रिश्तों की तार- तार होती गरिमा

 रिश्तों की तार-तार होती गरिमा : 

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पहली घटना :                                                  

गुजरात : सूरत में 23 साल की ट्यूशन टीचर अपने  13 साल के एक छात्र के साथ भाग गई। 4 दिन की खोजबीन के बाद पुलिस ने टीचर को अरेस्ट किया। पूछताछ में टीचर ने कहा– मैं 5 महीने की प्रेगनेंट हूं। ये बच्चा इसी छात्र का है। इसलिए इस छात्र को साथ लेकर भागी थी।

पुलिस पूछताछ में छात्र ने भी टीचर से कई बार फिजिकल रिलेशन बनाने की बात कुबूली है। मेडिकल जांच से पता चला है कि नाबालिग छात्र भी पिता बनने में सक्षम है।

दूसरी घटना : 

उत्तर प्रदेश , गोरखपुर में एक 70 साल के एक ससुर ने अपनी 28 साल की विधवा बहू से शादी कर ली। बहू का पति अर्थात ससुर के बेटे का कुछ माह पहले निधन हुआ था। ससुर की भी पत्नी कुछ सालों पहले मर चुकी थी। 

तीसरी घटना : 

उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर में एक पोते ने अपनी पड़ोस की दादी को भगाकर उससे शादी कर ली है ।  दरअसल 52 वर्षीय महिला जहाँ रहती थी वहीं पड़ोस में 30 वर्षीय लड़का रहता था, दोनों के बीच दादी पोते का रिश्ता था मगर इन दोनों में मोहब्बत हो गई और अब दोनों ने मंदिर में शादी भी कर ली है।

चौथी घटना : 

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में , एक लड़की की शादी होने वाली थी। लेकिन उसका होने वाला पति उसकी जगह उसकी माँ से फोन पर घंटों बातें किया करता था । शादी से 9 दिन पहले ही लड़की का पति उसकी माँ को लेकर भाग गया यानि वह लड़का अपनी सास को भगा ले गया । यह बात जब लड़की और उसके परिवार वालों को पता चली तो उन लोगों के पैरों तले ज़मीन खिसक गई।

  ये कुछ घटनाएं पूर्णतया वास्तविक हैं । और इनके होने से समाज ने बहुत कुछ महसूस किया है। वह ये की अब रिश्तों की गरिमा ताक पर रखी जा चुकी है। कुछ विशेष सम्बंद्धों में आत्मीयता के साथ दूरी या सम्मान को भी साथ लेकर चला जाता था। वह अब पूरी तरह ख़त्म हो गया। अब अपनी भावनाएँ ही सर्वोपरि हैं। कोई समाज की फिक्र नहीं। उसके नियमों और बन्धनों की फिक्र नहीं। जो रीति रिवाज और नियम एक स्वस्थ समाज के लिए जरूरी होते हैं।उनको बेमानी समझा जाने लगा है। 

 ★ क्या ये सही है ? और इस तरह की बातों की मान्यता देकर हम खुद को प्रगतिशील मान सकते है ?  क्या आने वाले समय में भी रिश्तों के बीच रखी जाने वाली गरिमा को ऐसे ही ध्वस्त किया जाएगा ?  ये प्रश्न जायज है। क्योंकि अगर इन्हें नहीं समझा जा रहा। तब सभी रिश्ते एक ही लाइन में एक बराबर खड़े होंगे। जहां ना तो न्यायोचित सम्मान होगा ना ही उचित आत्मीयता। 

★ पुराने समय में ससुर-बहू, सास-दामाद, जेठ- छोटे भाई की पत्नी, देवर - बड़े भाई की पत्नी, समधन- समधी, गुरु- शिष्य जैसे कई रिश्ते थे। जिनमें दूरी सम्मान की वजह से रखी जाती थी। सामने वाले का पद हमसे बड़ा मान कर उसे सम्माननीय का दर्जा दिया जाता था। ये स्वस्थ रिश्तों की परंपरा थी। मैनें भी विवाहोपरांत इन सभी रिश्तों को इसी अनुसार निभाया है। जिससे आज भी सबके साथ सम्मान का भाव कायम है। 

अब इन घटनाओं ने समाज के तानेबाने को छिन्न भिन्न कर दिया है। अगर दिल से कहूँ तो थू है ऐसी भावनाओं पर जो रिश्तों को गरिमा के साथ स्वीकार करने के बजाए इच्छापूर्ति के लिए उकसाती है। 

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