एक सवाल- युद्ध जरूरी क्यों
एक सवाल - युद्ध ज़रूरी क्यों ? ? ••••••••••••••••••••••••••••••••
एक महत्वपूर्ण सवाल....कि युद्ध की स्थिति में लोग खुश कैसे हो जाते हैं ? ?
किसी भी युद्ध से एक बात साबित होती है कि गरीब मुल्क हमेशा से मजबूत मुल्क के लिए एक अदद कब्जाये जाने लायक संपत्ति भर होता है। उसके लिए कोई खड़ा नहीं होता। क्योंकि उसके पक्ष में खड़े होने वाले को भी ये अहसास होता है कि इसकी मदद में उसका कोई फ़ायदा नहीं। इसी ले चलते अब जब तक रक्त की एक धार बची ना रह जाए तब तक सिर्फ़ तबाही देखते रहने का चलन बढ़ता जा रहा है।
यूएन ने चेतावनी दी है कि अगले 24 घंटे में ग़ज़ा में राहत सामग्री नहीं पहुंची तो तकरीबन 14000 बच्चे मारे जा सकते हैं. 25000 से ऊपर बच्चे पहले ही मारे जा चुके हैं......
अगर भारत की बात करें तो यहां पहले से ही हिन्दू मुस्लिम हेट्रेड राजनीति धार्मिक आधार पर फैल रही है । अधिकांश लोग इस तरह की राजनीति को ही अपनी दिनचर्या बना चुके है। बहस करना, खुद को सही साबित करना और गलत को भी गलत नहीं मानने का ट्रेंड चल पड़ा है। इसके लिए ऐसी खबरों पर बेबाक होकर अश्लीलता से लिखते हैं, इमोजीस बनाते हैं, बहस में भाग लेते है और यहां तक कि मर्यादा की सारी सीमाएं लांघ जाते हैं।
जबकि ऐसे हालातो पर चिंतन होना चाहिए कि आखिरकार युद्ध क्यों जरूरी है ? ? इसका हांसिल क्या है सिर्फ जमीन या बढ़ती हुई मिल्कियत। क्यों युद्ध की तबाही का मंजर युद्ध से पहले आंखों में नहीं चुभता। जापान के हिरोशिमा नागासाकी पर परमाणु बम गिराने वक्त अमेरिका ने उस तबाही का आंकलन नहीं किया होगा। मासूम नागरिकों को घायल होते तड़पते नहीं सोचा होगा...! युद्ध अमूमन दो सरकारों या देशों के बीच होता है लेकिन मरती आम जनता है। वो सैनिक मरता है जो काम तो देश के लिए कर रहा पर जी रहा अपने परिवार के लिए।
लेकिन सवाल सिर्फ साथ खड़े रहने का नहीं है......!
सवाल है हमारी रक्त पिपासा कितने लोगों का ख़ून पीकर शांत होगी?
सवाल है हमारी सभ्यता के दायरे क्या युद्ध जैसी स्थिति में खत्म हो जाते हैं?
सवाल है युद्ध की स्थिति में लोग खुश कैसे हो जाते हैं?
और सवाल है किसी भी अन्याय को मिटाने के लिए सारे मानवीय संदर्भ कम क्यों पड़ जाते हैं?
यह जितना युद्ध का सवाल है उससे ज्यादा जरूरी सवाल है हमारी करुणा, संवेदना, मनुष्यता, प्रेम आखिर पराजित क्यों हो जाते हैं?बताइए कहां चली गईं है दूसरे के दर्द के प्रति संवेदनाएं, आगे बढ़कर मदद करने की मंशा और हृदय पसीजती मानवीयता। इंसानियत जैसी भावना क्यों खत्म हो जाती है। त्रासदी में सुख क्यों दिखने लगता है। युद्ध कहीं से भी कभी भी सुखकर नहीं हुआ करते। इसलिए इसे खत्म करने की कोशिश सभी को करनी चाहिए।
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