मस्तिष्क की स्थितियों पर नियंत्रण.............!
आज एक ऐसे विषय पर बात करते हैं जिसे हम सभी चाहते है कि हमने वह खासियत आ जाये। यह विशेष खासियत है दूसरों का मन पढ़ने की कला। वैसे तो हर इंसान में गुण ईश्वरीय प्रदत्त होता है कि वह सामने वाले का चेहरा देख कर उसके दुखी ,सुखी या सामान्य होने का भेद जान लेता है। यह चेहरे की भावों को समझ कर अंदाजा लगाने वाली बातें होती हैं। अमूमन ये अंदाजा सही होता है। क्योंकि हर इंसान का चेहरा ही उसका दर्पण होता है। दुखी होने पर लटका हुआ और ख़ुशी होने पर चहकता हुआ चेहरा अंदर की सारी भावनाएं जाहिर कर देता है। तभी सामने वाला पूछ ही बैठता है कि क्या बात है भाई आज बड़े खुश या दुखी नजर आ रहे हो। तब दिल की बात साझी करनी ही पड़ती है
परन्तु यह स्थिति तो तब कारगर होगी जब वह इंसान अपने भावों के जरिये अपनी स्थति का प्रदर्शन कर दे। लेकिन यदि कोई ऐसा भी है जिसे अपनी भावनाओं पर इतना नियंत्रण है कि वह उन्हें सार्वजनिक होने से बचा सकता हो और दूसरों के समक्ष दुखी या सुखी होने पर सामान्य होने का दिखावा कर सके। ऐसे में हम कैसे उसके मन की बात जानेंगे ? इस के लिए हमें खुद में एक विशेष शक्ति पैदा करनी होगी। सामान्यतः हम अपने मस्तिष्क की चेतन अवस्था में रहते हैं। जिससे हम सभी स्थिति परिस्थिति को जानते समझते और महसूस करते हैं। इस अवस्था से एक सीढ़ी और ऊपर अवचेतन मन होता है। जिसमें हम अपने अंदर एक खालीपन का निर्माण करते हैं। वह खालीपन हमारे आस पास की सभी चीजों और वातावरण से हमें दूर रखता है। इस खालीपन के लिए सबसे जरूरी है हमारा वर्तमान में रहना । क्योंकि बहुत सी आगे पीछे की बातें हमारे दिमाग को निरंतर घेरे रहती है। जिस से वह कभी भी खाली नहीं रह पाता। अतः इस अवचेतन मन को जागृत अवस्था में लाना होता है। कुछ समय निरंतर प्रयास के बाद जब यह लगने लगे की हम इस अवचेतन मन को अपने नियंत्रण में कर सकते है। तब एक सीढ़ी और ऊपर चढ़ने का प्रयास करना चहिये। जो है अधिअवचेतन मन अवस्था। यह अवस्था तब निर्मित होती है जब हम उस खालीपन को दूसरों के मस्तिष्क के भावों से भरने और जानने की कोशिश प्रारम्भ करते हैं। यह भी संभव है कि प्रथम दृष्टया अंदाजा पूरी तरह खरा न उतरे। परन्तु आगे चल कर इसमें पारंगतता मिलने लगते है। इस सीढ़ी के उपरांत एक सीढ़ी और आएगी जिसे सामूहिक अवचेतन मन कहा जाता हैं। यह अवस्था वह है जिसमें कोई व्यक्ति अपने मस्तिष्क से बहुत से लोगों को एक साथ समझते हुए उनकी तुलनातमक अध्ययन कर सकता है। इस महारथ से उसने वह शक्ति संचित कर ली होती है जिसमें वह खुद को सामान्य रखते हुए एक समूह में भी लोगों का दिमाग पढ़ सके। यह अंतिम सीढ़ी नहीं है परन्तु इस के बाद की सीढ़ी को सामान्य इंसान द्वारा पाना असंभव ही होता है। क्योंकि वह है लौकिक अवचेतन मन की पायदान। यह सामान्यतः पुराने समय में ऋषि मुनि एकांत में वर्षों तप करने के बाद ही पाते थे। जिन्हे समाज से विरक्ति और दूसरे लोक से लगाव हो जाता था।
यह विश्लेषण था की कि कैसे अपने मन पर नियंत्रण किया जाए। किसी सामान्य व्यक्ति के लिए दूसरे या तीसरे स्तर तक पहंचने ही उपलब्धि होती है। इस के लिए प्रतिदिन कुछ समय ध्यान की अवस्था में बैठने का अभ्यास करते हुए खुद को अकेला करने का प्रयास करना चाहिए। यही अकेलापन उस गुण को विकसित करने का कार्य करता है जिसमें हमारे अंदर दूसरों को मन से समझने का गुण आ जाता है। चलिए ये मान भी ले कि हम प्रयास के बाद भी यह गुण खुद में ढाल नहीं पा रहें। पर इस के दूसरे सकारात्मक परिणाम अवश्य देखने को मिलेगे जो कि हमारे शांत सौम्य और धैर्यवान बनने में सहयोग करेंगे।
