सार्थक बदलाव की कोशिश  …………!
कुछ तो बदलाव आया है ऐसा लगता है पर ये बदलाव एकतरफ़ा है।  जो दोनों तरफ की सोच के जरिये बदलना चाहिए वह नहीं बदला। कुछ समय पहले तक यदि कोई स्त्री अन्याय का शिकार होती थी तो वह चुपचाप सह कर किनारे हो जाती थी। और किसी से भी न कहने की कसम खा लेती थी। आज वक्त बदल गया है। फेसबुक पर अपलोड किये एक वीडियो को देख कर बहुत अच्छा लगा जिस में इंडिगो एयर की एक उड़ान में एक युवती ने हवाई जहाज में पास बैठे काफी बड़ी उम्र के एक व्यक्ति का वीडिओ बना कर डाला। वह व्यक्ति उसे अकेली जान कर लगातार उस से छेड़ छाड़ किये जा रहा था। कुछ समय बर्दाश्त करने के बाद  उसने बगावत कर दी और तब उस व्यक्ति को सही सबक मिला जो की जायज था। घटना का उल्लेख इस लिए जरूरी था कि इस से ये साबित किया जा सके कि अब औरत बदल रही है। एक और विडिओ देखा जिस में एक औरत ने अपने बलात्कार का वृतान्त खुल कर सुनाया कि कैसे सात लोगों ने उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया और सब एक साथ ही उस पर टूट पड़े।  किसने दोनों पैर पकडे, किसने कपडे फाड़े, किस तरह सबने उसका वीडिओ बनाया गया आदि सब कुछ । मैंने कई बार पहले भी ये जिक्र किया था कि सिर्फ सुन कर,  जान कर भूल जाने का नतीजा ही हम औरतें भुगतती हैं।  हमने कभी भी इन घटनाओं पर इस तरह की प्रतिक्रिया नहीं दी जिस से कुछ बदलाव आ सके। पर ये अच्छा है कि आज औरत खुद खड़ी हो कर अपना दर्द लोगो तक पहुंचा रही है उन तक भी जो आँख-कान बंद कर के बैठे रहते हैं। आज social media एक सशक्त माध्यम बन चुका है जिस का फायदा औरत को मिल रहा है। जिस लड़की ने छेड़ छाड़ का विडिओ पोस्ट किया है उसमे दिखाए व्यक्ति को कम से कम उसके आस पास के लोग तो पहचान सकेंगे और एक शख्स तो अपनी करनी की सजा बदनामी के तौर पर भुगतेगा।इस वाकये से ये और भी अच्छा हुआ कि उस व्यक्ति को पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया और उसका नाम सरकारी तौर पर सामने आ गया। 
           मुझे याद है कि हमारी युवावस्था के समय हम इतने संकोची हुआ करते थे कि अपने menstruation  के लिए napkins की जरूरत भी सिर्फ माँ से ही कहते थे जो कि महीने के किराने के साथ ही मंगवा लेती थीं। खुद से कभी भी दुकान पर जाकर नहीं खरीदा। मेरी नानी बताती है कि उनके समय में विवाहित स्त्री यदि पीहर जाकर रहती तो वह बिंदी और सिन्दूर नहीं लगाती। जिस से उसके पर पुरुष  के संगनी होने का बार बार आभास न हो।ये कुछ संकोची नियम थे जिस से लज्जा का आभास होता था । पर आज औरत बदल गयी है और ये नैसर्गिक गुण उसे बांध नहीं रहे। बल्कि इन गुणों को जीत कर वह आगे बढ़ रही है। जरूरी भी है। बदलती परिस्थति में उसका बदलना जायज है। चुप रहकर सहना और अन्याय को बढावा देना अब और नहीं।  इस लिए ये एक बेहतर उपाय है कि जब भी कोई पुरुष स्त्री को नग्न करना चाहे उसकी सच्चाई को ही नग्न कर जाए जिस से पुरुष को स्त्री के हौसले का पता चले और डर पैदा हो । एक चीज जो मुझे हमेशा अखरती है वह है ऐसे मौकों पर सहयात्रियों का अपेक्षापूर्ण रवैया। इस घटना में भी नजर आया पर अब स्त्री किसी सहयोग की मोहताज नहीं। वह अपनी लड़ाई खुद लड़ सकती है और जीतने का जज्बा भी रखती है। …………………        

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