लचीलापन और गुंजाईश वाली इंसानियत…………! 

इंसानियत क्या है ? आप कहेंगे दूसरे का दुःख समझना और तकलीफ में किसी का साथ देना । मैं ऐसा समझती हूँ कि इंसानियत है अपनी स्थिति को इतना लचीला बना देना कि उसमे दूसरे के लिए बदलाव  की गुंजाईश रहें और साथ ही परिस्थिति के अनरूप साथ देने की क्षमता विकसित हो सकें।  एक उदाहरण द्वारा इस तथ्य की व्याख्या करना चाहूंगी। हैदराबाद के तेलंगाना के एक गावं मेडक में एक मजदूर माँ की छह माह की बच्ची चल बसी। जब कारण सामने आया तब इंसानियत पर शर्मिंदगी सी होने लगी। पता चला कि वहाँ के साईट इंजीनियर ने माँ को बच्ची को दूध पिलाने के लिए नहीं जाने दिया और वह बच्ची लगातार दो दिन भूख से तड़प कर मर गयी।  अब इसे हादसा माने या हत्या ? मैं जिस इंसानियत  का जिक्र कर रही थी वह यही है कि अपनी वर्तमान स्थिति को इस हद तक लचीला बना दिया जाए कि उसमे दूसरे के मुताबिक बदलाव की गुंजाईश पैदा की जा सके । उस साईट इंजीनियर के पास इस घटना के लिए कोई भी स्पष्टीकरण मौजूद हो पर इस से इंकार नहीं किया जा सकता कि उसने अपनी मजबूत स्थिति का फायदा उस लाचार माँ के सामने उठाया जो उसके रहमोकरम के भरोसे थी। कोई भी कार्य इतना महत्वपूर्ण नहीं हो सकता कि वह जीवन से ज्यादा जरूरी हो जाए। फिर यदि श्रमिक महिला है ,गर्भवती है ,या दुधमुहें बच्चे की माता है  तो ऐसे में उसके प्रति इंसानियत और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।                                                                 इसी से जुड़ा एक किस्सा बताना चाहूंगी , एक बार मैं गर्भवती थी और दर्शन करने के लिए शिव मंदिर गयी तब पुजारी जी आरती शुरू करने जा रहे थे।  मैंने सोचा कि मैं अच्छे वक्त पर मंदिर आयी इसी बहाने मैं भी आरती का हिस्सा बन पाउंगी। आरती शुरू करने के बाद पुजारी जी ने वहाँ खड़े सभी लोगों को आरती का थाल पकड़ाकर आरती करने का मौका दिया पर मुझे थाल नहीं पकड़ाया।  मुझे बहुत बुरा लगा। आरती समाप्त होने के बाद मैंने पंडित जी से इस का कारण जानना चाहा तब उन्होंने जो स्पष्टीकरण दिया उससे मेरा ईश्वर पर विश्वास और गहरा हो गया। उन्होंने कहा कि तुम माँ बनने वाली हो। एक नयी कृति को जन्म देने वाली , इस समय तुम ईश्वर के समतुल्य हो अर्थात जिस तरह वह संसार को बनाने वाला है  उसी तरह तुम भी एक नए जीव को कोख में रख कर बना रही हो।और इस समय तुम पूजनीय हो न कि पूजन करने योग्य। सुन कर अच्छा लगा कि स्त्री के इस गुण के बारे में कोई ऐसी सोच भी रखता है। यही सच्ची मानवता  है। ऐसी सोच कितने लोग रखते है ये पता नहीं पर ये जरूर पता है कि आज अपने पद और प्रतिष्ठा के आगे दूसरों की भावनाओं और स्थिति को लाचार समझने वाले लोग बहुतायत में मौजूद हैं। इन्ही के कारण आज की व्यवस्था बदहाल होती जा रही है और भारतीय बदनाम हो रहें हैं।     

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