होड़ और बहसबाज़ी से उपन्न वैमनस्य........ !
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रोजाना होती और दिखती तमाम छोटी बड़ी घटनाओं से यह साबित हो रहा है कि आज इंसान के अंदर की सहनशक्ति बिलकुल समाप्त हो गई है। न तो उसे किसी का टोकना अच्छा लगता है न ही रोकना। वह अपनी मर्जी से जो भी कुछ कर रहा हो उसे आज़ादी से करने दिया जाये । यही सहनशक्ति की कमी ही रोजाना हो रही अराजकता का भी कारण है। किसी भी मसले को गंभीरता से सोचे बिना तत्काल उस पर प्रतिक्रियात्मक कार्यवाही करना मानव का स्वाभाव बन गया है। धैर्य से सोच समझ कर आगे कदम बढ़ाना मानव ने बंद कर दिया है। कुछ घटनाओं का जिक्र करके यह समझने की कोशिश की जाए......... 
                                   सड़क पर चलते हुए दुर्घटना में दोनों ही पक्ष अपनी गलतियों को नज़रअंदाज करते और अस्वीकारते हुए वही लड़ाई करना प्रारम्भ कर देते हैं। एक अन्य घटना.......हमारे घर के पास ही नए नए आये हुए एक परिवार ने अपने घर का अधिकतर कबाड़ बिल्डिंग के सामूहिक स्थान पर इकठ्ठा कर के रख दिया है। उन्हें जब काफी लोगों ने इसे हटाने और जगह साफ़ करने का निवेदन किया गया तो उल्टा झगड़ा कर के बात को और बढ़ने का मौका दिया । अब यह एक बात एक दूसरे को गुजरते हुए क्रोध से देखने का कारण बन गयी है। जिन भी घरों में काम करने वाली बाइयाँ समान हैं उन परिवारों के बीच में तनाव और झगडे का कारण है दूसरे को ज्यादा समय और ज्यादा काम कर देना। ये जो भी उदहारण मैंने दिए हैं वह बहुत ही छोटे छोटे हैं जो रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े हैं। ऐसे ही कई और कारण भी होंगे जो सिर्फ धैर्य और सहनशीलता न होने की वजह से विरक्ति का कारण बन जाते हैं। 
                                                                       बहुत ही छोटे छोटे मुद्दे शुरू में ही तनाव की स्थति पैदा कर देते हैं। जो धीरे धीरे एक बड़े अवरोध की स्थति बना देते हैं। बहती हुई नाली में यदि कही कोई छोटा कचरा फंस जाए और उसे तुरंत साफ न किया जाए तो अतिरिक्त कचरा उसमें फंसता हुआ एक समय नाली को पूरी तरह बंद कर देता है। यही हमारे आस पास घिरे तमाम लोगों से हमारे व्यवहार को भी दर्शाता है।  एक छोटा सा मनमुटाव यदि तुरंत न ख़त्म किया जाए तो उस के सहारे और भी कई बातें गहराते हुए वैमनस्य को और बढाती रहती है।  और एक समय में पूरा अलगाव हो जाता है। आजकल हर कोई सड़क पर , घरों में व उस के आस पास, दफ्तरों में शॉपिंग मॉल में   , बाज़ारों में छोटी छोटी कहा सुनी को    तूल दिए जाने के लिए तैयार बैठा रहता है। इस लिए अब ठहराव का नामों निशान मिटता जा रहा है। हर तरफ बस खुद को सही साबित करने की होड़ और उसके लिए अनावश्यक की बहसबाज़ी ....... ???

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