आज एक ऐसे विषय पर बात करते हैं जिसे हम सभी चाहते है कि हमने वह खासियत आ जाये। यह विशेष खासियत है दूसरों का मन पढ़ने की कला। वैसे तो हर इंसान में गुण ईश्वरीय प्रदत्त होता है कि वह सामने वाले का चेहरा देख कर उसके दुखी ,सुखी या सामान्य होने का भेद जान लेता है। यह चेहरे की भावों को समझ कर अंदाजा लगाने वाली बातें होती हैं। अमूमन ये अंदाजा सही होता है। क्योंकि हर इंसान का चेहरा ही उसका दर्पण होता है। दुखी होने पर लटका हुआ और ख़ुशी होने पर चहकता हुआ चेहरा अंदर की सारी भावनाएं जाहिर कर देता है। तभी सामने वाला पूछ ही बैठता है कि क्या बात है भाई आज बड़े खुश या दुखी नजर आ रहे हो। तब दिल की बात साझी करनी ही पड़ती है
परन्तु यह स्थिति तो तब कारगर होगी जब वह इंसान अपने भावों के जरिये अपनी स्थति का प्रदर्शन कर दे। लेकिन यदि कोई ऐसा भी है जिसे अपनी भावनाओं पर इतना नियंत्रण है कि वह उन्हें सार्वजनिक होने से बचा सकता हो और दूसरों के समक्ष दुखी या सुखी होने पर सामान्य होने का दिखावा कर सके। ऐसे में हम कैसे उसके मन की बात जानेंगे ? इस के लिए हमें खुद में एक विशेष शक्ति पैदा करनी होगी। सामान्यतः हम अपने मस्तिष्क की चेतन अवस्था में रहते हैं। जिससे हम सभी स्थिति परिस्थिति को जानते समझते और महसूस करते हैं। इस अवस्था से एक सीढ़ी और ऊपर अवचेतन मन होता है। जिसमें हम अपने अंदर एक खालीपन का निर्माण करते हैं। वह खालीपन हमारे आस पास की सभी चीजों और वातावरण से हमें दूर रखता है। इस खालीपन के लिए सबसे जरूरी है हमारा वर्तमान में रहना । क्योंकि बहुत सी आगे पीछे की बातें हमारे दिमाग को निरंतर घेरे रहती है। जिस से वह कभी भी खाली नहीं रह पाता। अतः इस अवचेतन मन को जागृत अवस्था में लाना होता है। कुछ समय निरंतर प्रयास के बाद जब यह लगने लगे की हम इस अवचेतन मन को अपने नियंत्रण में कर सकते है। तब एक सीढ़ी और ऊपर चढ़ने का प्रयास करना चहिये। जो है अधिअवचेतन मन अवस्था। यह अवस्था तब निर्मित होती है जब हम उस खालीपन को दूसरों के मस्तिष्क के भावों से भरने और जानने की कोशिश प्रारम्भ करते हैं। यह भी संभव है कि प्रथम दृष्टया अंदाजा पूरी तरह खरा न उतरे। परन्तु आगे चल कर इसमें पारंगतता मिलने लगते है। इस सीढ़ी के उपरांत एक सीढ़ी और आएगी जिसे सामूहिक अवचेतन मन कहा जाता हैं। यह अवस्था वह है जिसमें कोई व्यक्ति अपने मस्तिष्क से बहुत से लोगों को एक साथ समझते हुए उनकी तुलनातमक अध्ययन कर सकता है। इस महारथ से उसने वह शक्ति संचित कर ली होती है जिसमें वह खुद को सामान्य रखते हुए एक समूह में भी लोगों का दिमाग पढ़ सके। यह अंतिम सीढ़ी नहीं है परन्तु इस के बाद की सीढ़ी को सामान्य इंसान द्वारा पाना असंभव ही होता है। क्योंकि वह है लौकिक अवचेतन मन की पायदान। यह सामान्यतः पुराने समय में ऋषि मुनि एकांत में वर्षों तप करने के बाद ही पाते थे। जिन्हे समाज से विरक्ति और दूसरे लोक से लगाव हो जाता था।
यह विश्लेषण था की कि कैसे अपने मन पर नियंत्रण किया जाए। किसी सामान्य व्यक्ति के लिए दूसरे या तीसरे स्तर तक पहंचने ही उपलब्धि होती है। इस के लिए प्रतिदिन कुछ समय ध्यान की अवस्था में बैठने का अभ्यास करते हुए खुद को अकेला करने का प्रयास करना चाहिए। यही अकेलापन उस गुण को विकसित करने का कार्य करता है जिसमें हमारे अंदर दूसरों को मन से समझने का गुण आ जाता है। चलिए ये मान भी ले कि हम प्रयास के बाद भी यह गुण खुद में ढाल नहीं पा रहें। पर इस के दूसरे सकारात्मक परिणाम अवश्य देखने को मिलेगे जो कि हमारे शांत सौम्य और धैर्यवान बनने में सहयोग करेंगे।
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