बच्चों का सर्वांगीड़ विकास कैसे करें.... ?
---------------------------------------------------------------------------------------
{उपरोक्त लेख मेरे द्वारा दी गयी एक रेडियो चर्चा का है )
एक बच्चा जन्म के साथ ही एक स्कूल को साथ ले कर जन्म लेता है। जिसमें उसके माता पिता , अन्य परिवारजन , और समाज के लोग सभी एक नए सिरे से अपनी भूमिकाओं को परिभाषित करते हुए उसका लालन पालन पोषण करतें हैं। बच्चों के सर्वांगीड़ विकास के लिए निम्न पक्षों के विकास की ओर ध्यान दिया जाना अति आवश्यक है - शारीरिक , मानसिक , सामाजिक और भावनात्मक विकास। विकास की इस प्रक्रिया के लिए हमें बहुत से बिंदुओं को पुनः तराशना जरूरी होता है। तराशने से तातपर्य है एक नियत जीवन शैली को एक बच्चे की जरूरत और विकास प्रक्रिया के अनुसार ढाल कर और बदल कर उसे वह वातावरण देना जिसमें उसका संपूर्ण विकास हो पाए। इसकी प्रक्रिया को समझने के लिए हमें आवश्यक तीन महत्वपूर्ण घटकों को विभाजित करके विकास में उनके सहयोग की व्याख्या अलग अलग करनी पड़ेगी। यह तीन प्रमुख घटक हैं---
पहला - आतंरिक परिवार व रिश्तेदार ,
दूसरा - बाहरी समाज तथा वह लोग जिनके बीच बच्चा घर से बाहर संपर्क में रहता है।
तीसरा - शिक्षा व्यवस्था
प्रथम घटक :
परिवार व करीबीजन - बच्चे कच्ची मिटटी की तरह होते हैं और हम सभी बड़े उनके लिए कुम्हार की तरह होते हैं जो उनके व्यक्तित्व और व्यव्हार को तराशने का काम करते हैं। ये बहुत जरूरी है कि हम अपने बच्चों में जिन गुणों का होना जरूरी समझते हैं। उनके लिए सबसे पहले हम उन सभी का पालन करने की आदत बनाये और उन्हें वह अनुकूल माहौल दें जिसमें वह उन्हें अपने व्यव्हार में शामिल कर सकें। उनके आस पास हम बड़ों को वह वातावरण बनाना पड़ेगा जिसके सहारे वह जो भी व्यव्हार करें या अपनी दिनचर्या रखें , वह कालांतर में उनकी आदतों में बदल जाएँ। अच्छी आदतें जन्म लेने के साथ से ही जीवन का हिस्सा बनने लगती हैं बशर्ते कि बच्चों की प्रथम पाठशाला उनका परिवार उन्हें वही करते दिखे और उन्हें भी वही सब करने के लिए प्रोत्साहित करता रहे। प्यार ,अपनापन , लगाव , इज्ज़त ,अनुशासन , परवाह , सहारा आदि बहुत सी भावनाएं हैं जो की एक बच्चा अपने परिवारजनों के बीच रहकर देखता और सीखता है। लेकिन जो सबसे जरूरी बात ध्यान रखने योग्य होती है वह यह है कि इन सभी भावनाओं का सही मात्रा में प्रयोग और प्रदर्शन किया जाए। मात्रा से तातपर्य है समय के अनुसार उनका उचित उपयोग और उसकी सही स्थिति का निर्धारण। एक बच्चे के पूर्ण विकास में परिवार के सभी सदस्यों की भूमिकाएं महत्वपूर्ण और अलग अलग होती हैं। एकल और संयुक्त परिवार में स्थितियों और सदस्यों की संख्यां के अंतर का भी प्रभाव एक बच्चे के व्यव्हार और कार्यों पर पड़ता हैं। संयुक्त परिवार के बच्चे , छोटे बड़े एवं बराबर , बहुत से लोगों के बीच रहकर , एकल परिवार के बच्चों की अपेक्षा ज्यादा सामंजस्य बिठाने वाले व्यवहार के होते हैं। जिसमें बड़ो का मार्गदर्शन और बराबर के सदस्यों से मेलमिलाप का व्यव्हार उन्हें बाहरी समाज में किसी भी परिस्थिति में समायोजन के लिए परिपक्व बनाता है। जबकि एकल परिवार में बच्चे अकेले रहकर ज्यादा आत्मनिर्भर बन पाते है। इसके लिए आवश्यक यह है कि परिवार का कोई भी रूप हो सभी परिवारजनों का ये फ़र्ज़ बनता है कि बच्चे के व्यवहार में उन सभी गुणों को समाहित करने की कोशिश की जाए जो बाहरी दुनिया में उसे अपनी काबिलियत दिखाने में सहयोग कर सके । बच्चे के साथ बच्चा बन के जीने के साथ ही अपनी परिपक्वता दिखाते हुए यदा कदा सख्ती का भी प्रयोग भी करते रहना चाहिए। जिससे बच्चे की बुद्धि का विकास कुदरती तौर पर एक सही दिशा में होता है। सही दिशा का अर्थ है उसे ऐसी जीवनशैली का पालन करने की सीख दी जाए जिस पर चल कर बच्चा बहादुर , उत्साही , फुर्तीला , बुद्धिमान और होनहार बन पाए। अपने बच्चे के साथ पुरानी जीवनशैली को छोड़ कर एक नयेपन से जीने के लिए खुद को तैयार करना चहिये। कोई भी बच्चा अपने जीवन को किस नजरिये से देखता है ये परिकल्पना उसे उसके परिवार से ही मिलती है। दुःख , तनाव , हिंसा ,गुस्सा , चिंता और ईर्ष्या आदि जैसी भावनाएं यदि वह रोज परिवार में देखेगा तो उसके अंदर भी यही सब कुछ विकसित होगा। इस लिए माता पिता बनने के साथ ही सबसे पहले खुद को एक छात्र और उसका हमउम्र समझ कर बच्चे के साथ कुछ अच्छा सीखने और करते रहने की प्रेरणा लें। उसकी उम्र के अनुसार उसे स्वाभाविक कार्य करने की प्रेरणा दें। हर माता पिता की ये इच्छा होती है कि उनका बच्चा उनसे एक कदम आगे निकले इस के लिए उनके कुदरती विकास को सही दिशा और दशा देना हम अभिभावकों की ही जिम्मेदारी होती है। दैनिक दिनचर्या के जरिये खेल खेल में उसे उसकी जवाबदेहियों की भी शिक्षा दी जानी चाहिए जिससे वह अपने कार्यों से समाज का सम्मान पा सके।
दूसरा घटक :
समाज - एक बच्चे के लिए समाज उन बाहरी लोगों का एक समूह है जिसे वह परिवार से बाहर निकल कर पाता है। जिनके बीच रहकर उसे शिक्षा , नौकरी और अन्य जीवनयापन के कार्यों को करना होता है। बिना समाज के सहयोग के कोई भी बच्चा एक सफल नागरिक नहीं बन सकता। मानव जाति की ये जवाबदेही बनती है कि हम वह वातावरण बनायें जिसमें आने वाली पीढ़ी पुरानी पीढ़ी से एक सीढ़ी ऊपर हो। सीढ़ी से तातपर्य है ज्ञान, आमदनी, चुस्ती फुर्ती और जिंदादिली के गुणों में बच्चा परिवार से एक कदम आगे रहे। किसी भी बच्चे के सही विकास के लिए जो सबसे जरूरी है कि वह जिन भी बाहरी लोगों के बीच रहता है उनके बीच रहकर वह सुरक्षित और मजबूत महसूस कर सके । उन सभी से उसे किसी भी तरह का डर न लगे बल्कि उसे ये