इतिहास गढ़ने और समझने की जरूरत
इतिहास गढ़ने और समझने की जरूरत : ••••••••••••••••••••••••••••••••••••
गतांक से आगे ....➡️➡️➡️➡️➡️➡️➡️
सुखकर वक्त अक्सर लोग भूल जाते हैं क्योंकि आगे कुछ और बड़े सुख की चाह होती है। जब यात्रा में अच्छी सीट मिली, चैन की नींद रही, सब योजनानुसार हुआ, वे यात्राएं आप भूल चुके। याद है, तो खड़े खड़े जाना, कोई एक्सीडेंट, तकलीफ, मानसिक तनाव भरी यात्रा..
ऐसे ही इतिहास भी, तनाव याद रखता है।
हम अनुभवों से निर्णय लेते हैं।अनुभव निजी इतिहास ही है। तो काले अनुभवों के भय से कुंठित फैसला करें, या सुंदर अनुभवों से निर्भय निर्णय लें। आपका भविष्य वैसा बनेगा। और प्रजातन्त्र में नागरिक का निर्णय, औरो को, देश को, आगत पीढ़ियो को भी प्रभावित करता है। तो आदर्श तो यही है कि इतिहास से सीख लेकर, मौजूदा हालात में भविष्य के लिए फैसला लें।
लेकिन सावधान- 1000 साल पहले के कटु किस्से, जिसके आप गवाह नही, जिसमे तमाम फिक्शन जुड़ चुके है। उसे वर्तमान दौर, समाज, मान्यताओं, कानूनों के कॉन्टेक्स्ट में फिट करके, उससे निर्णय कैसे ले सकते हैं ...?? कोई भी सत्ता आपको इतिहास के चयनित पात्रों, और चयनित क्षणों का कैदी बनाना चाहती है। उन्होंने सबके लिए इतिहास बनने के लिए कब्र खोद रखी है।
21 वी सदी के इस सर्वोच्च शिक्षित, तकनीकक्षम, अपूर्व समृद्धि के दौर में हम खुद को नष्ट करने को आतुर हैं। तटस्थ रहें क्योंकि समय हम सबका जो इतिहास को सिर्फ वैमनस्य की नज़र से देख रहे उनका अपराध लिखेगा। तय करें कि सैकड़ो साल पहले मर चुके कौन से राजा के लिए हम आज युद्ध लडेंगे...?? किस धर्म को धरती से मिटायेंगे, किसकी जमीन कब्जा करेंगे। किस किस को उसकी औकात दिखाएंगे....!!
या पढ़कर इतिहास से सीख लें। किसी और काल, देश, दौर की गलतियों को दोहराने से कैसे बचा जाए कि आज दूषित ना होए। बेहतर भविष्य गढ़ने का बीड़ा उठायें। सोचें, खुशनुमा communication करें। सहकार बढाये। आफत नहीं।
बस, जीवन रहते ही इस कार्य में भागीदारी का मौका है। वरना फिर हम और हमारी आत्मा भुगते...किसी अन्य को क्या पड़ी।
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