नव प्रयोग द्वारा विचार परिवर्तन के प्रयास ...... !
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अखबार की एक खबर ने एक नयी सोच के दरवाजे खोले।  जेलों में लगतार  कैदियों की बढ़ती संख्यां ने जेल प्रबंधन को चिंता में डाला। क्योंकि रखने की जगह सीमित होने से और कैदियों में लगातार वृद्धि होने से उनके रहने की समस्या ने जन्म लिया।  उन्होंने एक ऐसी तरकीब पर विचार करने का सोचा जो दो तरह से काम करती है। मनोवैज्ञानिक और सामाजिक दो प्रभाव डाल कर वह कैदियों की मनोदशा बदलने का काम कर सकती थी। 
            तरकीब कुछ इस तरह की थी।  उन्होंने उन सभी कैदियों को जो विवाहित थे उन्हें पारिवारिक अवकाश देने की पहल की। यह अवकाश दस दिन से लेकर दो माह का होता था।  उन्हें पुलिस की निगरानी में यह अवकाश अपने परिवार के साथ गुजरना होता था। इस तरकीब के प्रभाव को इस तरह समझा जाए।  पहला तो ये कि प्रत्येक शरीर की शारीरिक आवश्यकताएं होती हैं। जेल में रहकर हर व्यक्ति इन आवश्यकताओं से दूर हो जाता है। उन्हें अवकाश दे कर इस आवश्यकता के बीच रहने का सुख याद दिलाना उनके विचार परिवर्तन के लिए बहुत अच्छा सिद्ध हुआ।  अपराधी को ये अहसास हुआ की पत्नी का साथ उसके मन तन दोनों के लिए जरूरी है। दूसरा प्रभाव ये हुआ इस अवकाश चक्र से जेलों में कैदियों की संख्यां को नियंत्रण में रखा जा सका। जो कुछ प्रतिशत अवकाश पर रहते उनके स्थान पर बढे हुए कैदियों को समायोजित कर लिया जाता। 
                                            इस पहल से एक ये फायदा हुआ की अवकाश से लौटे हुए सभी कैदीयों के व्यव्हार में सुधार दिखा वह इस लिए की उन्हें ये लगने लगा कि यदि वह अच्छा व्यव्हार करेंगे तो शायद जल्दी रिहा होकर अपने परिवार और समाज के बीच वापस पहुँच जाएंगे। जरूरी है की इस तरह के मनोवैज्ञानिक प्रयोग आजमाते रहने चाहिए जिससे सामाजिक सुधारों की दिशा में प्रोत्साहन  मिलता रहें। व्यक्ति को सिर्फ चारदीवारी में तमाम अपराधियों के साथ बंद करके रख देने भर से उसमे सुधार आ जाये ये कोई निश्चित नहीं।  इस लिए ये पहल एक अच्छी पहल है जिसकी सराहना की जानी चाहिए। 

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