कुंठित सोच के आगे फीके पड़े प्रेम के ये दिन ………!
फ़रवरी का महीना न जाने कितने दिन ऐसे ले कर आता है जब या तो chocolate day है या hug day है , या rose day है ,या valentine day है या इसी तरह का कोई और दिन। धर्मपंथियों को तो सिर्फ बहाने चाहिए कि किन बातों को ले कर बिना वजह बवाल खड़ा किया जा सकें इस लिए हर वर्ष इस तरह के issues को सरेआम उठा कर फसाद खड़ा किया जाता है। उनके अनुसार ये पश्चिमी सभ्यता के तौर तरीके है जो भारतीयता को ख़त्म कर रहें हैं। लोगो में गलत तरीके की प्रेम प्यार की भावना को पैदा कर रहें हैं। खुद को limelight में रखने के लिए जो भी बेबुनियाद तथ्य हाथ लगें उसे ही भुना कर मसला बना दो। जबकि अगर सही मायनो में देखें तो उनके खुद के अंदर कितनी भारतीयता बची है ये वह खुद नहीं जानते होंगे। विदेशी ब्रांड के महंगे कपडे , व अन्य चीजें उनकी जिंदगी का अहम हिस्सा हैं। यहाँ तक की बोलचाल में भी अंग्रेजी की बहुतायत कही न कहीं अपनी मातृभाषा की अवहेलना करती रहती हैं। फिर किसी आचरण का सही अर्थ जाने बिना उसका विरोध करना उचित नहीं है। valentine का सही अर्थ है प्रिय। वह प्रिय जो जीवन में आप को सबसे प्यारा है। और वह प्रिय कोई भी हो सकता है जैसे माँ के लिए उसका बच्चा , पति के लिए उसकी पत्नी ,या पत्नी के लिए उसका पति , पुत्र या पुत्री के लिए उसके माता पिता। मैं ऐसा सोचती हूँ कि यदि किसी भी धर्म का कोई भी आचरण प्रेम और सौहार्द फैलाता हो तो उसका अनुसरण करने में कोई बुराई नहीं है। धर्म का सही अर्थ न तो हम कभी समझ पाएं है न कभी समझने की कोशिश करेंगे। हमारे लिए धर्म सिर्फ फसाद फ़ैलाने का एक जरिया बन कर रह गया है। जिस प्रकार साईं बाबा खुद को किसी भी धर्म से जुड़ा नहीं मानते थे उसी प्रकार संत वैलेंटाइन भी सिर्फ आपसी प्रेम को महत्वपूर्ण समझते थे इसी लिए उनके नाम पर 14 फ़रवरी को valentine day मानाने का सिलसिला चल निकला। सही भी है। कोई भी सभ्यता या संस्कृति आपसी भेद भाव को उचित नहीं मानती। ये हमारी कुंठित मानसिकता ही है जो बिना वजह के मुद्दों को झगडे या रंजिश का रूप दे देते हैं। प्यार बहुत ही कीमती चीज है। इसे स्वीकार करने की हिम्मत होनी चाहिए।
अगर वह इस का विरोध इस लिए करते हैं की इस दिन युवक युवती के जोड़े प्रेम दिवस के रूप में मानते हैं। तो इसे भी वह गलत नहीं ठहरा सकते। एक तरफ तो तुम खुद ही धर्मांतरण के जरिये लोगो का धर्म बदल रहें हो। ऐसे में कोई दो अलग अलग जाति के युवक युवती प्रेम के जरिये विवाह बंधन में बंध जाते हो तो ये तो अच्छा ही है कम से कम समाज में जातिगत समरूपता तो आएगी। और दूसरी जाती के प्रति इज्जत की भावना जन्म लेगी। अलग अलग दो जातियों के विवाह से दो परिवार आपस में एक होते हैं और दो भिन्न भिन्न संस्कृतियाँ एक दूसरे के साथ जीना सीखती हैं। ऐसे में इस का विरोध अनुचित है। स्वीकार करें और प्रेम फ़ैलाने वालों इन दिनों को लोगों को जीने का मौका दें। इस तरह भारत में सही मायनों में समरूपता आ पायेगी।
