परिवार का बदला स्वरुप ..........!
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आज के सन्दर्भ में अगर हम सभी के व्यवहारों आंकलन करें तो  क्या पाएंगे ?  ये कि सभी अपने में मस्त हैं , रिश्ते निभाए जा रहें हैं पर सिर्फ इस लिए कि शायद एक परिवार से हैं या फिर जरूरतों के आगे के आगे मजबूर  हैं। ये आज का सच है। जिसे हर कोई मान कर सिर्फ इसलिए जी रहा है क्योंकि अभी भी ये सत्य झुठलाया नहीं जा सकता कि हमें प्राथमिक स्तर पर जीने के लिए कुछ लोगों के साथ की जरूरत पड़ती ही है।  यही जरुरत के फंदे में वह सभी उलझे हैं जो हर वक्त आजादी के ख्याल रखते हैं। कब इतने सक्षम हो जाएँ कि उन सभी रोकने टोकने वालों की बंदिशों से आजाद होएं , यही ख्याल खुद को और ज्यादा मेहनत करने को उकसाता है। यही मेहनत ज्यादा समय लेने लगती है और फिर धीरे धीरे सभी से दूर होते जातें हैं। ये वह हक़ीक़त है जो आज कल माँ बाप से बच्चों को , पति और पत्नी को एक दूसरे से , सास ससुर से बेटा बहु को , और तमाम रिश्तों में दूरी होने का प्रमुख कारण बन गयी है। आज रिश्तों को इस तराजू पर तोला जाता है कि सामने वाला बंदा हमारे लिए किस सीमा तक धन खर्च कर सकता है। अपनी आर्थिक स्थिति को बद्तर और दूसरे को समृद्ध बताते हुए अपेक्षाएं रखने की मनःस्थति ने रिश्तों को सिर्फ आदान प्रदान की जा रही रकम जितना संकुचित बना दिया है।  वीभत्स रूप ये है कि आज बच्चे भी माँ बाप को उनकी आर्थिक स्थिति के अनुसार ही प्रतिउत्तर देते हैं। यदि किसी भी समय अपनी मजबूरी बता कर किसी मांग को अस्वीकार कर दिया तो शायद बहुत दिनों तक परिवार में अबोला की स्थिति बन सकती है। यही अबोला आज बहुत से दूसरे रिश्तों को भी  ख़त्म कर रहा है।  
                    धैर्य और ठहराव शायद हम सभी के जीवन से जा चूका है। ऐसा नहीं कि इस के लिए सिर्फ दूसरे ही दोषी हैं और हम पाक साफ़ हैं।  हम भी रिश्तों की मर्यादाओं को सही तरह से निभा न पाने के उतने ही दोषी है जितने दूसरे। क्योंकि हम भी कभी न कभी अपने किये का बराबर बदला पाने की उम्मीद को टूटते हुए रिश्तों से दूर होते चले जाते हैं।  इस लिए आज के समाज में अगर सभी को साथ और मिल जुल कर चलना है तो सबसे पहले अपनी दिमागी डायरी  जिसमें तमाम हिसाब का लेखा जोखा संचित कर रखा है उसे फॉर्मेट करना होगा।  हर प्रकार के रिश्तें के लिए आवश्यक है कि एक बार नए सिरे से उसे नए विचारों के साथ निभाने का प्रयास किया जाए। सफलता जरूर मिलेगी। 

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