कानून की  प्रक्रिया और उसके फैसलों में अन्तर :    क्यों ?............. 

आज इस बात में कोई दो राय नहीं है की देश की गन्दी राजनीति  में भी भारत को बचा कर आगे बढ़ाने में हमारे कानून और कानून के रखवालों का अहम योगदान है।  ऐसे में कानून को संवेदनशील होकर सही कदम रखना होगा तभी हमारा देश आगे बढ़ सकेगा।कानून को हम सभी इज्जत देते है।  क्योंकि उसी के सहारे सही व गलत व्यक्ति को उसका परिणाम मिलता है। आज हम सभी जज को ईश्वर का दर्जा देते हैं और हमेशा आशा करते है कि जज साहब किसी भी केस पर निर्णय देने से पहले ये सोच ले की उनका एक फैसला उस इंसान को ही नहीं बल्कि हमारे समाज व देश को भी प्रभावित करता है । कानून भी कभी कभी ऐसी गलतियां करता है जिस का दुष्परिणाम समाज को बहुत कुछ सोचने  पर मजबूर कर देता है. अभी हाल ही मे अख़बार मे खबर छपी थी की "बच्चे का पिता होना दुष्कर्म की पुष्टि नहीं करता " : मद्रास हइकोर्ट।  इस केस मे एक मुख बधिर महिला से दुष्कर्म के आरोपी को मद्रास हइकोर्ट ने बरी कर दिया जबकि डीएनए टेस्ट से साबित हो चुका था की आरोपी ही पीड़ित महिला के बच्चे का पिता है और ये बच्चा दुष्कर्म के परिणाम स्वरूप ही महिला के पेट में आया। कोर्ट ने इसे पर्याप्त सबूत  नहीं माना। वैसे ये केस १९९६ का है।  इससे दो बातें सामने आती है पहली तो ये की न्याय के लिए १० साल तक लम्बा इंतजार करना और फिर फैसला ये कि सबूत पर्याप्त नहीं है।  ये कानून की कैसी प्रक्रिया है।  जिस कानून और कानून के रखवालो को इंसान भगवान  मानता है उस की भावना के साथ ऐसा खिलवाड़ ?
ये तो था कानून का एक रूप।  कानून का दूसरा रूप ये भी है की एक ही अदालत में एक केस को अगर दो जज अलग अलग हैंडल करे तो दोनों के फैसले भी अलग अलग ही आते है।  ऐसा क्यों  ? क्या केस तथ्यों की बजाय इंसान (जज) कि सोच के अनुसार चलता है।  अभी हाल  ही में एक ऐसा केस आया था कि एक महिला अधिकारी ने पहले एक लड़की को गोद लेकर अच्छे  से पाला था और अब दोबारा एक और बच्ची को अनाथालय से गोद लेना चाहती थी परन्तु अदालत ने उसे इसकी इज्जाजत नहीं दी।  जब इस केस की सुनवाही दूसरी अदालत में हुई तो जज ने पहले फैसले को बदलते हुए महिला को बच्ची गोद  लेने कि इजाजत दे दी । 
इसी तरह हमारे कानून में और भी कई कमियां है फिर भी एक बात तो है अगर इन कमिया को सुधार  दिया जाये तो भारतीय कानून विश्व का सबसे अच्छा  कानून है. 

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