दायरे का विस्तार ...यात्रा ...🐸🐸
- दायरे का विस्तार…यात्रा !
*सोच से का अर्थ है कि ..... समय और ज़माने के साथ आगे चलने के बजाय यदि आप अपने ही विचारों धारणाओं के बंदी बन कर जी रहें हों।
* कर्म से का अर्थ है कि .… हमेशा से जो करते आये हैं उसे ही सही और उचित मान कर नए सिरे से कुछ भी प्रारम्भ करने से डरते हों।
*स्थान से का अर्थ है कि . .....अपनी जगह छोड़ कर कही आना जाना न पसंद करना , यह सोच कर कि नए माहौल में कैसे निर्वाह होगा।
इन तीनों ही स्थितियों में व्यक्ति एक बंदी के सामान जीवन जी रहा है। प्रकृति भी मौसम बदल कर नया आगाज करती रहती है। निरंतर समय के साथ चलने के लिए परिवर्तन अपनाते रहना आवश्यक है। बस सोच ये होनी चाहिए कि ये परिवर्तन आप के व्यक्तित्व के अनुकूल हो जिससे उसे अपना कर व्यक्तित्व और चित्ताकर्षी और चुम्बकीय बन जाएगा।
नयी परिस्थिति ,नए लोग ,नयी जगह ,नया माहौल आप को हमेशा से कुछ नया सीखने या जानने की प्रेरणा देता रहता है। उसे अपनाने का साहस ही आप को बदल देता है। इस लिए सफर पर जाएँ , नए लोगों, नयी संस्कृति , नए परिवेशों के बारे में जानें। ज्ञान के साथ साथ अनुभव और सहनशक्ति का भी विकास होगा। सहनशक्ति ऐसे की जब भी कभी बाहर निकलने पर किसी परिस्थिति के सताए से मिलेंगे तब तुलनात्मक रूप से खुद के ज्यादा सुखी होने के अहसास को महसूस कर सकेंगे। अनुभव और ज्ञान का विकास तो यात्रा में अपने आप ही हो जाता है। इस लिए समय निकाल यात्रा पर निकले और इन तमाम गुणों को अपने अंदर समाहित होने दें। कभी कभी ये भी महसूस होता है की एक ही जगह रहते , समय काटते ऊब सी होने लगती है इस लिए बदलाव के लिए ही सही , जगह बदलें बाहर निकल कर और एक नए माहौल की खोज करें। इस खोज में एक तथ्य अत्यंत महत्वपूर्ण होना चाहिए , वह है सकारात्मक सोच। जब भी कुछ देखें सुनें समझें उस के अच्छे पहलु पर गौर करें। जरुरी नहीं की बाहर हर चीज़ अच्छी ही मिले ये आपकी सोच और समझ पर निर्भर करता है की आप क्या देखना और सुनना पसंद करते हैं। सकारात्मक सोच वाला एक हलकी सी रौशनी को भी उजाला मान कर स्रोत का पता ढूंढ ही लेगा परन्तु नकारात्मक सोच के साथ आप भटकते भी रहे तो भी कुछ भी आशावादी नहीं ढूंढ सकते। यात्रा जीवन के चलते रहने का नाम है। और इसी यात्रा के जरिये हम अपने उन रिश्तों के भी करीब आतें है जो दूरी के कारण हमसे दूर हैं। हर व्यक्ति से मिलना एक नया अनुभव होता है। प्रेम और अपनापन बढ़ाने के लिए भी यात्रा की आवश्यकता है और एक यही माध्यम है उन तमाम अपनों को और करीब लाने का। आप तीनो ही तरह के बंदी होने से बचने के लिए सिर्फ एक उपाय अपनायें ........ यात्रा , तो अपने आप आपका दायरा बढ़ने लगेगा तब कोई भी कुँए का मेंढक नहीं कह सकता। जब तक बाहर न निकलों नयी दुनिया से रूबरू कैसे होंगे। हर कोई एक जैसा नहीं होता यही अंतर अपने विवेक के अनुसार अपनाना जीवन है। विस्तार में जीवन तलाशने का नाम यात्रा है इस लिए कुँए का मेंढक बनने के बजाये साइबेरियन क्रेन्स की तरह मौसम की तलाश में निकल पड़ें। अनेकों पड़ाव में नए नए अनुभव साथ जुड़ते जाएंगे।
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