहे का इतना सम्मान दूसरी तरफ एक स्त्री जिसे एक पुरुष अर्जुन ब्याह कर लाया उसे पांच लोगों में बराबर बांटने का निर्णय ले लिया गया। साथ ही यह भी की चौसर में अपनी पत्नी द्रौपदी को ही दावँ पर लगा दिया। यह दोगला व्यव्हार था जो सिर्फ पत्नी के रूप में स्त्री को उसका सम्मान देने से कतराता था। जबकि एक पत्नी ही है जो जीवनपर्यन्त पति का साथ निभाती है। इस लिए अब आवश्यक है कि पत्नी के सम्मान के लिए सामाजिक कुरीतियों को नाकारा जाए और उसे अपने जीवन का अभिन्न अंग मान कर हमेशा उसे साथ रखने का वचन निभाया जाए।
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