फ़रवरी का महीना न जाने कितने दिन ऐसे ले कर आता है जब या तो chocolate day है या hug day है , या rose day है ,या valentine day है या इसी तरह का कोई और दिन। धर्मपंथियों को तो सिर्फ बहाने चाहिए कि किन बातों को ले कर बिना वजह बवाल खड़ा किया जा सकें इस लिए हर वर्ष इस तरह के issues को सरेआम उठा कर फसाद खड़ा किया जाता है। उनके अनुसार ये पश्चिमी सभ्यता के तौर तरीके है जो भारतीयता को ख़त्म कर रहें हैं। लोगो में गलत तरीके की प्रेम प्यार की भावना को पैदा कर रहें हैं। खुद को limelight में रखने के लिए जो भी बेबुनियाद तथ्य हाथ लगें उसे ही भुना कर मसला बना दो। जबकि अगर सही मायनो में देखें तो उनके खुद के अंदर कितनी भारतीयता बची है ये वह खुद नहीं जानते होंगे। विदेशी ब्रांड के महंगे कपडे , व अन्य चीजें उनकी जिंदगी का अहम हिस्सा हैं। यहाँ तक की बोलचाल में भी अंग्रेजी की बहुतायत कही न कहीं अपनी मातृभाषा की अवहेलना करती रहती हैं। फिर किसी आचरण का सही अर्थ जाने बिना उसका विरोध करना उचित नहीं है। valentine का सही अर्थ है प्रिय। वह प्रिय जो जीवन में आप को सबसे प्यारा है। और वह प्रिय कोई भी हो सकता है जैसे माँ के लिए उसका बच्चा , पति के लिए उसकी पत्नी ,या पत्नी के लिए उसका पति , पुत्र या पुत्री के लिए उसके माता पिता। मैं ऐसा सोचती हूँ कि यदि किसी भी धर्म का कोई भी आचरण प्रेम और सौहार्द फैलाता हो तो उसका अनुसरण करने में कोई बुराई नहीं है। धर्म का सही अर्थ न तो हम कभी समझ पाएं है न कभी समझने की कोशिश करेंगे। हमारे लिए धर्म सिर्फ फसाद फ़ैलाने का एक जरिया बन कर रह गया है। जिस प्रकार साईं बाबा खुद को किसी भी धर्म से जुड़ा नहीं मानते थे उसी प्रकार संत वैलेंटाइन भी सिर्फ आपसी प्रेम को महत्वपूर्ण समझते थे इसी लिए उनके नाम पर 14 फ़रवरी को valentine day मानाने का सिलसिला चल निकला। सही भी है। कोई भी सभ्यता या संस्कृति आपसी भेद भाव को उचित नहीं मानती। ये हमारी कुंठित मानसिकता ही है जो बिना वजह के मुद्दों को झगडे या रंजिश का रूप दे देते हैं। प्यार बहुत ही कीमती चीज है। इसे स्वीकार करने की हिम्मत होनी चाहिए।
अगर वह इस का विरोध इस लिए करते हैं की इस दिन युवक युवती के जोड़े प्रेम दिवस के रूप में मानते हैं। तो इसे भी वह गलत नहीं ठहरा सकते। एक तरफ तो तुम खुद ही धर्मांतरण के जरिये लोगो का धर्म बदल रहें हो। ऐसे में कोई दो अलग अलग जाति के युवक युवती प्रेम के जरिये विवाह बंधन में बंध जाते हो तो ये तो अच्छा ही है कम से कम समाज में जातिगत समरूपता तो आएगी। और दूसरी जाती के प्रति इज्जत की भावना जन्म लेगी। अलग अलग दो जातियों के विवाह से दो परिवार आपस में एक होते हैं और दो भिन्न भिन्न संस्कृतियाँ एक दूसरे के साथ जीना सीखती हैं। ऐसे में इस का विरोध अनुचित है। स्वीकार करें और प्रेम फ़ैलाने वालों इन दिनों को लोगों को जीने का मौका दें। इस तरह भारत में सही मायनों में समरूपता आ पायेगी।
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