ईमानदारी एक बीमारी …………?
रोज ये सुनना कि हम तरक्की कर रहें है और भारत गर्व से 22 वीं सदी में प्रवेश करने के लिए तैयार है। कुछ अजीब सा लगता है। क्योंकि हम विकसित होने का कैसा भी दम्भ भर लें पर आज भी हमारी सोच का विकास उसी संकुचन के मुहाने पर खड़ा है जहाँ से कभी भी ईमानदारी और खुलेपन की धारा नहीं बहती। सच कहूँ तो कभी कभी भारतीय होने पर शर्मिंदगी सी होती है। कारण है यहाँ के लोगो की गन्दी सोच। गलत नहीं कहा गया 100 में से 99 बेईमान फिर भी गर्व से कहो मेरा भारत महान। ये बेईमानी सिर्फ धन से जुडी नहीं है। बल्कि मन से , नियत से, कर्म से और धर्म से हर मामले में भारतीय बेईमान है। दिए गए कार्य से जी चुराना , उसे रिश्वत ले कर करना ,सरकारी समझ किसी कार्य को अपना न मान कर निपटना , धर्मिक रूप से अपने धर्म के प्रति ईमानदारी का दिखावा करना , गन्दी नियत से लोगो को देखना और प्रयोग करना , औरतों के प्रति भी गन्दी नियत रखना , अपने मनोरंजन के लिए कानूनी बाधाओं की अनदेखी करना ,आदि कितने उदाहरण दूँ जो भारतीय होने की पोल खोलते हैं। रोज ही समाचार पत्रों में अनेकों ऐसे किस्से पढ़ने को मिलते रहते हैं जिस में लूट पाट सिर्फ अपने शौक पूरे करने के लिए की जा रही थी या तो गलत तरीके से नशे की गलत लत ये सब करवा रही हैं। आखिर कब तक ये सब हमारे समाज का हिस्सा बना रहेगा।
समाज में सभी तबके के लोग रहते हैं। उच्च , मध्यम और निम्न। उच्च वर्ग अपनी चमकती जिंदगी का अत्यधिक दिखावा करके नीचे के दोनों वर्गों की जिंदगी में निरंतर जहर घोल रहा हैं। आज मध्यम वर्ग अपनी सिमित आय से वह सब पाने का प्रयास कर रहा है तो निम्न वर्ग गलत रास्तों धन अर्जित करके अपनी इच्छाएं पूरी करने का प्रयास कर रहा हैं। इस के लिए कुछ हद तक बाजार की बढ़ती व्यावसायिकता भी जिमेदार हैं। आज अनेकों उत्पादों से भरा बाजार अपनी ओर खींच कर गलत और अनैतिक करने के लिए उकसाता रहता है। यही असल वजह है भ्रष्टाचार की और रिश्वतखोरी की। ज्यादा से ज्यादा धन कमाने की चाह ने व्यक्ति के मन से ईमानदारी की अहमियत ही ख़त्म कर दी है। इस लिए आज ईमानदारी एक बीमारी जैसी समझी जाने लगी है। और तो और अब रोज ईमानदारी नाम की बीमारी को रोकने के लिए मन को असीमित इच्छापूर्ति का एन्टीडोज़ दिया जाता रहता है।जिस से उसे कभी भी असंतोष में न रहना पड़े। मुझे ऐसा लगता है कि सब समस्याओं का एक ही समाधान है वह है मन से ईमानदार हो जाना …………। जिस दिन व्यक्ति मन से ईमानदार हो जाएगा सभी कार्य सही और उचित होने लगेंगे। तब उसे सही और गलत का फर्क समझ आने लगेगा। हम दूसरे देशों की प्रगति की बात करते हैं वह सब इस लिए है क्योंकि वहां का हर नागरिक ईमानदारी से अपने हिस्से में आये फ़र्ज़ का पालन करता हैं। चाहे वह कचरा सड़क पर न डालने की आदत हो या देश के लिए सोचने का फ़र्ज़। आखिर कब हम बदलेंगे और कब ये देश वाकई प्रगतिशील बनेगा ? ये एक कटु सत्य है जिस का जवाब हम सब मिल कर ही दे सकते हैं।
