पता नहीं चला कब ... ? ?😦

पता नहीं चला......!

जिंदगी की इस आपाधापी में ,
कब उम्र यूँ गुजर गयी 
पता नहीं चला। 
खेल खिलौने की दुनिया 
न जाने किधर बिखर गयी  
पता नहीं चला। 
एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक 
जिमेदारियों का पाला बदलना 
पता नहीं चला। 
माँ बाप की जिम्मेदारी थे हम 
अब बच्चों के जिम्मेदार हुए 
पता नहीं चला। 
दिन को भी बेखबर सोने वाले हम 
रातों को भी क्यों जागते रहते हैं 
पता नहीं चला। 
साईकिल से स्कूटर और स्कूटर से कार
तक पहुँचने में, किन रस्तों को खो दिया 
पता नहीं चला।
त्योहारों में भागा दौड़ी की रौनक 
दोस्तों से कब घर तक सिमटी 
पता नहीं चला। 
दम भरते थे जिस बड़ी नौकरी का हम 
कब कगार पर पहुँच रिटायर हुए 
पता नहीं चला। 
भरे पुरे परिवार का दम्भ भरते रहे 
कब सिर्फ दो पर आ कर सिमटे 
पता नहीं चला। 
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