संतुष्टि एक सत्य ………… ! 

जीवन के लिए सबसे जरुरी क्या है ? संतुष्टि। यही वह धन है जिस से जीवन के पूर्ण होने का अहसास होता रहता है। कभी आप ने सोचा है कि वह कौन से पिछले दिन थे जिसे आप ने बिना अफ़सोस के संतुष्ट हो कर गुजारें हैं। यकीनन आप के पास इसका जवाब नहीं होगा। क्योंकि रोज एक नयी चाह और दूसरे के प्रति नकारात्मकता ने आप को संतुष्ट होने ही नहीं दिया। जीवन छोटा है और उसमे उन इच्छाओं को पाल कर कुंठित होना , जो सामर्थ्य क्षमता के बाहर हों उचित नहीं है।  ऐसे में उन्हें पूरा करने की चाह में सहज और सरलता से मिलने वाली खुशीयों को हम नजरअंदाज कर देते हैं।  इस के लिए आवश्यक है जरूरी और मामूली में अंतर को पहचानना और समझना। और जो भी आप के लिए जरूरी है उसके लिए हो सकता है की आप को कीमत भी चुकानी पड़े। ये किसी भी रूप में हो सकती है। समय के रूप में ,धन के रूप में , त्याग के रूप में ,या परिश्रम के रूप में।
                               लेकिन इस के लिए सब से जरूरी है खुद से प्रश्न पूछने की चाह। क्योंकि आप के सवाल ही आप को, आप के कार्य का परिणाम और संतुष्टि दोनों दिलवा सकते हैं। रोज अपने कार्य का आंकलन इस रूप में करें कि इस का परिणाम मेरी संतुष्टि के लिए कितना आवश्यक है और इस संतुष्टि के साथ क्या कोई नयी इच्छा तो जन्म नहीं ले रही। आगे बढ़ने की चाह यदि निरंतर इच्छाओं को बढ़ा रही हो तो एक स्थान पर टीके रहना भी बुरा नहीं है क्योंकि आप जिस भी स्थान पर है वही आप की मंजिल बन जाता हैं। आप की कौन सी चूक आप की सफलता को प्रभावित कर रही है ये एक बड़ा मुद्दा है संतुष्ट न होने का। असफलता हर बार उन तमाम इच्छाओं को सामने खड़ा कर देती है जो आप के हाथ से निकल गयी और तब आप असंतुष्ट महसूस करने लगते हैं। इस लिए आवश्यक है कि सब से पहले अपनी इच्छाओं और जरूरतों में तालमेल बिठाया जाए। फिर उन्हें पूरा करने का प्रयास किया जाए।  उनमे से भी यदि कोई पूरी न हो पाये तो उसके बदले कोई दूसरी इच्छा जो सहज हांसिल हो जाए उसे ही अपना लक्ष्य मान लेना चाहिए। यही जीवन का सार होना चाहिए जिस से संतुष्टि एक अहम हिस्सा बन कर साथ साथ चल सकती है।  

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