रोज ये सुनना कि हम तरक्की कर रहें है और भारत गर्व से 22 वीं सदी में प्रवेश करने के लिए तैयार है। कुछ अजीब सा लगता है। क्योंकि हम विकसित होने का कैसा भी दम्भ भर लें पर आज भी हमारी सोच का विकास उसी संकुचन के मुहाने पर खड़ा है जहाँ से कभी भी ईमानदारी और खुलेपन की धारा नहीं बहती। सच कहूँ तो कभी कभी भारतीय होने पर शर्मिंदगी सी होती है। कारण है यहाँ के लोगो की गन्दी सोच। गलत नहीं कहा गया 100 में से 99 बेईमान फिर भी गर्व से कहो मेरा भारत महान। ये बेईमानी सिर्फ धन से जुडी नहीं है। बल्कि मन से , नियत से, कर्म से और धर्म से हर मामले में भारतीय बेईमान है। दिए गए कार्य से जी चुराना , उसे रिश्वत ले कर करना ,सरकारी समझ किसी कार्य को अपना न मान कर निपटना , धर्मिक रूप से अपने धर्म के प्रति ईमानदारी का दिखावा करना , गन्दी नियत से लोगो को देखना और प्रयोग करना , औरतों के प्रति भी गन्दी नियत रखना , अपने मनोरंजन के लिए कानूनी बाधाओं की अनदेखी करना ,आदि कितने उदाहरण दूँ जो भारतीय होने की पोल खोलते हैं। रोज ही समाचार पत्रों में अनेकों ऐसे किस्से पढ़ने को मिलते रहते हैं जिस में लूट पाट सिर्फ अपने शौक पूरे करने के लिए की जा रही थी या तो गलत तरीके से नशे की गलत लत ये सब करवा रही हैं। आखिर कब तक ये सब हमारे समाज का हिस्सा बना रहेगा।
समाज में सभी तबके के लोग रहते हैं। उच्च , मध्यम और निम्न। उच्च वर्ग अपनी चमकती जिंदगी का अत्यधिक दिखावा करके नीचे के दोनों वर्गों की जिंदगी में निरंतर जहर घोल रहा हैं। आज मध्यम वर्ग अपनी सिमित आय से वह सब पाने का प्रयास कर रहा है तो निम्न वर्ग गलत रास्तों धन अर्जित करके अपनी इच्छाएं पूरी करने का प्रयास कर रहा हैं। इस के लिए कुछ हद तक बाजार की बढ़ती व्यावसायिकता भी जिमेदार हैं। आज अनेकों उत्पादों से भरा बाजार अपनी ओर खींच कर गलत और अनैतिक करने के लिए उकसाता रहता है। यही असल वजह है भ्रष्टाचार की और रिश्वतखोरी की। ज्यादा से ज्यादा धन कमाने की चाह ने व्यक्ति के मन से ईमानदारी की अहमियत ही ख़त्म कर दी है। इस लिए आज ईमानदारी एक बीमारी जैसी समझी जाने लगी है। और तो और अब रोज ईमानदारी नाम की बीमारी को रोकने के लिए मन को असीमित इच्छापूर्ति का एन्टीडोज़ दिया जाता रहता है।जिस से उसे कभी भी असंतोष में न रहना पड़े। मुझे ऐसा लगता है कि सब समस्याओं का एक ही समाधान है वह है मन से ईमानदार हो जाना …………। जिस दिन व्यक्ति मन से ईमानदार हो जाएगा सभी कार्य सही और उचित होने लगेंगे। तब उसे सही और गलत का फर्क समझ आने लगेगा। हम दूसरे देशों की प्रगति की बात करते हैं वह सब इस लिए है क्योंकि वहां का हर नागरिक ईमानदारी से अपने हिस्से में आये फ़र्ज़ का पालन करता हैं। चाहे वह कचरा सड़क पर न डालने की आदत हो या देश के लिए सोचने का फ़र्ज़। आखिर कब हम बदलेंगे और कब ये देश वाकई प्रगतिशील बनेगा ? ये एक कटु सत्य है जिस का जवाब हम सब मिल कर ही दे सकते हैं।
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