आज गणतंत्र दिवस है और अपने सविंधान पर गर्व महसूस होते हुए भी आज मुझे कहीं न कहीं शर्मिंदगी भी है। ये इस लिए कि आज अभिव्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को लोगों ने एक हथियारके रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है।  अपनी बात कहने ,मनवाने और साबित करने के लिए वह कोई भी रास्ता , कोई भी तरीका और कोई भी माध्यम चुन रहें हैं।  अभिव्यक्ति का मौलिक अधिकार तभी तक जायज होता है जब तक की आप के अधिकारों के प्रयोग से किसी दूसरे को हानि या उसके अधिकारों का हनन न हो रहा हो। लेकिन मदमस्त नागरिक और कौम इतनी बेसुध हो चुकी है कि उन्हें अपनी स्वतंत्रता के अलावा और कुछ नजर ही नहीं आता। ये सर्वथा निंदनीय है। और शायद इसी लिए मुझे एक भारतीय होने और खुद को एक सम्मानित नागरिक कहने में शर्म  महसूस होने लगा है। स्व हित  इतना सर्वोपरि हो जायेगा कि उसके आगे सार्वजनिक शांति , सुकून , सुख और संयम सब ताक पर रख दिया जायेगा ये क्षोभनीय है। इसी लिए ये बेवजह के दंगे मारपीट , घृणित राजनीति , धनलोलुपता और न जाने कितने विकार मनों के अंदर बैठ चुके है और सविंधान की बहुत सी महत्वपूर्ण बातों को अनदेखा करने में लगे हुए हैं। 

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