महसूस हो कि सभी उसे वही प्यार और लगाव दे रहें है जो उसे उसके घर पर मिलता है। उसे ये लगे कि उसके आस पास के सभी लोग उसका ध्यान भी रखते हैं और उससे प्रेम करते हैं। वह अपनी उम्र और बुद्धि के विकास के अनुसार जो भी कार्य करता है उसे सभी लोगों द्वारा सहर्ष स्वीकारा जाता है। उसके लिए उसको प्रशंसा और प्रोत्साहन भी मिलता है। अगली पीढ़ी को सही रास्तों पर चलाने के लिए हम सभी को एक ऐसे समाज का निर्माण करना होगा जिसमें बच्चों के मन में खुल कर जीने का उत्साह , सुरक्षित रहने का आश्वासन और साथ ही प्रगति और तरक्की के रास्तों में सहयोग मिलते रहने की भावना का विश्वास होगा। पक्षपात , उलझनें , नफरत , तकलीफ आदि कई तरह की भावनाओं का सामना उसे समाज के बीच रहकर करना पड़ सकता है। दोस्त , रिश्तेदार , पड़ोसी ,सहपाठी , सहकर्मी सभी के साथ उसे विभिन्न स्तर पर तरह तरह के व्यवहारिक समायोजन करने पड़ते हैं। तभी उस के आगे बढ़ने का मार्ग बाधाविहीन हो पाता है। इस लिए जरूरी है कि बच्चे के मानसिक विकास को सर्व्रप्रथम परिवार और फिर समाज द्वारा उसकी उम्र को ध्यान में रखते हुए , खुले दिल से स्वीकार किया जाए। संघर्ष , स्पर्धा , कामयाबी में अव्वल रहने के लिए एक बच्चे की नीवं मजबूत बनाने की जिम्मेदारी समाज की है। इसीलिए आज प्रतिस्पर्धा के ज़माने में एक बच्चे की तरक्की इस बात पर निर्भर करती हैं कि उसे किस तरह का जीवन जीने के लिए तैयार किया गया है। ये तैयारी परिवार और समाज दोनों के मेल से ही होती है ताकि बच्चा एक अनुकूल सामाजिक प्राणी और बेहतर इंसान बन सकें।
तीसरा घटक:
शिक्षा - एक बच्चे के पूर्ण विकास में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। किसी भी बच्चे को शिक्षा के अधिकार से वंचित रखना अपराध की श्रेणी में आता है। विद्यालओं द्वारा दी गयी प्राथमिक शिक्षा पाना हर बच्चे का सवैंधानिक अधिकार है। शिक्षा से उसके सोचने समझने और जानने की शक्ति का विकास होता है। उसके आगे जीवन में जीविकोपार्जन के लिए नए नए रास्ते खुलने लगते हैं। शिक्षा से उसे यह ज्ञान मिलता है कि वह अपनी बेहतरी के बारे में सोचना सीखे ,उसके लिए आगे क्या अच्छा है यह जानने के लिए अपनी बुद्धि और समझ का इस्तेमाल करना सीखें। एक सफल इंसान बनने के लिए उसे किस तरह खुशहाली पानी है यह उसे शिक्षा के जरिये हांसिल ज्ञान से ही पता चलता है। एक बच्चे को जीवन की प्राथमिक शिक्षा उसे अपने घर से ही मिल जाती है। जबकि आगे की वृहद् शिक्षा के लिए वह विद्यालय जाता है। एक जरूरी बात ध्यान में रखने वाली ये होती है कि बच्चे को सीखाने के लिए बड़ो को शिक्षक बन कर नहीं बल्कि उसका हमउम्र बन कर उसी की भाषा में उसे अच्छी बातों का ज्ञान देना चाहिए। किसी भी बच्चे की रूचि और लगाव को देखते हुए उसे उसकी शिक्षा की धारा चुनने का मौका दिया जाना चाहिए। विद्यालयों में भी शिक्षा को रुचिकर बनाने के लिए माहौल को मनोरंजक और ज्ञानवर्धक बनाये रखना चाहिए। थोपी गयी जिम्मेदारियां और शिक्षा से ऊब कर अच्छाईयों की ओर उसके बढ़ते कदम रुक सकते हैं। इस लिए सोचने और समझने की शक्ति के पर्याप्त विकास के बाद बच्चों को ये मौका दिया जाना चाहिये की वह अपने निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं। बच्चों में नेतृत्व , सहभागिता और समाजीकरण की भावना का विकास उनके विद्यालय में सहगामी क्रियाओं के जरिये होता है। अपने अंदर छिपे गुणों और प्रतिभा को विभिन्न प्रतियोगिताएं के जरिये उसे निखारने का अवसर मिलता है। किसी भी बच्चे को उसकी उम्र और बचपने के साथ ही पढ़ने , आगे बढ़ने और सवरने का मौका मिलना चाहिये। जिससे वह जीवन की तमाम व्यावहारिक सच्चाइयों को अनुभव करके उनका स्वयं सामना करने की हिम्मत अपने अंदर पैदा कर सके। जानकारीपूर्ण तर्क और वितर्क करने की काबिलियत उसे एक अच्छी शिक्षा ही दे सकती है।
इस पुरे वक्तव्य का सार ये है कि जिस प्रकार एक मिटटी के ढेले को कुम्हार चाक पर रख कर हाथों से आकर देते हुए एक खूबसूरत बर्तन में बदल देता है। उसी तरह हमें जन्में बच्चे को अच्छी आदतों और उन्नत दिनचर्या के जरिये उसे उसके पूर्ण विकास की ओर ले जाना है। जिससे आगे चल कर वह एक अच्छी परवरिश और सामाजिक सहयोग के जरिये हुए खुद के विकास पर गर्व कर सके।
---------------------------------------------------------------------------------------
{उपरोक्त लेख मेरे द्वारा दी गयी एक रेडियो चर्चा का है )
एक बच्चा जन्म के साथ ही एक स्कूल को साथ ले कर जन्म लेता है। जिसमें उसके माता पिता , अन्य परिवारजन , और समाज के लोग सभी एक नए सिरे से अपनी भूमिकाओं को परिभाषित करते हुए उसका लालन पालन पोषण करतें हैं। बच्चों के सर्वांगीड़ विकास के लिए निम्न पक्षों के विकास की ओर ध्यान दिया जाना अति आवश्यक है - शारीरिक , मानसिक , सामाजिक और भावनात्मक विकास। विकास की इस प्रक्रिया के लिए हमें बहुत से बिंदुओं को पुनः तराशना जरूरी होता है। तराशने से तातपर्य है एक नियत जीवन शैली को एक बच्चे की जरूरत और विकास प्रक्रिया के अनुसार ढाल कर और बदल कर उसे वह वातावरण देना जिसमें उसका संपूर्ण विकास हो पाए। इसकी प्रक्रिया को समझने के लिए हमें आवश्यक तीन महत्वपूर्ण घटकों को विभाजित करके विकास में उनके सहयोग की व्याख्या अलग अलग करनी पड़ेगी। यह तीन प्रमुख घटक हैं---
पहला - आतंरिक परिवार व रिश्तेदार ,
दूसरा - बाहरी समाज तथा वह लोग जिनके बीच बच्चा घर से बाहर संपर्क में रहता है।
तीसरा - शिक्षा व्यवस्था
प्रथम घटक :
परिवार व करीबीजन - बच्चे कच्ची मिटटी की तरह होते हैं और हम सभी बड़े उनके लिए कुम्हार की तरह होते हैं जो उनके व्यक्तित्व और व्यव्हार को तराशने का काम करते हैं। ये बहुत जरूरी है कि हम अपने बच्चों में जिन गुणों का होना जरूरी समझते हैं। उनके लिए सबसे पहले हम उन सभी का पालन करने की आदत बनाये और उन्हें वह अनुकूल माहौल दें जिसमें वह उन्हें अपने व्यव्हार में शामिल कर सकें। उनके आस पास हम बड़ों को वह वातावरण बनाना पड़ेगा जिसके सहारे वह जो भी व्यव्हार करें या अपनी दिनचर्या रखें , वह कालांतर में उनकी आदतों में बदल जाएँ। अच्छी आदतें जन्म लेने के साथ से ही जीवन का हिस्सा बनने लगती हैं बशर्ते कि बच्चों की प्रथम पाठशाला उनका परिवार उन्हें वही करते दिखे और उन्हें भी वही सब करने के लिए प्रोत्साहित करता रहे। प्यार ,अपनापन , लगाव , इज्ज़त ,अनुशासन , परवाह , सहारा आदि बहुत सी भावनाएं हैं जो की एक बच्चा अपने परिवारजनों के बीच रहकर देखता और सीखता है। लेकिन जो सबसे जरूरी बात ध्यान रखने योग्य होती है वह यह है कि इन सभी भावनाओं का सही मात्रा में प्रयोग और प्रदर्शन किया जाए। मात्रा से तातपर्य है समय के अनुसार उनका उचित उपयोग और उसकी सही स्थिति का निर्धारण। एक बच्चे के पूर्ण विकास में परिवार के सभी सदस्यों की भूमिकाएं महत्वपूर्ण और अलग अलग होती हैं। एकल और संयुक्त परिवार में स्थितियों और सदस्यों की संख्यां के अंतर का भी प्रभाव एक बच्चे के व्यव्हार और कार्यों पर पड़ता हैं। संयुक्त परिवार के बच्चे , छोटे बड़े एवं बराबर , बहुत से लोगों के बीच रहकर , एकल परिवार के बच्चों की अपेक्षा ज्यादा सामंजस्य बिठाने वाले व्यवहार के होते हैं। जिसमें बड़ो का मार्गदर्शन और बराबर के सदस्यों से मेलमिलाप का व्यव्हार उन्हें बाहरी समाज में किसी भी परिस्थिति में समायोजन के लिए परिपक्व बनाता है। जबकि एकल परिवार में बच्चे अकेले रहकर ज्यादा आत्मनिर्भर बन पाते है। इसके लिए आवश्यक यह है कि परिवार का कोई भी रूप हो सभी परिवारजनों का ये फ़र्ज़ बनता है कि बच्चे के व्यवहार में उन सभी गुणों को समाहित करने की कोशिश की जाए जो बाहरी दुनिया में उसे अपनी काबिलियत दिखाने में सहयोग कर सके । बच्चे के साथ बच्चा बन के जीने के साथ ही अपनी परिपक्वता दिखाते हुए यदा कदा सख्ती का भी प्रयोग भी करते रहना चाहिए। जिससे बच्चे की बुद्धि का विकास कुदरती तौर पर एक सही दिशा में होता है। सही दिशा का अर्थ है उसे ऐसी जीवनशैली का पालन करने की सीख दी जाए जिस पर चल कर बच्चा बहादुर , उत्साही , फुर्तीला , बुद्धिमान और होनहार बन पाए। अपने बच्चे के साथ पुरानी जीवनशैली को छोड़ कर एक नयेपन से जीने के लिए खुद को तैयार करना चहिये। कोई भी बच्चा अपने जीवन को किस नजरिये से देखता है ये परिकल्पना उसे उसके परिवार से ही मिलती है। दुःख , तनाव , हिंसा ,गुस्सा , चिंता और ईर्ष्या आदि जैसी भावनाएं यदि वह रोज परिवार में देखेगा तो उसके अंदर भी यही सब कुछ विकसित होगा। इस लिए माता पिता बनने के साथ ही सबसे पहले खुद को एक छात्र और उसका हमउम्र समझ कर बच्चे के साथ कुछ अच्छा सीखने और करते रहने की प्रेरणा लें। उसकी उम्र के अनुसार उसे स्वाभाविक कार्य करने की प्रेरणा दें। हर माता पिता की ये इच्छा होती है कि उनका बच्चा उनसे एक कदम आगे निकले इस के लिए उनके कुदरती विकास को सही दिशा और दशा देना हम अभिभावकों की ही जिम्मेदारी होती है। दैनिक दिनचर्या के जरिये खेल खेल में उसे उसकी जवाबदेहियों की भी शिक्षा दी जानी चाहिए जिससे वह अपने कार्यों से समाज का सम्मान पा सके।
दूसरा घटक :
समाज - एक बच्चे के लिए समाज उन बाहरी लोगों का एक समूह है जिसे वह परिवार से बाहर निकल कर पाता है। जिनके बीच रहकर उसे शिक्षा , नौकरी और अन्य जीवनयापन के कार्यों को करना होता है। बिना समाज के सहयोग के कोई भी बच्चा एक सफल नागरिक नहीं बन सकता। मानव जाति की ये जवाबदेही बनती है कि हम वह वातावरण बनायें जिसमें आने वाली पीढ़ी पुरानी पीढ़ी से एक सीढ़ी ऊपर हो। सीढ़ी से तातपर्य है ज्ञान, आमदनी, चुस्ती फुर्ती और जिंदादिली के गुणों में बच्चा परिवार से एक कदम आगे रहे। किसी भी बच्चे के सही विकास के लिए जो सबसे जरूरी है कि वह जिन भी बाहरी लोगों के बीच रहता है उनके बीच रहकर वह सुरक्षित और मजबूत महसूस कर सके । उन सभी से उसे किसी भी तरह का डर न लगे बल्कि उसे ये महसूस हो कि सभी उसे वही प्यार और लगाव दे रहें है जो उसे उसके घर पर मिलता है। उसे ये लगे कि उसके आस पास के सभी लोग उसका ध्यान भी रखते हैं और उससे प्रेम करते हैं। वह अपनी उम्र और बुद्धि के विकास के अनुसार जो भी कार्य करता है उसे सभी लोगों द्वारा सहर्ष स्वीकारा जाता है। उसके लिए उसको प्रशंसा और प्रोत्साहन भी मिलता है। अगली पीढ़ी को सही रास्तों पर चलाने के लिए हम सभी को एक ऐसे समाज का निर्माण करना होगा जिसमें बच्चों के मन में खुल कर जीने का उत्साह , सुरक्षित रहने का आश्वासन और साथ ही प्रगति और तरक्की के रास्तों में सहयोग मिलते रहने की भावना का विश्वास होगा। पक्षपात , उलझनें , नफरत , तकलीफ आदि कई तरह की भावनाओं का सामना उसे समाज के बीच रहकर करना पड़ सकता है। दोस्त , रिश्तेदार , पड़ोसी ,सहपाठी , सहकर्मी सभी के साथ उसे विभिन्न स्तर पर तरह तरह के व्यवहारिक समायोजन करने पड़ते हैं। तभी उस के आगे बढ़ने का मार्ग बाधाविहीन हो पाता है। इस लिए जरूरी है कि बच्चे के मानसिक विकास को सर्व्रप्रथम परिवार और फिर समाज द्वारा उसकी उम्र को ध्यान में रखते हुए , खुले दिल से स्वीकार किया जाए। संघर्ष , स्पर्धा , कामयाबी में अव्वल रहने के लिए एक बच्चे की नीवं मजबूत बनाने की जिम्मेदारी समाज की है। इसीलिए आज प्रतिस्पर्धा के ज़माने में एक बच्चे की तरक्की इस बात पर निर्भर करती हैं कि उसे किस तरह का जीवन जीने के लिए तैयार किया गया है। ये तैयारी परिवार और समाज दोनों के मेल से ही होती है ताकि बच्चा एक अनुकूल सामाजिक प्राणी और बेहतर इंसान बन सकें।
तीसरा घटक:
शिक्षा - एक बच्चे के पूर्ण विकास में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। किसी भी बच्चे को शिक्षा के अधिकार से वंचित रखना अपराध की श्रेणी में आता है। विद्यालओं द्वारा दी गयी प्राथमिक शिक्षा पाना हर बच्चे का सवैंधानिक अधिकार है। शिक्षा से उसके सोचने समझने और जानने की शक्ति का विकास होता है। उसके आगे जीवन में जीविकोपार्जन के लिए नए नए रास्ते खुलने लगते हैं। शिक्षा से उसे यह ज्ञान मिलता है कि वह अपनी बेहतरी के बारे में सोचना सीखे ,उसके लिए आगे क्या अच्छा है यह जानने के लिए अपनी बुद्धि और समझ का इस्तेमाल करना सीखें। एक सफल इंसान बनने के लिए उसे किस तरह खुशहाली पानी है यह उसे शिक्षा के जरिये हांसिल ज्ञान से ही पता चलता है। एक बच्चे को जीवन की प्राथमिक शिक्षा उसे अपने घर से ही मिल जाती है। जबकि आगे की वृहद् शिक्षा के लिए वह विद्यालय जाता है। एक जरूरी बात ध्यान में रखने वाली ये होती है कि बच्चे को सीखाने के लिए बड़ो को शिक्षक बन कर नहीं बल्कि उसका हमउम्र बन कर उसी की भाषा में उसे अच्छी बातों का ज्ञान देना चाहिए। किसी भी बच्चे की रूचि और लगाव को देखते हुए उसे उसकी शिक्षा की धारा चुनने का मौका दिया जाना चाहिए। विद्यालयों में भी शिक्षा को रुचिकर बनाने के लिए माहौल को मनोरंजक और ज्ञानवर्धक बनाये रखना चाहिए। थोपी गयी जिम्मेदारियां और शिक्षा से ऊब कर अच्छाईयों की ओर उसके बढ़ते कदम रुक सकते हैं। इस लिए सोचने और समझने की शक्ति के पर्याप्त विकास के बाद बच्चों को ये मौका दिया जाना चाहिये की वह अपने निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं। बच्चों में नेतृत्व , सहभागिता और समाजीकरण की भावना का विकास उनके विद्यालय में सहगामी क्रियाओं के जरिये होता है। अपने अंदर छिपे गुणों और प्रतिभा को विभिन्न प्रतियोगिताएं के जरिये उसे निखारने का अवसर मिलता है। किसी भी बच्चे को उसकी उम्र और बचपने के साथ ही पढ़ने , आगे बढ़ने और सवरने का मौका मिलना चाहिये। जिससे वह जीवन की तमाम व्यावहारिक सच्चाइयों को अनुभव करके उनका स्वयं सामना करने की हिम्मत अपने अंदर पैदा कर सके। जानकारीपूर्ण तर्क और वितर्क करने की काबिलियत उसे एक अच्छी शिक्षा ही दे सकती है।
इस पुरे वक्तव्य का सार ये है कि जिस प्रकार एक मिटटी के ढेले को कुम्हार चाक पर रख कर हाथों से आकर देते हुए एक खूबसूरत बर्तन में बदल देता है। उसी तरह हमें जन्में बच्चे को अच्छी आदतों और उन्नत दिनचर्या के जरिये उसे उसके पूर्ण विकास की ओर ले जाना है। जिससे आगे चल कर वह एक अच्छी परवरिश और सामाजिक सहयोग के जरिये हुए खुद के विकास पर गर्व कर सके।
Comments
Post a Comment